राजस्थान के झालावाड़ में सरकारी स्कूल की इमारत गिरने से सात बच्चों की मौत और कई के घायल होने के बाद इस हादसे ने बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है.
इस घटना के बाद एक गंभीर आरोप यह भी सामने आया कि मृत बच्चों के अंतिम संस्कार में साइकिल और मोटरसाइकिल के टायरों का इस्तेमाल किया गया.
इससे पहले घायल बच्चों और उनके परिजनों ने आरोप लगाया था कि छत से टुकड़े गिरने की शिकायत के बावजूद शिक्षकों ने ध्यान नहीं दिया.
झालावाड़ कलेक्टर अजय सिंह राठौड़ ने बीबीसी हिंदी से बातचीत में अंतिम संस्कार में टायरों के इस्तेमाल की बात से इनकार किया. वहीं, स्कूल की इमारत गिरने की घटना पर उन्होंने कहा कि जांच जारी है और लापरवाही सामने आने पर ज़िम्मेदारों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई होगी.
घटना के बाद कई शिक्षकों और पांच अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया है, जबकि संविदा पर कार्यरत एक इंजीनियर की सेवा समाप्त कर दी गई है.
निलंबित शिक्षकों ने भी बीबीसी से बातचीत में अपना पक्ष रखा है.
पूरा मामला क्या है?झालावाड़ ज़िला मुख्यालय से क़रीब 90 किलोमीटर दूर मनोहर थाना इलाके के पिपलोदी गांव में शुक्रवार सुबह एक सरकारी स्कूल के दो कमरे भरभरा कर गिर गए. इस हादसे में मौके पर ही तीन बच्चों की मौत हो गई और चार बच्चों ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया.
हादसे के बाद आक्रोशित ग्रामीणों ने प्रशासन के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया. शनिवार सुबह दुर्घटना में मारे गए सातों बच्चों का अंतिम संस्कार किया गया.
इस बीच सोशल मीडिया पर दावा किया गया है कि अंतिम संस्कार के दौरान साइकिल और मोटरसाइकिल के टायरों का इस्तेमाल किया गया.
कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने सोशल मीडिया पर एक तस्वीर पोस्ट करते हुए लिखा, "क्या है गरीब होने की सज़ा, स्कूल पढ़ने जाओ और छत ढहने पर मर जाओ? मर जाने के बाद चिता लकड़ी से नहीं रबड़ के टायर से जलाओ? कई बार - कुछ कहने का मन नहीं करता है. बस मन खट्टा हो जाता है."
अंतिम संस्कार में टायरों के इस्तेमाल के सवाल पर झालावाड़ कलेक्टर अजय सिंह राठौड़ ने बीबीसी हिंदी से कहा, "ऐसा कुछ नहीं हुआ है. हमने लकड़ियों समेत अन्य सभी सामग्री उपलब्ध करवाई थी. वहां तीन श्मशान थे. एक जगह चार शवों का अंतिम संस्कार हुआ, उस जगह मैं खुद मौजूद था. एक जगह दो और एक अन्य जगह एक शव का अंतिम संस्कार किया गया. सभी जगह प्रशासनिक अधिकारी मौजूद थे."
उन्होंने आगे कहा, "इस इलाके़ में लोग बारिश के समय चिता के साइड में टायर रखते हैं, क्योंकि बारिश में लकड़ियां गीली हो जाती हैं. लेकिन मैंने खुद उन्हें समझाते हुए सभी टायर हटवा दिए थे."
हालांकि अंतिम संस्कार के दौरान टायरों के इस्तेमाल से जुड़े वीडियो और तस्वीरें सोशल मीडिया पर मौजूद हैं. इस सवाल पर सरपंच प्रतिनिधि ने दावा किया, "वहां बड़ी संख्या में ग्रामीण मौजूद थे, किसी ने साइकिल के एक-दो टायर डाल दिए थे, जिन्हें बाद में हटा दिया गया था."
बता दें कि स्कूल हादसे में घायल ग्यारह बच्चे अभी भी ज़िला मुख्यालय के एसआरजी अस्पताल में भर्ती हैं. मृतकों और घायलों में ज़्यादातर बच्चे भील आदिवासी और दलित परिवारों से हैं.
झालावाड़ के एडिशनल कलेक्टर अभिषेक चारण ने बीबीसी हिंदी को फ़ोन पर बताया कि शुक्रवार देर शाम तक पोस्टमार्टम होने के कारण शनिवार सुबह सातों बच्चों का अंतिम संस्कार किया गया.
