ऑस्ट्रेलिया लंबे समय से भारतीय छात्रों की उच्च शिक्षा की पसंदीदा जगह रहा है.
ऑस्ट्रेलिया के डिपार्टमेंट ऑफ़ एजुकेशन के 2024 के आँकड़ों के मुताबिक यहाँ के 43 विश्वविद्यालयों में 1 लाख 38 हज़ार से अधिक भारतीय छात्र पढ़ाई कर रहे हैं.
यह संख्या ऑस्ट्रेलिया में पढ़ने वाले कुल विदेशी छात्रों का क़रीब 16 फ़ीसदी हिस्सा है.
संख्या के लिहाज़ से भारतीय छात्रों से आगे सिर्फ़ चीनी छात्र हैं, जिनकी हिस्सेदारी 20 फ़ीसदी से अधिक है.
इसके बाद नेपाल, ब्राज़ील और मलेशिया जैसे देशों का नाम आता है.
भारतीय समेत तमाम विदेशी छात्र इस समय ऑस्ट्रेलिया में वीज़ा फ़ीस और रिज़र्व फंड की सीमा बढ़ाए जाने को लेकर दबाव में हैं.
सुरक्षित धनराशि यानी रिज़र्व फंड वह राशि होती है, जिसे छात्रों को अपने खाते में दिखाना होता है ताकि यह प्रमाणित किया जा सके कि उनके पास ऑस्ट्रेलिया में पढ़ाई के दौरान ख़र्च चलाने के लिए पर्याप्त पैसा है.
भारतीय स्टूडेंट्स क्या कह रहे हैं?सिडनी की न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी में हमारी मुलाक़ात अनुष्का गोस्वामी से हुई, जो भारत से हैं और यहाँ पिछले चार साल से पढ़ रही हैं.
जब हमने उनसे इस बदलाव के असर के बारे में पूछा, तो उन्होंने साफ़ कहा कि इस बढ़ोतरी से वो भी आर्थिक दबाव महसूस कर रही हैं.
दरअसल, इसी साल अप्रैल में ऑस्ट्रेलिया सरकार ने विदेशी छात्रों के लिए वीज़ा फ़ीस 1600 ऑस्ट्रेलियाई डॉलर से बढ़ाकर 2000 ऑस्ट्रेलियाई डॉलर कर दी है.
रिज़र्व फंड की सीमा भी 24 हज़ार डॉलर से बढ़ाकर 27,500 डॉलर कर दी गई है.
इस बदलाव ने विदेशी छात्रों के लिए ऑस्ट्रेलिया में पढ़ाई को और महँगा बना दिया है. भारतीय छात्र भी अब इन बढ़े हुए खर्चों का दबाव महसूस कर रहे हैं.
अनुष्का गोस्वामी कहती हैं, "जब मैं यहाँ चार साल पहले आई थी, तब वीज़ा फ़ीस सिर्फ़ 600 डॉलर थी. अब ये 2000 से भी ज़्यादा हो गई है. इसके ऊपर कॉलेज की फ़ीस भी है. ये सब मिलाकर एक छात्र को सोचने पर मजबूर कर देता है कि क्या हमें वाकई यहाँ पढ़ने आना चाहिए?"
हालांकि अनुष्का यह भी कहती हैं कि यहाँ पढ़ाई के जो मौक़े और स्तर हैं, वह रोज़गार की संभावनाओं को बहुत मज़बूत बनाते हैं.
उनके मुताबिक़, बढ़ी हुई फ़ीस से ज़्यादा क़ीमती यहाँ की शिक्षा है.
इसी वजह से वो फ़ीस और रिज़र्व फ़ंड में हुई बढ़ोतरी के बावजूद अपनी पढ़ाई जारी रखेंगीं.
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भारतीय या अन्य विदेशी स्टूडेंट्स के लिए राहत की बात यह है कि यहाँ के सभी विश्वविद्यालय सरकार पर यह दबाव बनाने में जुटे हैं कि वह बढ़ी हुई फ़ीस को वापस ले.
यह इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि ऑस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालयों की आय का एक बड़ा स्रोत विदेशी छात्र-छात्राएं हैं.
