झारखंड के खूंटी ज़िले के एक सरकारी स्कूल की 11 छात्राओं ने नीट परीक्षा पास की है.
स्कूल की 12वीं कक्षा की कुल 28 छात्राओं ने यह परीक्षा दी थी, जिनमें से 11 को सफलता मिली है. सफल होने वाली सभी छात्राएं दलित, आदिवासी और पिछड़े समुदाय से आती हैं.
नीट (नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट) देशभर में मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में दाख़िले के लिए आयोजित की जाने वाली पात्रता परीक्षा है. इसे पास करने के बाद छात्र एमबीबीएस, बीडीएस जैसे स्नातक कोर्सों में एडमिशन के योग्य हो जाते हैं.
दूर-दराज़ क्षेत्र के एक सरकारी स्कूल से इतनी बड़ी संख्या में छात्राओं का नीट पास करना चर्चा का विषय बना हुआ है. हालांकि, कई छात्राओं ने कहा है कि परीक्षा पास करने की ख़ुशी तो है, लेकिन अब मेडिकल कोर्स की फ़ीस भरने को लेकर संकट खड़ा हो गया है. उन्होंने सरकार से आर्थिक मदद की मांग की है.
'संपूर्ण शिक्षा कवच' योजना से मिली मदद
यह सफलता झारखंड के खूंटी ज़िले के कर्रा प्रखंड में स्थित कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय की है. साल 2007 में बना खूंटी ज़िला राजधानी रांची से लगभग 40 किलोमीटर दूर है. यहां की प्रमुख भाषाएं नागपुरी और मुंडारी हैं.
इस स्कूल में साइंस स्ट्रीम की पढ़ाई वर्ष 2023 से शुरू हुई. इससे पहले केवल आर्ट्स की पढ़ाई होती थी. स्कूल की वॉर्डन रश्मि कुमारी ने बीबीसी को बताया, "2023 में बायोलॉजी की पढ़ाई शुरू की गई, जिसमें 28 छात्राओं ने दाख़िला लिया."
रश्मि कुमारी के मुताबिक़, ज़िला प्रशासन ने नीट की तैयारी के लिए 'सपनों की उड़ान' नामक एक योजना शुरू की थी, जिसे बाद में 'संपूर्ण शिक्षा कवच' कहा जाने लगा. इसी के तहत स्कूल को फ़िजिक्स, केमिस्ट्री और बायोलॉजी के शिक्षक उपलब्ध कराए गए. साथ ही छात्राओं को फ्री वाई-फ़ाई के ज़रिए ऑनलाइन गाइडेंस भी दी गई.
भारत सरकार ने अगस्त 2004 में कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय योजना की शुरुआत की थी. इसका उद्देश्य दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्ग की लड़कियों के लिए आवासीय शिक्षा उपलब्ध कराना है.
इन्हीं में से एक छात्रा, रोशनी तिग्गा, उरांव आदिवासी समुदाय से आती हैं.
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खूंटी ज़िले के गुयू गांव की रहने वालीं रोशनी तिग्गा ने नीट परीक्षा पास कर अपने गांव और परिवार का नाम रोशन किया है. गुयू गांव उरांव और मुंडा आदिवासी समुदायों का है. रोशनी के पिता टेंबा तिग्गा किसान हैं और मां फूलो देवी गृहिणी हैं.
बीबीसी से बातचीत में रोशनी ने बताया, "मैट्रिक के बाद हमने सोचा था कि साइंस पढ़ेंगे, लेकिन हमारे स्कूल में साइंस नहीं थी, सिर्फ़ आर्ट्स स्ट्रीम थी. जब 2023 में साइंस शुरू हुई, तो हमने मेहनत की और नीट पास किया. लेकिन पापा को नीट के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं थी. गांव में भी किसी को इसके बारे में पता नहीं था."
पांच भाई-बहनों में से एक रोशनी हड्डी रोग विशेषज्ञ बनना चाहती हैं. उन्होंने कहा, "हमारे गांव में कोई सरकारी अस्पताल नहीं है. लोग झोलाछाप डॉक्टरों से इलाज कराते हैं. अगर मैं डॉक्टर बन गई तो गांव के लोगों के लिए काम करूंगी. यहां हड्डियों की चोटें बहुत होती हैं."
रोशनी की तरह ही कस्तूरबा स्कूल की एक और छात्रा रूपांजलि कुमारी ने भी नीट परीक्षा पास की है. उनके पिता देवचंद महतो किसान हैं.