झालावाड़ कलेक्टर अजय सिंह राठौड़ का कहना है कि मामले की जांच पूरी होने के बाद ही दुर्घटना के असली कारणों का पता चलेगा.
प्रभावित बच्चों के परिजनों ने क्या कहा?अभी झालावाड़ के एसआरजी अस्पताल में ग्यारह बच्चे भर्ती हैं, इनमें से तीन बच्चों की हालत गंभीर बताई जा रही है.
ग्यारह साल की अनुराधा अपनी दो बड़ी बहन पायल और सुनीता के साथ इसी स्कूल में पढ़ती थीं. छठी क्लास में पढ़ने वाली अनुराधा के हाथ में फ्रैक्चर है, जबकि उनकी बड़ी बहन पायल की इस हादसे में मौत हो गई.
अनुराधा के रिश्ते के भाई संदीप के मुताबिक़, अस्पताल में तीन बच्चों की हालत बहुत गंभीर है.
इस हादसे में घायल रघुवीर भील के बेटे बादल का भी इलाज अस्पताल में जारी है. वह तीसरी क्लास में पढ़ते हैं. रघुवीर के मामा रामगोपाल ने अस्पताल से फ़ोन पर बीबीसी को बताया, "बादल के कमर और घुटने के बीच में चोट है. वह न तो उठ पा रहा है और न ही बैठ पा रहा है."
रघुवीर ने आरोप लगाया, "हमने स्कूल में क़रीब डेढ़ साल पहले स्कूल में सुधार के लिए आवाज़ उठाई थी. लेकिन, कुछ नहीं हुआ."
क्या शिक्षकों को बच्चों ने छत के बारे में बताया था?एसआरजी अस्पताल में भर्ती राजू नाम की बच्ची पांचवीं क्लास में पढ़ती है. उनकी मां गायत्री बाई भील बताती हैं कि दुर्घटना में राजू के हाथ और पैर में फ्रैक्चर हो गया है.
गायत्री बाई ने कहा, "राजू ने बताया कि बच्चे स्कूल में कमरे में थे, छत से कंकड़ गिरने लगे. कुछ बच्चे भाग गए और कुछ नहीं भाग सके. इतने में पूरी छत गिर गई."
न्यूज़ एजेंसी एएनआई से बातचीत में एक छात्र ने आरोप लगाया, "हम बाहर सफाई कर रहे थे. बच्चे अंदर बैठे थे और बच्चों ने कहा कि दीदी कंकड़ गिर रहे हैं. दीदी ने कहा कि नहीं गिर रहे और बच्चों को धमका कर बैठा दिया."
उस छात्र ने आगे कहा, "टीचर बाहर बैठ कर पोहे खाने लगे. हम बाहर थे तभी अचानक से छत गिर गई और बच्चे दब गए."
एक अन्य छात्रा, 14 साल की वर्षा ने भी मीडिया से बातचीत में आरोप लगाया, "हमने दीदी को बताया तो उन्होंने हमें धमका कर बैठा दिया. कुछ देर बाद जो बच्चे दरवाज़े के पास थे वो भाग गए और जो अंदर थे वो दब गए. टीचर बाहर बैठ कर नाश्ता कर रहे थे."
शिक्षकों ने आरोपों पर क्या कहा?हादसे के बाद झालावाड़ के जिला शिक्षा अधिकारी नरसो मीणा ने आदेश जारी कर स्कूल के पांच शिक्षकों को निलंबित कर दिया.
इनमें से दो शिक्षकों ने बीबीसी से फ़ोन पर हुई बातचीत में लगाए गए आरोपों को खारिज किया है.
निलंबित शिक्षक जावेद अहमद ने कहा, "यह बहुत दुखद घटना है. जिन बच्चों को पढ़ाया उनके साथ ऐसा होना किसी भी शिक्षक के लिए जीवन का सबसे दुखद पल होगा."
उन्होंने आगे बताया, "सुबह साढ़े सात बजे का स्कूल का समय है, क्लास के ताले ही खुले थे. आरोप लगाए जा रहे हैं कि शिक्षक नाश्ता कर रहे थे, जबकि ऐसा कुछ नहीं है. बाहर जहां प्रार्थना होती है वो बारिश होने के कारण गीला था. इसलिए हम उन्हीं कमरों में बच्चों को प्रार्थना के लिए बैठाते हैं."
