इस्लामाबाद, 22 अगस्त . पाकिस्तान का वैश्विक स्तर पर अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर किया जाने वाला दावा पूरी तरह खोखला साबित हो रहा है. पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में “आजादी” शब्द महज एक विडंबना बनकर रह गया है. ब्रिटेन स्थित मीडिया पोर्टल मिल्ली क्रॉनिकल की रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि युवा ब्लॉगर और कवयित्री असमा बतूल का मामला इसका ताज़ा उदाहरण है. उनका ‘गुनाह’ सिर्फ इतना था कि उन्होंने अपनी कविता में महिलाओं के साथ हो रहे यौन उत्पीड़न और शोषण को उजागर किया. बहस छेड़ने के बजाय, उनकी पंक्तियों ने स्थानीय मौलवियों को भड़का दिया, जिन्होंने इसे ‘ईशनिंदा’ करार दिया. कुछ ही दिनों में बतूल को कठोर क़ानूनों के तहत गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि उग्र भीड़ ने उनके घर पर हमला कर दिया. सरकार ने उन्हें सुरक्षा देने के बजाय कट्टरपंथियों के आगे घुटने टेक दिए और कवि की कलम को जेल का कारण बना दिया.
रिपोर्ट में कहा गया कि पीओके में असहमति की आवाजों को दबाना कोई नया चलन नहीं है. नीलम घाटी में पत्रकार हयात अवान और कार्यकर्ताओं वासी ख्वाजा व अजहर मुगल को सिर्फ इस कारण हिरासत में ले लिया गया कि उन्होंने लड़कियों के लिए सेना द्वारा चलाए जा रहे हथियार प्रशिक्षण कार्यक्रम पर सवाल उठाए थे. सोशल मीडिया पर किए गए कुछ पोस्ट को भी असहनीय माना गया और उन्हें जेल भेज दिया गया.
रिपोर्ट में साफ कहा गया कि सेना या उसकी गतिविधियों पर सवाल उठाना प्रतिबंधित है. स्थानीय प्रेस क्लबों ने उनकी रिहाई की मांग करते हुए प्रदर्शन भी किए, लेकिन हिरासत में लिए गए ये लोग आज तक कैद हैं. यह बताता है कि पाकिस्तान की सत्ता संरचना को चुनौती देना कितना व्यर्थ है.
अंतरराष्ट्रीय निगरानी संगठनों ने भी पाकिस्तान में बिगड़ती प्रेस स्वतंत्रता पर चिंता जताई है. 2025 में पाकिस्तान की प्रेस स्वतंत्रता रैंकिंग गिरकर 180 देशों में 158वें स्थान पर आ गई, जो अब तक का सबसे खराब स्तर है. रिपोर्ट के अनुसार, देश में डर, धमकी और मनमाने ढंग से की जाने वाली गिरफ्तारियों का माहौल है, जिसमें पत्रकारों पर राज्य और गैर-राज्य दोनों तत्वों का दबाव बना हुआ है.
विडंबना यह है कि पाकिस्तान, अपनी दयनीय स्थिति के बावजूद, वैश्विक मंचों पर खुद को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का रक्षक बताता है और अन्य देशों में सेंसरशिप की आलोचना करता है. लेकिन पीओके जैसे इलाकों में रहने वालों के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सिर्फ एक ‘खतरनाक भ्रम’ है.
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डीएससी/
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