दिल्ली हाईकोर्ट ने उदयपुर के एक दर्जी कन्हैयालाल की हत्या पर आधारित फिल्म 'उदयपुर फाइल्स: कन्हैयालाल टेलर मर्डर' की रिलीज़ पर रोक लगा दी है। यह फिल्म आज 11 जुलाई को रिलीज़ होने वाली थी। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख अरशद मदनी ने फिल्म पर रोक लगाने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। उनके वकील वही कपिल सिब्बल हैं जो मोदी सरकार के हर कदम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में खड़े दिखाई देते हैं। ये वही कपिल सिब्बल हैं जो मनमोहन सिंह सरकार में उनके खास मंत्री हुआ करते थे। फिलहाल, उन्होंने कांग्रेस से दूरी बना ली है और समाजवादी पार्टी की मदद से राज्यसभा में हैं।
फिलहाल, उदयपुर फाइल्स के निर्माता अमित जानी ने कहा है कि वह फिल्म पर प्रतिबंध के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे। हालांकि, कोर्ट ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद को केंद्र सरकार से संपर्क करने को कहा है। सरकार 7 दिनों के भीतर तय करेगी कि फिल्म सही है या गलत। तो सबसे पहले, आइए कन्हैया लाल टेलर की कहानी पर चलते हैं। आखिर कौन फिल्म पर प्रतिबंध लगवाना चाहता है और क्यों?
कन्हैया लाल तेली का गला क्यों काटा गया?
कन्हैया लाल तेली राजस्थान के उदयपुर के एक 40 वर्षीय दर्जी हैं, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं। 28 जून 2022 को मोहम्मद रियाज़ अत्तारी और गौस मोहम्मद ने कन्हैया लाल की उनकी दुकान में चाकू मारकर हत्या कर दी। हत्यारों ने हत्या का वीडियो भी बनाया और उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया। और उन्होंने यह भी बताया कि गला रेतने के पीछे क्या मकसद था? अगर आपको आगे की कहानी नहीं पता है, तो आप ज़रूर जानना चाहेंगे कि कन्हैया लाल ने ऐसा कौन सा गुनाह किया था जिसकी सज़ा उसे उसकी दुकान में गला रेतकर दी गई। कन्हैया लाल का कसूर बस इतना था कि उसने एक व्हाट्सएप ग्रुप में भाजपा नेता नुपुर शर्मा के पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ दिए गए विवादित बयान का समर्थन किया था। जबकि जाँच में पता चला कि यह पोस्ट उसके 8 साल के बच्चे ने गलती से फॉरवर्ड कर दी थी। बस इसी बात पर कुछ नासमझ युवकों ने उसकी बेरहमी से हत्या कर दी। अटारी और गौस कपड़े सिलवाने के बहाने उसकी दुकान पर पहुँचे। जब कन्हैया लाल ने नाप लेने के लिए इंची टेप उसके शरीर पर लगाया, तो उनमें से एक ने उसका गला काट दिया और दूसरे ने वीडियो बना लिया। इसके बाद, इस वीडियो को धमकियों के साथ सोशल मीडिया पर भी डाल दिया गया।
देश का दुर्भाग्य है कि 3 साल पहले वीडियो बनाकर एक व्यक्ति की नृशंस हत्या करने वालों पर अभी तक हत्या का आरोप साबित नहीं हुआ है। जबकि राज्य और केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। सभी जाँच एजेंसियों पर उनका नियंत्रण है। कन्हैया लाल तेली के बेटे का कहना है कि मेरे पिता के हत्यारों को 3 साल में न्याय नहीं मिला, लेकिन उनके जीवन पर बनी फिल्म पर 3 दिन में ही प्रतिबंध लगा दिया गया। ज़ाहिर है गुस्सा तो होगा ही।
कन्हैया लाल की कहानी से कौन डरता है?
