दिल्ली की आसमान छूती इमारतें, फ़्लाइओवर्स, तेज़ रफ्तार ज़िंदगी और ट्रैफ़िक से भरी सड़कों के बीच एक पल के लिए ठहरना भी मुश्किल है.
वहां अगर राह चलते या घर के भीतर, आपका सामना सांप से हो जाए तो?
तो ये सिर्फ़ इत्तेफ़ाक नहीं, बल्कि कंक्रीट के जंगलों में तब्दील होते दिल्ली-नोएडा जैसे शहरों की वो हक़ीक़त है, जो ख़ासकर मानसून के मौसम में सामने आती है.
दिल्ली के सबसे भीड़भाड़ वाले इलाक़ों में से एक चांदनी चौक में बीती 28 जुलाई को सड़क के डिवाइडर पर कुछ लोगों ने सांप देखा, जिसके बाद अफ़रातफ़री मच गई.
वहीं बीती 31 जुलाई को नोएडा की एक हाईराइज़ सोसाइटी में सांप निकलने का मामला सामने आया.
सांप निकलने से जुड़े ये कोई इक्का-दुक्का मामले नहीं हैं, जो दिल्ली जैसे शहरों से सामने आ रहे हैं. जून से अगस्त महीने के बीच शहर के अलग-अलग हिस्सों में सांपो की आमद में इज़ाफ़ा देखा गया है.
और इस इज़ाफ़े का मतलब है - डर, एहतियात और ज़्यादा से ज़्यादा पैनिक कॉल.
मानसून में बढ़ते हैं 'स्नेक रेस्क्यू कॉल'
दिल्ली वन विभाग और वन्यजीवों के बचाव के लिए काम करने वाले दिल्ली के प्रमुख एनजीओ वाइल्डलाइफ़ एसओएस का कहना है कि मॉनसून के मौसम में सांपों के रेस्क्यू से जुड़े कॉल्स बढ़ जाते हैं.
ये कॉल दिल्ली के सबसे वीआईपी कहे जाने वाले लुटियन्स ज़ोन से लेकर उन बस्तियों तक से आती हैं, जहां एक बड़ी आबादी सीमित संसाधनों के साथ रहती है.
वाइल्डलाइफ़ एसओएस के सस्टेनेबिलिटी एंड स्पेशल प्रोजेक्ट्स के डायरेक्टर वसीम अकरम ने हमें बताया कि कॉल आने के महज़ चार मिनट के भीतर उनकी टीम रेस्क्यू किट के साथ लोकेशन के लिए रवाना हो जाती है.
वसीम का कहना था कि चूंकि बारिश में सांपों के बिल में पानी भर जाता है, इसलिए वह रिहायशी इलाक़ों में ज़्यादा नज़र आने लगते हैं.
हम सांपों की बढ़ती आमद पर चर्चा कर ही रहे थे कि इतने में कॉल आई. वसीम ने कहा, 'इट्स अ स्नेक कॉल. हमें तुरंत निकलना होगा.'
हमने भी उनके साथ रेस्क्यू पर जाने की इच्छा ज़ाहिर की और फिर अगले पंद्रह मिनट में हम 21 सेंट्रल एवेन्यू स्थित अमांडा सेठ के घर पहुंचे.

घर में चारों तरफ़ अच्छी खासी हरियाली देखी जा सकती थी. अमांडा ने वाइल्डलाइफ़ एसओएस की टीम से कहा कि सांप उनके स्टोर रूम में है.
वसीम और उनके साथी पूरी सावधानी के साथ स्टोर रूम में मौजूद सभी फ़र्नीचर को निकालते रहे, फिर आख़िर में एक खाट के पीछे सुनहरे रंग का तकरीबन तीन फ़ुट लंबा सांप नज़र आया.
ये एक रॉयल स्नेक था, सांपों की वो प्रजाति जो ज़हरीली नहीं होती. इसे हरे रंग के एक बैग में डालकर पारदर्शी डब्बे में रखा गया.
