तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार
बिहार में दलितों की स्थिति को समझने के लिए राष्ट्रीय दलित एवं आदिवासी संगठन परिसंघ (NACDAOR) के अध्यक्ष अशोक भारती ने बुधवार को एक नई रिपोर्ट जारी की है, जिसका शीर्षक है ‘दलित क्या चाहते हैं’। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि बिहार के दलित समुदाय में असंतोष बढ़ रहा है और वे बदलाव की उम्मीद कर रहे हैं। भारती ने कहा कि नीतीश कुमार के प्रति दलितों की नाराजगी बढ़ रही है, जिससे वे आगामी चुनाव में उनसे दूर जा सकते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में अनुसूचित जाति (SC) की जनसंख्या 19.65% है, लेकिन उन्हें उनके अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है। शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्र में दलितों की स्थिति चिंताजनक है, और वे इस असमानता के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं।
दलितों का नीतीश कुमार से मोहभंगरिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि इस बार के चुनाव में दलितों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। भारती ने कहा कि बिहार के दलित बदलाव की ओर अग्रसर हैं, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि वे किस दिशा में जाएंगे। ऐसा प्रतीत होता है कि वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से असंतुष्ट हैं।
साक्षरता दर में कमीरिपोर्ट के अनुसार, बिहार में दलितों की साक्षरता दर 55.9% है, जो राष्ट्रीय औसत 66.1% से कम है। लगभग 62% दलित अभी भी अशिक्षित हैं, और मुसहर समुदाय की स्थिति सबसे खराब है, जहां साक्षरता दर 20% से भी कम है।
शिक्षा मंत्रालय के वार्षिक सर्वेक्षण के अनुसार, 19.65% जनसंख्या और 17% संवैधानिक आरक्षण के बावजूद, केवल 5.6% शिक्षक और छात्र दलित हैं।
सरकारी नौकरियों में कमीरिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि लगभग 63.4% दलित गैर-मजदूर हैं, जिनमें अधिकतर महिलाएं और युवा शामिल हैं। काम करने वालों में से 46% को साल में छह महीने से कम काम मिलता है। सरकारी नौकरियों में दलितों की संख्या केवल 1.3% है।
अत्याचार की बढ़ती घटनाएं2010 से 2022 के बीच, बिहार में दलितों पर अत्याचार के 85,000 से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं, जो हर दिन 17 घटनाओं के बराबर है।
बिहार में विधानसभा चुनाव दो चरणों में होंगे: पहले चरण का मतदान 6 नवंबर को और दूसरे चरण का मतदान 11 नवंबर को होगा, जबकि मतगणना 14 नवंबर को होगी। इस बार नीतीश कुमार की एनडीए सरकार और विपक्षी दलों के बीच सीधा मुकाबला होगा।
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