बीबीसी से बात करते हुए रूपांजलि ने कहा, "जब मैं 10वीं में आई, तभी पहली बार नीट के बारे में सुना था. स्कूल में हमें अच्छे से समझाया गया और पढ़ाया भी गया. पास होने के बाद मम्मी-पापा बहुत खुश हैं, लेकिन मुझे प्राइवेट कॉलेज मिल सकता है, जिसकी फ़ीस भरना मुश्किल है. अगर सरकार स्कॉलरशिप दे तो हम मेडिकल की पढ़ाई जारी रख सकते हैं."
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दरअसल, कक्षा छह से 12वीं तक चलने वाले कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय में कोई फ़ीस नहीं लगती है.
झारखंड एजुकेशन प्रोजेक्ट काउंसिल की वेबसाइट के मुताबिक़, राज्य में इस वक़्त 203 कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय चल रहे हैं. छात्राओं का पूरा ख़र्च सरकार उठाती है.
यही वजह है कि किसी भी आर्थिक पृष्ठभूमि से आने वाली छात्रा यहां पढ़ाई कर सकती है.
वॉर्डन रश्मि कुमारी बताती हैं, "मेरे स्कूल में 500 बच्चियां पढ़ती हैं. उनमें से कई बच्चियों के सिंगल पैरेंट हैं और कई ऐसी भी हैं जिनके माता-पिता नहीं हैं. ये सभी ग़रीब परिवारों से आती हैं. ऐसे में इनको 12वीं से आगे की शिक्षा के लिए भी आर्थिक सहायता चाहिए."
अब मेडिकल कॉलेज में लगने वाली फ़ीस का सवाल इन सफल छात्राओं के लिए सबसे अहम है.
रोशनी तिग्गा कहती हैं, "अगर फ़ीस का इंतज़ाम नहीं हुआ तो बीएससी नर्सिंग में एडमिशन ले लेंगे. सरकार ही फीस देगी, तभी मेडिकल की पढ़ाई संभव है."
रोशनी के पिता टेंबा तिग्गा बीबीसी से बातचीत में कहते हैं, "हमने इसके बारे में पहले कभी नहीं सुना था. अख़बार में बेटी का नाम छपा है. गांव में किसी को कुछ मालूम नहीं है. ऐसे में हमें पैसे कौन देगा? हम तो खेती करके किसी तरह गुज़ारा करते हैं. हमारे पास हज़ारों रुपये नहीं हैं, लाखों की बात क्या करें?"
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साल 2023 से खूंटी ज़िले के दो कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों और दस अन्य सरकारी स्कूलों में आईआईटी-जेईई और नीट की तैयारी के लिए ज़िला प्रशासन की मदद से कोचिंग दी जा रही है. यह कोचिंग ऑनलाइन और ऑफ़लाइन दोनों माध्यमों से संचालित हो रही है.
कस्तूरबा विद्यालयों में छात्राओं के लिए आईसीटी रूम (कंप्यूटर लैब) बनाए गए हैं, जबकि अन्य सरकारी स्कूलों के छात्र-छात्राएं स्मार्टफोन के ज़रिए ऑनलाइन कक्षाओं में हिस्सा लेते हैं.
खूंटी के कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय में आईआईटी-जेईई की तैयारी कराई जाती है. इसी ज़िले के कर्रा ब्लॉक में कस्तूरबा विद्यालय में नीट की कोचिंग दी जाती है.
इस साल खूंटी के कस्तूरबा विद्यालय की 26 छात्राओं ने आईआईटी मेन्स परीक्षा में सफलता पाई है. वहीं, नीट परीक्षा में कर्रा के विद्यालय की 11 छात्राओं के साथ-साथ खूंटी के एक अन्य सरकारी स्कूल की छात्रा ने भी सफलता हासिल की है.
हालांकि इन उपलब्धियों के बीच सबसे बड़ा सवाल यही है कि इन छात्राओं की आगे की पढ़ाई का ख़र्च कौन उठाएगा.
खूंटी की ज़िला शिक्षा पदाधिकारी अपरूपा पाल चौधरी ने बीबीसी से कहा, "हमारा यह कार्यक्रम ज़िला प्रशासन के फंड से चलता है. इसमें कोचिंग का प्रावधान है लेकिन कॉलेज फ़ीस का नहीं. यह बहुत महत्वपूर्ण सवाल है और हम बच्चों की मदद के लिए सीएसआर और कुछ अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से भी अपील कर चुके हैं. फिलहाल हमारे पास इस मुश्किल सवाल का कोई सटीक उत्तर नहीं है."
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