जावेद अहमद ने घटना के समय की स्थिति का ज़िक्र करते हुए कहा, "मैं प्रार्थना करवाने क्लास में गया तो देखा कि बच्चे कम थे और पूछने पर बच्चों ने कहा कि बाकी बच्चे ग्राउंड में हैं. मैं बाहर बच्चों को बुलाने बाहर निकला ही था कि भरभरा कर कमरे गिर गए, इसमें कुछ ही सेकंड लगे."
एक अन्य निलंबित शिक्षक बद्री प्रसाद ने फ़ोन पर बीबीसी से कहा, "घटना के समय मैं स्कूल में नहीं था, मेरी कहीं और ड्यूटी थी तो मैं बाहर था. स्कूल में घटना होने के बाद मैं नौ बजे स्कूल पहुंचा."
इसके बाद रविवार को शिक्षा मंत्री मदन दिलावर के निर्देश पर शासन सचिव शिक्षा कृष्ण कुणाल ने झालावाड़ के प्रारंभिक ज़िला शिक्षा अधिकारी नरसो मीणा, मुख्य ब्लॉक शिक्षा अधिकारी प्रमोद कुमार बालासोरिया समेत पांच अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया है.
साथ ही मनोहर थाना के जूनियर इंजीनियर जो संविदा पर कार्यरत थे, उनकी संविदा समाप्त करने के आदेश जारी किए गए हैं.
क्या कमरे जर्जर हालत में थे?
बीबीसी ने कलेक्टर अजय सिंह राठौड़ से पूछा कि उन्होंने मीडिया में कहा है कि जर्जर इमारतों की सूची में इस स्कूल का नाम नहीं था, तो फिर हादसा कैसे हुआ?
कलेक्टर अजय सिंह राठौड़ ने बताया कि जर्जर स्कूलों की सूची उन्हें जिला शिक्षा अधिकारी की ओर से भेजी जाती है और उस सूची में इस स्कूल का नाम शामिल नहीं था.
कलेक्टर ने कहा, "ज़िम्मेदारी उस स्कूल के शिक्षकों की थी कि वे बताते कि ऐसा हो रहा है. स्कूल के स्टाफ़ तो कल भी कह रहे थे कि कोई दिक्कत नहीं थी."
क्या स्कूल के कमरे जर्जर थे और उनकी मरम्मत की जरूरत थी? इस सवाल पर निलंबित शिक्षक बद्री प्रसाद ने कहा, "इन कमरों में कभी सीलन तक नहीं आई थी, अन्य दो कमरों में पानी आता था तो उन दो कमरों को हमने बहुत पहले से ही ताला लगा रखा था."
वहीं, स्थानीय ग्रामीणों का दावा है कि क़रीब डेढ़ साल पहले स्कूल की ख़राब स्थिति को लेकर उन्होंने प्रदर्शन किया था.
इस आरोप पर एडिशनल जिला कलेक्टर अभिषेक चारण ने बीबीसी से कहा, "स्थानीय एसडीओ की ओर से हमारे पास ऐसी कोई सूचना नहीं आई है. हमारे रिकॉर्ड में है कि साल 2022-23 में एक लाख रुपये की लागत के छतों को वाटर प्रूफ़ करवाया गया था."
कितनी पुरानी थी इमारतस्थानीय मनपसर ग्राम पंचायत की सरपंच भगवती बाई के पति राम प्रसाद ने, बतौर सरपंच प्रतिनिधि, बताया कि पूरी पंचायत में पहली से आठवीं तक का यह एकमात्र सरकारी स्कूल है, जिसमें 72 बच्चे पढ़ते थे.
राम प्रसाद के मुताबिक़ यह स्कूल साल 1988 में स्थापित हुआ था.
उनका दावा है कि लगातार बारिश के कारण कमरों की नींव के नीचे की मिट्टी दब गई, जिससे दीवार और छत की पट्टियां गिर गईं.
प्रदेश सरकार ने मृतकों के परिजनों को दस-दस लाख रुपये की आर्थिक सहायता देने और परिवार के एक सदस्य को कॉन्ट्रैक्ट पर चतुर्थ श्रेणी की नौकरी देने की घोषणा की है.
कलेक्टर अजय सिंह राठौड़ ने बीबीसी को बताया, "सरकार ने हमसे घायलों की सहायता के लिए प्रस्ताव मांगे हैं. गंभीर और आंशिक रूप से घायलों को भी सहायता राशि मिलेगी."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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