अमांडा ने हमसे कहा, ''सांप ज़हरीले हों या न हों, उनका दिख जाना ही आपको डरा देता है. एक दो साल पहले भी घर में सांप निकला था. हमने तब भी रेस्क्यू के लिए बुलाया था और आज भी कॉल किया क्योंकि वो भी एक जीव हैं और उन्हें भी जीने का अधिकार है.''
वसीम के अनुसार सांपों को रेस्क्यू के बाद 24 से 48 घंटे के लिए ऑब्ज़र्वेशन में रखा जाता है, अगर वो पूरी तरह स्वस्थ रहें तो उन्हें जसोला भट्टी वन्यजीव अभयारण्य या दिल्ली में मौजूद दूसरे किसी वाइल्ड स्पेस में छोड़ दिया जाता है.
क्या कहते हैं वन विभाग के आंकड़े?साल 2021 तक दिल्ली में सांपों के रेस्क्यू से जुड़े नब्बे प्रतिशत मामलों से वाइल्डलाइफ़ एसओएस ही निपटता आया है.
मगर जबसे दिल्ली वन विभाग की अपनी टीम बनी है, तबसे ज़्यादा से ज़्यादा सांप रेस्क्यू हो रहे हैं.
वन विभाग के मुताबिक़, इस साल मई से जुलाई महीने के बीच उनकी टीम ने शहर के अलग-अलग हिस्सों से अब तक 157 सांपो का रेस्क्यू किया है.
इनमें ज़्यादातर सांपों की वे प्रजातियां होती हैं, जो ज़हरीली नहीं होतीं.

वहीं वाइल्डलाइफ़ एसओएस का कहना है कि दिल्ली में मानसून के दौरान हर महीने वो औसतन सौ सांपों का पुनर्वास करते हैं.
सबसे अधिक ख़तरा किन्हें?शहर में सांपों से सबसे अधिक सामना सफ़ाईकर्मी और झुग्गी-बस्तियों में रहने वाले लोगों का ही होता है.
दिल्ली नगर निगम के सफ़ाईकर्मी अमित यमुना पुश्ता क्षेत्र में नाले की सफ़ाई करते हैं.
उनका कहना है कि बारिश में सांपों के निकलने के कारण उनके लिए नदी के नज़दीक वाले इलाके की सफ़ाई करना एक बड़ी चुनौती बन जाती है.
वह कहते हैं, ''पुश्ते पर सफ़ाई करने में अभी डर लगता है. बारिश में यमुना का पानी बढ़ता है तो सांप दिखने भी बढ़ जाते हैं. उससे बहुत परेशानी होती है. एक हफ़्ते पहले ही एक बड़ा सांप देखा था. इसलिए ऐसे मौसम में हम पंजी वगैरह लेकर चलते हैं, ताकि कोई सांप आए तो उससे हटा दें.''
हालांकि केवल सांपों का निकलना ही चुनौती नहीं है, कई बार वे एक गंभीर समस्या का कारण भी बन जाते हैं
सफ़ाईकर्मी राजेंद्र बताते हैं कि काम के दौरान उनके दो सहकर्मियों को सांप ने काट लिया था. बाद में इलाज के बाद वो ठीक हो गए लेकिन बरसात में उन जैसे लोगों को विशेष सावधानी बरतनी पड़ती है.
उन्होंने कहा, ''इसलिए हम इस वक़्त ख़ासकर सड़क किनारे लगे पेड़-पौधों की कटाई करते रहते हैं, ताकि सांप इन्हें अपना ठिकाना न बना लें.''
भारत में सांपों की 310 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं. इनमें से केवल 66 प्रजातियां ज़हरीली या हल्की ज़हरीली होती हैं.
इनमें चार प्रमुख प्रजातियां ऐसी हैं जिन्हें 'बिग फॉर' कहा जाता है. ये भारत में सांपों के काटने से होने वाली अधिकांश मौतों के लिए ज़िम्मेदार माने जाते हैं.
ये चार प्रजातियां हैं: कॉमन करैत, इंडियन कोबरा, रसेल वाइपर और सॉ स्केल्ड वाइपर.

सफ़ाईकर्मियों से बात करने के बाद हम गीता कॉलोनी के ही एक झुग्गी-बस्ती में पहुंचे.
