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छत्तीसगढ़ से कोयला आपूर्ति में आई रुकावट, राजस्थान के इस पावर प्लांट की बिजली सप्लाई पर मंडराया खतरा

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बारां जिले में स्थित छबड़ा मोतीपुरा पावर प्लांट को 120 लाख टन कोयले की आपूर्ति अब संकट में पड़ गई है। कोयला मंत्रालय ने राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम को उसे आवंटित छत्तीसगढ़ की खदानों से छबड़ा मोतीपुरा थर्मल पावर प्लांट को कोयले की आपूर्ति जारी रखने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। मामला छबड़ा पावर प्लांट को लेकर राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम और एनटीपीसी (नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन) के बीच हुए संयुक्त उपक्रम से जुड़ा है। दरअसल, संयुक्त उपक्रम में उत्पादन निगम और एनटीपीसी की 50:50 फीसदी हिस्सेदारी है। संयुक्त उपक्रम में प्रशासनिक अधिकार एनटीपीसी को दे दिए गए हैं, जिससे प्लांट का प्रबंधन और नियंत्रण बदल गया है।

मंत्रालय के प्रावधानों के कारण समस्या

अब नई कंपनी बनानी होगी। उन खदानों से नई कंपनी को कोयला नहीं दिया जा सकता, क्योंकि आवंटन की अनुमति सिर्फ उत्पादन निगम को दी गई है। कोयला मंत्रालय ने इन प्रावधानों की याद दिलाते हुए उत्पादन निगम के अनुरोध को स्वीकार नहीं किया है। इसके बाद उत्पादन निगम प्रबंधन से लेकर ऊर्जा विभाग तक हड़कंप मचा हुआ है। जल्द ही दिल्ली में कोयला मंत्रालय के अफसरों से वार्ता होगी। वर्तमान में छत्तीसगढ़ के परसा कांटा और ईस्ट बेसिन कोयला खदानों से 70 लाख टन कोयला मिल रहा है। जब तक कंपनी नहीं बन जाती, प्लांट को कोयला मिलता रहेगा।

ये हैं चुनौतियां

कोयला मंत्रालय की आपत्तियों को दूर करना होगा, जिसका हवाला देते हुए उन्होंने कहा है कि कोयले की आपूर्ति जारी नहीं रखी जा सकती। कंपनी बनने के बाद उत्पादन निगम को आवंटित खदानों से कोयला मिलना बंद हो जाएगा। अगर कंपनी को दूसरी जगह से कोयला लेना पड़ा तो इसकी लागत छत्तीसगढ़ से मिलने वाले कोयले से ज्यादा होगी।

50 लाख टन अतिरिक्त कोयले की जरूरत

फिलहाल प्लांट की क्षमता 2320 मेगावाट है। नई कंपनी को यहां 2 और यूनिट बनानी हैं। प्रत्येक यूनिट की क्षमता 660 या 800 मेगावाट होगी, लेकिन अभी इस पर फैसला होना बाकी है। वर्तमान में छत्तीसगढ़ से हर साल 70 लाख टन और कोल इंडिया से 23 लाख टन कोयला आ रहा है। अगर 2 यूनिट और जुड़ जाएं तो 50 लाख टन अतिरिक्त कोयले की जरूरत होगी।

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