अगर विदेशी स्टूडेंट्स की तादाद घटती है, तो विश्वविद्यालयों को आर्थिक नुक़सान उठाना पड़ेगा. इसीलिए विश्वविद्यालयों की पहली कोशिश यह है कि स्टूडेंट्स तक यह संदेश पहुँचे कि वे उनके साथ खड़े हैं.
न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी में ही हमें कृषा मिलीं, जो भारतीय छात्रा होने के साथ-साथ वहाँ के स्टूडेंट्स संघ की पदाधिकारी भी हैं.
उनका कहना है, "यह निश्चित रूप से चिंता का विषय है. लेकिन जैसे ही यह फ़ैसला आया, विश्वविद्यालय की तरफ़ से हमें ईमेल कर बताया गया कि वे सरकार से बात कर रहे हैं और उन्हें समझाने की कोशिश कर रहे हैं."
यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यू साउथ वेल्स (यूएनएसडब्ल्यू) की इंडियन सोसाइटी के अध्यक्ष और छात्र बाला गुरुकुगम इसे एक अलग नज़रिए से समझाते हैं.
अमेरिका में भारतीय छात्रों के साथ हो रही सख़्ती का ज़िक्र करते हुए वो कहते हैं कि जिस तरह वहाँ छात्रों को चुनौतियाँ आ रही हैं, ऐसे में ऑस्ट्रेलिया उनके लिए एक नई मंज़िल बन सकता है.
हालाँकि, जो स्टूडेंट्स अभी भारत में हैं और ऑस्ट्रेलिया आने की सोच रहे हैं, वे बढ़ी हुई फ़ीस को लेकर चिंतित हैं.
और जो स्टूडेंट्स पहले से यहाँ पढ़ाई कर रहे हैं, उन पर इसका असर पड़ ही रहा है.
स्टूडेंट्स की बढ़ती संख्या है वजह?दरअसल, ऑस्ट्रेलिया में विदेशी स्टूडेंट्स की तादाद लगातार बढ़ती गई है, ख़ासतौर पर कोविड महामारी के बाद. ऑस्ट्रेलिया के डिपार्टमेंट ऑफ़ एजुकेशन के आँकड़ों के मुताबिक़ , 2022 में ऑस्ट्रेलिया में विदेशी स्टूडेंट्स की संख्या पाँच लाख पार कर गई थी.
हालाँकि 2023 में इसमें गिरावट आई और यह क़रीब पौने चार लाख रही.
स्टूडेंट्स की बढ़ती संख्या जहाँ विश्वविद्यालयों के लिए फ़ायदेमंद है, वहीं इसके कुछ ऐसे असर भी हैं जिनसे स्थानीय लोगों को दिक़्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
सबसे बड़ी समस्या है हाउसिंग सेक्टर पर पड़ने वाला दबाव. हर स्टूडेंट्स को विश्वविद्यालय के छात्रावास में जगह मिलना संभव नहीं होता. इसलिए ज़्यादातर छात्र-छात्राएं कैंपस के बाहर किराए पर रहते हैं.
इनकी संख्या बढ़ने से मांग ज़्यादा हो जाती है, और फिर मांग और आपूर्ति का नियम लागू होता है, नतीजतन किराया बढ़ जाता है.
इससे मकान मालिकों को तो फ़ायदा होता है, लेकिन यह उन ऑस्ट्रेलियाई नागरिकों के लिए चुनौती बनता जा रहा है, जिनके पास ख़ुद का घर नहीं है और जो किराए के मकानों में रहते हैं.
यहीं से यह मामला राजनीतिक मुद्दा बन गया है. ऑस्ट्रेलिया की सरकार विदेशों से आने वाले स्टूडेंट्स की तादाद को हर साल 2 लाख 70 हज़ार तक सीमित करना चाहती है.
ऑस्ट्रेलिया के शैक्षणिक संस्थानों और अर्थव्यवस्था में विदेशी स्टूडेंट्स का योगदान काफ़ी अहम है.
