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Kota देस-परदेस मंं हाड़ौती का नाम नै खास बणाव छै मेळो, वीडियो में देखें छप्पनिया अकाल की दर्दभरी दास्तान

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कोटा न्यूज़ डेस्क , कोटा रावण दहन देखबा कै तांई बाहर का लोगदणी एक दन पैल्यां ही मैदान मं आ जमै छा। टाट पट्ट्यां बछार वाही रात खाड ले छा। टाबरां नै कांधा पै ले र भीड़ मं भी पूरा िरावण दखावे छा। रावण भल्यां ही पैली छोटो छो, पण घणो सुहावणो लागे छो। लंका दहन भी घणो लांबो चालै छो। रावण की ऊंचाई भल्यां ही बढ़ ग्यी। पण संस्कृति को पानो तो वस्यो को वस्यो ही लागै छै। रावण का हांसबा, तलवार घुमाबा का नुवा रूप भी अब छोका लाग र््या छै। मायड़ भासा कवि सम्मेलन की बात करां तो हाड़ौती जसी प्यारी बोली ज्ये मां का कंठ सूं सुण र बड़ा होया का कवि सम्मेलन ही जरूर सुणबा जावै छा। ऊं टैम की तसबीर रच दे छी।

कविता जस्या सैहर मं चाल बो तो टेम्पू को... ज्ये आज देखबा मं भी न मले। मेलो बाळमन कै लेख तो घणी उम्मीदा लेर आव छै, पण यो दसवारो मेळो तो द्वाळी का सामान भी द्वार जाव छै। नुई नूई तसबीर और नुई नूई चीजां जद् घरणै जा र सज छै तो द्वाळी की रौनक बढ़ जाव छै। धन तेरस ताई चालबा हालो यो मेलो घरां मं नई द्वाली लेर आव छै। ईमै खेलकणा को बजार की तो पूछो मती, अस्या कोई न होगा जो ई मै न ग्या होवेगा। मेला मं पकोड़्या, सोफ्टी खाबा को मजो और हाथीजाम जस्या गुलाब-ज्यामुन ही मेळा मं ही देख्या पहली बार, पण अब सेहत को भी बच्यार राखणी पड़ छै। मेला मं सूं होर आबो, बालकां को पुपाड़ी बजाता आबो दिखा दे छो पड़ोस्या नै। मेळो बस मेळो ही कोई नै। यो सालभर की छोटी-मोटी िगरस्थी की जरूरत की चीजां भी सस्ता मं उपलब्ध करावै छै। यो गरीब-अमीर, बच्चा-बुढ़ा, मरद-बायरां सब्यां ही मेळो छै। यो नुई ऊर्जा भरबा को भी मेळो छै। यो संस्करति को भी मेळो छै अर् हाड़ौती की धरती की आन बान स्यान को मेळो छै।

कोटा को दसवारो एक हाड़ौती की धरती की वा पछाण छै, ज्ये देस परदेस मं ज्यां भी खड़ा होवै तो कोटा का नाम के तांई खास बणाव छै। यो खाली मेळो ही कोई नै। ई मैं चांबळ का पाणी सूं सींची सूरवीरा की धरती की खसबू भी फैली हुई छै। आज मेळा को सरूप भल्यां ही थोड़ो बदलग्यो होवे, पण रीति-रिवाज सूं बस्यो तो लाग ही छै। मेला की पराणी बातां तो बातां ही घणी न्यारी लागै छै। ये मेळा ज्यां तांई बच्या रहवे गा, आपणी संस्करती, पछाण बरकरार रहवे गा। जनता कोटा का दसवारा का गीत हर साल गाती रहवे गी।

जद् तीस पैंतीस बरस पाछै जावां तो मेळा की रामलीला भी देखबा जावे छां तो घरां जाकै पूरी नकल आैर करे छा। सर्कस भी पैल्ही ही लाग जावै छो तो ऊंका शेर की दहाड़ बारणे तांई सुण ले छा। हाथी का चौका-छक्का झेलबा के तांई जनता त्यार रहवे छी। दशहरा के दन तो पूछो ही मती। पैल्यां आगे सवारियां देखबा के तांई आगह ही गेट का दरवाजा का आडी उबा हो जावे छा। हाथी-घोड़ा पै जद् राजसी ठाट-बाट सूं सवारियां, भगवान लक्ष्मीनाथजी का ब्याण का दर्शन कर ही आगै आवे छा रावण कै आडी। सवारियां देखबा को और ही जनून रहवे छो। जी मं लोक-कलाकारां की धूम रहवे छी।

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