ज़ाहिर है कि कन्हैया लाल के जीवन पर बनी फिल्म उन लोगों से डरती होगी जो नहीं चाहते कि उनकी कहानी समाज के सामने आए। सोचने वाली बात है कि कन्हैया लाल तेली की कहानी को फिल्म के ज़रिए आगे लाने से दंगे भड़कने का डर किसे है? ज़ाहिर है, जो भी ऐसा कह रहा है, वह भारत सरकार और अदालत को साफ़ तौर पर धमका रहा है।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने दिल्ली, गुजरात और महाराष्ट्र उच्च न्यायालयों में याचिकाएँ दायर की थीं। उनकी आपत्ति थी कि फिल्म का ट्रेलर धार्मिक भावनाओं को आहत कर सकता है और सांप्रदायिक तनाव बढ़ा सकता है। यह एक सीधा खतरा है कि सांप्रदायिक तनाव भड़केगा। देश के ज़्यादातर लोग इसका मतलब समझते हैं। याचिका में दावा किया गया था कि ट्रेलर देखने के बाद ऐसा लगता है कि हत्या को धार्मिक नेताओं और संस्थाओं की साज़िश के तौर पर दिखाया गया है।
हत्या मामले के एक आरोपी मोहम्मद जावेद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दावा किया था कि फिल्म निष्पक्ष सुनवाई के उसके अधिकार को प्रभावित करेगी। जावेद को राजस्थान उच्च न्यायालय ने 2024 में ज़मानत दे दी थी। इसमें कोई शक नहीं कि यह फिल्म कन्हैया लाल हत्याकांड को फिर से सुर्खियों में ला सकती है। जिससे आरोपियों के ख़िलाफ़ जनता का गुस्सा बढ़ सकता है। इतना ही नहीं, डबल इंजन वाली सरकार पर भी लोगों का गुस्सा बढ़ेगा। आखिर केंद्र और राज्य दोनों जगह भाजपा की सरकार है।
विपक्षी दलों की चुप्पी रहस्यमय है। जब भी किसी फिल्म पर प्रतिबंध लगाने की मांग होती है, देश में कुछ लोग विचारों की आज़ादी की दुहाई देने लगते हैं। लेकिन शायद ऐसे लोगों को "उदयपुर फाइल्स" से कोई तकलीफ़ नहीं हो रही है। वरना सोशल मीडिया पर ऐसे लोगों की बाढ़ आ जाती। प्रोफ़ेसर दिलीप मंडल सोशल मीडिया साइट "एक्स" पर लिखते हैं कि कपिल सिब्बल ओबीसी दर्जी कन्हैया लाल तेली की हत्या क्यों और कैसे हुई, इसकी कहानी सामने आने से क्यों डरे हुए हैं? वो किसे बचा रहे हैं? इससे पता चलता है कि कुछ संगठनों को डर है कि फिल्म उनकी छवि को नुकसान पहुँचा सकती है।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद और आतंकवाद के आरोपियों को बचाने का उसका इतिहास
फिल्म पर प्रतिबंध लगवाने में जमीयत उलेमा-ए-हिंद की सबसे बड़ी भूमिका रही है। गौरतलब है कि इस संगठन का आतंकवादियों को संरक्षण और पनाह देने का इतिहास रहा है। 2007 में इस संगठन ने अपने नेता अरशद मदनी के नेतृत्व में एक कानूनी प्रकोष्ठ शुरू किया था, जिसका उद्देश्य आतंकवाद में गिरफ्तार मुस्लिम लड़कों को कानूनी मदद मुहैया कराना था।
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने अब तक 700 आरोपियों का बचाव किया है। जमीयत 7/11 मुंबई ट्रेन विस्फोट, 2006 मालेगांव विस्फोट, 26/11 मुंबई आतंकवादी हमला, 2011 मुंबई तिहरा विस्फोट मामला, मुलुंड विस्फोट मामला, गेटवे ऑफ इंडिया विस्फोट मामले के सभी आरोपियों को बचाने में सफल रही। लेकिन दुख की बात यह है कि अदालत ने जिन लोगों को बचाया, उन्हें निर्दोष होने के कारण नहीं, बल्कि उनके खिलाफ ठोस सबूतों के अभाव के कारण रिहा किया।
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