यहां रहने वाली काजल ने हमें बताया कि इस दौरान जगह-जगह पानी भरने के कारण सापों के निकलने का ख़तरा बना रहता है.
काजल का कहना है कि आसपास सांप निकलने की वजह से वो बारिश के मौसम में एहतियातन अपने बच्चों को घर से बाहर नहीं निकलने देतीं और सोते वक़्त मच्छरदानी लगाना नहीं भूलतीं.
सांप... जिनके बारे में एक्सपर्ट्स का मानना है कि वे बेहद शर्मीले जीव होते हैं. लेकिन आख़िर वे अपने प्राकृतिक आवास छोड़कर बाहर निकलने को क्यों मजबूर हो रहे हैं?
इन्हीं कारणों को समझने के लिए हम दिल्ली यूनिवर्सिटी के रामानुजन कॉलेज में एनवायरमेंटल स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर गौरव बरहाडिया से मिले.
बढ़े हैं सांप निकलने के मामले?प्रोफ़ेसर गौरव बरहाडिया ने अपने कुछ अन्य साथियों के साथ मिलकर आज से पांच-छह साल पहले दिल्ली में स्नेक साइटिंग के पैटर्न पर शोध किया था.
दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित और विश्वसनीय वैज्ञानिक पत्रिकाओं में से एक नेचर में छपी ये स्टडी बताती है कि साल 2019 से साल 2022 के बीच दिल्ली में सबसे ज़्यादा सांप निकलने के मामले जुलाई और अगस्त महीने में दर्ज हुए.
इसके पीछे के कारण को समझाते हुए वो बताते हैं, ''मानसून में हरियाली बढ़ती है और इस दौरान सांपों का प्रे बेस (यानी सांप के भोजन का मुख्य स्रोत यानी चूहे,गिलहरियां, छछूंदर, पक्षी आदि) बढ़ जाते हैं. तो सांप शिकार के लिए बाहर ज़्यादा निकलते हैं. बारिश का मौसम सांपों के प्रजनन के हिसाब से भी सबसे उपयुक्त समय है.''

प्रोफ़ेसर गौरव बरहाडिया का मानना है कि मेट्रोपॉलिटन शहरों में सांपों के दिखने की बढ़ती घटनाएं क्लाइमेट चेंज का भी एक असर हैं.
वह कहते हैं, '' सांपों के ज़्यादा निकलने को लोग कई बार सांपों की बढ़ती संख्या से जोड़ कर देखने लगते हैं, जबकि ऐसा नहीं है. सांपों का ज़्यादा बाहर निकलने का सीधा संबंध जलवायु परिवर्तन से है. हमारी पृथ्वी की सतह का औसतन तापमान बढ़ रहा है. इसलिए आप देखेंगे कि गर्मियों में सांपों को ज़्यादातर एसी की वेंट, फ़्रिज, कूलर, बाथरूम के आसपास से रेस्क्यू किया जाता है क्योंकि वो ऐसी ठंडी जगहों पर अपने तापमान को सामान्य करने की कोशिश कर रहे होते हैं.''
बीते साल नोएडा स्थित एमिटी यूनिवर्सिटी में बीच क्लास के दौरान एसी की वेंटिलेशन से सांप निकलने का वीडियो सोशल मीडिया पर काफ़ी वायरल हुआ था.
बचने के उपायतो सांप रिहायशी इलाक़ों में न आएं इसके लिए क्या किया जाना चाहिए?
इस सवाल के जवाब में प्रोफ़ेसर गौरव बरहाडिया बताते हैं कि कंक्रीट में तब्दील होते शहरों में जंगल को बचाए रखने की ज़रूरत है.
प्रोफ़ेसर गौरव बरहाडिया कहते हैं, ''नए जंगल नहीं तैयार किए जा सकते तो जो मौजूदा जंगल हैं, उन्हें रेपटाइल फ्रेंडली यानी जहां सांपों को उनकी ज़रूरत की हर चीज़ मिले, वो बनाने की ओर काम करना चाहिए.''
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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