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परबत्ता विधानसभा सीट पर जेडीयू-आरजेडी के बीच शह-मात की जंग, जानें कौन किस पर भारी?

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Patna, 17 अक्टूबर . बिहार के खगड़िया जिले की परबत्ता विधानसभा सीट खगड़िया Lok Sabha क्षेत्र का अहम हिस्सा है. यह ग्रामीण इलाका अपनी समृद्ध सियासी विरासत और बदलते Political समीकरणों के लिए जाना जाता है. कभी कांग्रेस का गढ़ रही इस सीट पर पिछले कुछ दशकों में जनता दल यूनाइटेड (जदयू) और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) का दबदबा रहा है.

1980 के दशक तक परबत्ता में कांग्रेस का एकछत्र राज था. इस सीट पर पार्टी ने सात बार जीत दर्ज की, लेकिन आखिरी जीत 1985 में मिली. इसके बाद से कांग्रेस इस सीट पर वापसी के लिए जूझ रही है. 2000 के बाद से परबत्ता जेडीयू और आरजेडी के बीच सियासी रस्साकशी का मैदान बन गया. जेडीयू ने इस सीट को अपने कब्जे में लेने के लिए मजबूत रणनीति बनाई और अब तक पांच बार जीत हासिल की. वहीं, आरजेडी ने दो बार इस सीट पर कब्जा जमाया, जबकि जनता दल, Samajwadi Party, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी और एक निर्दलीय उम्मीदवार ने भी एक-एक बार जीत का स्वाद चखा.

साल 2000 में आरजेडी ने सम्राट चौधरी के नेतृत्व में परबत्ता में पहली बार जीत हासिल की. सम्राट ने 2010 में भी इस सीट पर जीत दर्ज की, लेकिन बाद में वे बीजेपी में शामिल हो गए और वर्तमान में एनडीए Government में उपChief Minister हैं.

दूसरी ओर जेडीयू ने 2005 से 2015 तक लगातार तीन बार इस सीट पर कब्जा जमाया. 2010 में आरजेडी ने कड़े मुकाबले में जीत हासिल की, लेकिन 2015 में यह सीट फिर जेडीयू के खाते में चली गई. 2020 में चिराग पासवान की बगावत के बावजूद जेडीयू के संजीव कुमार ने आरजेडी के दिगंबर प्रसाद तिवारी को हराकर जीत बरकरार रखी. जेडीयू के रामानंद प्रसाद सिंह इस सीट से चार बार विधायक चुने गए, जो उनकी लोकप्रियता को दर्शाता है.

परबत्ता में मतदाताओं की संरचना इसकी सियासत को गहराई से प्रभावित करती है. 2020 के विधानसभा चुनाव में यहां 3,08,043 पंजीकृत मतदाता थे, जो 2024 के Lok Sabha चुनाव में बढ़कर 3,22,082 हो गए. इनमें 6.96 प्रतिशत अनुसूचित जाति और 11.8 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं. भूमिहार, कुशवाहा और मुस्लिम वोटरों की अच्छी-खासी संख्या इस सीट पर निर्णायक भूमिका निभाती है. अनुसूचित जाति के मतदाता भी अहम प्रभाव रखते हैं.

परबत्ता में बाढ़ एक बड़ी समस्या है, जो स्थानीय लोगों की आजीविका को प्रभावित करती है. कृषि और रोजगार के अवसरों की कमी भी प्रमुख मुद्दे हैं. ये समस्याएं हर चुनाव में उम्मीदवारों की रणनीति और मतदाताओं के फैसले को प्रभावित करती हैं.

परबत्ता सीट का इतिहास है कि यह क्षेत्र बदलते समय के साथ अपनी सियासी प्राथमिकताएं भी बदलता रहा है. जेडीयू और आरजेडी के बीच कांटे की टक्कर के साथ यह सीट बिहार की सियासत में हमेशा चर्चा में रहती है. आने वाले चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या जेडीयू अपना दबदबा कायम रख पाएगी, या कोई नया सियासी समीकरण इस सीट का रुख मोड़ेगा.

एकेएस/डीएससी

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