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अमेरिका में नहीं बनाई दवाई तो डोनाल्ड ट्रंप वसूलेंगे 200% टैरिफ, कॉपर पर भी 50% टैरिफ का ऐलान, जानें क्या है अमेरिकी प्रेसिडेंट का प्लान

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर अपने आर्थिक नीतियों के जरिए वैश्विक व्यापार में हलचल मचा दी है. ट्रंप ने फार्मास्युटिकल्स और कॉपर आयात पर भारी-भरकम टैरिफ लगाने की घोषणा की है. अमेरिका में नहीं बनी दवाइयों को वहां बेचने पर 200% टैरिफ का भुगतान करना होगा. अमेरिका द्वारा दवाइयों के आयात पर 200% और कॉपर पर 50% टैरिफ वसूला जाएगा. यह कदम उनकी 'अमेरिका फर्स्ट' नीति का हिस्सा है, जिसका मकसद घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देना और विदेशी आयात पर निर्भरता कम करना है.



क्या है ट्रंप का टैरिफ प्लानडोनाल्ड ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल में वैश्विक व्यापार को संतुलित करने और अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए टैरिफ को अपनी नीति का केंद्र बनाया है. अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत से ही ट्रंप की टैरिफ़ नीतियां चर्चा में हैं. अब उनका कहना है कि विदेशी कंपनियां, खासकर फार्मास्युटिकल्स और खनिज क्षेत्रों में, अमेरिका को लंबे समय से लूट रही हैं. इसलिए वे विदेशी दवा कंपनियां अमेरिका में अपनी उत्पादन इकाइयां स्थापित करें, जिससे स्थानीय रोजगार बढ़े और दवाओं की कीमतें नियंत्रित हों.



ट्रंप ने कहा है कि जो दवाएं अमेरिका में नहीं बनाई जाएंगी, उन पर 200% टैरिफ लगाया जाएगा. इसका उद्देश्य विदेशी दवा निर्माताओं को अमेरिका में उत्पादन शुरू करने के लिए प्रेरित करना है. इसके अलावा कॉपर, जो इलेक्ट्रिक वाहनों, सैन्य उपकरणों और बिजली ग्रिड जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण है, पर 50% टैरिफ लगाने का ऐलान किया गया है. ताकि अमेरिका में कॉपर उत्पादन को बढ़ावा मिल सके.

ट्रंप की नीति का आधार 'रेसिप्रोकल टैरिफ' है, जिसके तहत अमेरिका उन देशों पर उतना ही टैरिफ लगाएगा, जितना वे अमेरिकी सामानों पर लगाते हैं. ट्रंप का कहना है कि इससे व्यापार घाटा कम होगा और अमेरिकी उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा. टैरिफ से आयातित सामान महंगा होगा, जिससे अमेरिकी कंपनियों को प्रतिस्पर्धा में फायदा होगा.

अमेरिकी प्रेसिडेंट ट्रंप का लक्ष्य है कि अमेरिका महत्वपूर्ण सामानों, जैसे दवाइयों और खनिजों, के लिए विदेशी आपूर्ति पर कम निर्भर हो.



भारत पर क्या होगा असर? भारत, जो अमेरिका को जेनेरिक दवाओं का एक बड़ा निर्यातक है, पर इस टैरिफ का सीधा असर पड़ सकता है. भारतीय दवा कंपनियों को या तो अमेरिका में उत्पादन शुरू करना होगा या फिर भारी टैरिफ का सामना करना पड़ेगा. इससे दवाओं की कीमतें बढ़ सकती हैं. हालांकि इसका असर अमेरिकी उपभोक्ताओं पर भी पड़ेगा.

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