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डेस्टिनेशन न्यू साउथ वेल्स के लिए नीति तैयार करने वाली संस्था के जनरल मैनेजर (पॉलिसी) स्टीफ़ेन माहोने कहते हैं, "हम अधिक से अधिक विदेशी स्टूडेंट चाहते हैं. लेकिन घरेलू हाउसिंग संकट की वजह से सरकार ने यह फ़ैसला लिया है, जिसकी मार छात्रों पर पड़ी है."
फ़ॉर फ्यूचर स्टूडेंट्स संस्था से जुड़े, यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिडनी के एसोसिएट वाइस प्रेसिडेंट शेन ग्रिफ़िन कहते हैं, "हमारे लिए भारतीय स्टूडेंट्स की बहुत अहमियत है. इसी कारण हमने उनके लिए वज़ीफ़ों का भी प्रावधान रखा है."
वेस्टर्न सिडनी यूनिवर्सिटी की प्रोवोस्ट प्रो. डेबोराह स्वीनी मानती हैं कि फ़ीस में हुई बढ़ोतरी का ऑस्ट्रेलियाई शिक्षा प्रणाली पर उल्टा असर पड़ेगा, इसीलिए विश्वविद्यालयों की ओर से सरकार से अनुरोध किया जा रहा है कि वह इस पर पुनर्विचार करे.
उनकी दलील है कि विदेशी स्टूडेंट्स से मिलने वाला रेवेन्यू ऑस्ट्रेलिया की शिक्षा प्रणाली और अर्थव्यवस्था के लिए बेहद महत्वपूर्ण है.
और भारत जैसे देशों के स्टूडेंट्स का भरोसा बनाए रखना ज़रूरी है, हालाँकि ऑस्ट्रेलियाई सरकार इस पूरे मुद्दे को एक अलग नज़रिए से देखती है.
सरकार का क्या कहना है?जब ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री पेनी वॉन्ग से फ़ीस में हुई बढ़ोतरी को लेकर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने यह स्वीकार किया कि ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था में अंतरराष्ट्रीय स्टूडेंट्स का अहम योगदान है.
लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा कि सरकार की कोशिश शिक्षा के क्षेत्र में सुधार की है, और इसी दिशा में यह क़दम उठाया गया है.
पेनी वॉन्ग ने कहा, "देखिए, हमारे लिए शिक्षा एक अहम निर्यात है. ऑस्ट्रेलिया आने वाले अंतरराष्ट्रीय स्टूडेंट्स हमारी अर्थव्यवस्था का बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. साथ ही, ये भारत जैसे देशों के साथ हमारे द्विपक्षीय और क्षेत्रीय संबंधों का भी एक अहम हिस्सा हैं.''
वो कहती हैं, ''मेरे पिता ऑस्ट्रेलिया में 'कोलंबो योजना' के तहत पढ़ाई करने आए थे. मैंने अपने जीवन में उस अनुभव का महत्व और हमारे द्विपक्षीय रिश्तों के दीर्घकालिक असर को महसूस किया है. शिक्षा के क्षेत्र में कई सुधार किए गए हैं, जो शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए हैं. हम शैक्षणिक प्रस्तावों को लेकर स्पष्ट रहे हैं, हम अंतरराष्ट्रीय स्टूडेंट्स का स्वागत जारी रखेंगे. लेकिन कोविड के बाद उनकी संख्या में जो तेज़ी से वृद्धि हुई है, उसमें स्थिरता लाना और गुणवत्ता को सुनिश्चित करना भी हमारा लक्ष्य है."
विदेश मंत्री ने वीज़ा फ़ीस या रिज़र्व फंड में हुई बढ़ोतरी के फ़ैसले को वापस लेने के बारे में कुछ नहीं कहा.
अमेरिका में बढ़ती सख़्ती के बीच ऑस्ट्रेलिया अभी भी भारतीय छात्रों को आकर्षित करने की कोशिश में है और भारत में कैंपस खोलने जैसी पहल कर रहा है.
लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या बढ़े हुए खर्चों के बीच भारतीय स्टूडेंट्स ऑस्ट्रेलिया को पहले जितना ही पसंदीदा विकल्प मानते रहेंगे?
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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