जून 2025 का महीना धार्मिक आस्था और आध्यात्मिक साधना से परिपूर्ण रहने वाला है। हिंदू पंचांग के अनुसार इस महीने एक के बाद एक कई शुभ व्रत और त्योहार पड़ने वाले हैं, जो न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि इनसे समाज और परिवार में भी सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। चाहे गंगा दशहरा का पुण्य स्नान हो या गुप्त नवरात्रि की तांत्रिक साधनाएं, यह महीना साधकों और श्रद्धालुओं के लिए विशेष फलदायक रहेगा।
भारतीय संस्कृति में समय-समय पर आने वाले व्रत और पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं होते, बल्कि वे समाज की चेतना को ऊर्जा, संतुलन और दिशा प्रदान करने वाले अवसर होते हैं। जून 2025 का महीना ऐसी ही अनेक धार्मिक गतिविधियों से भरा रहेगा, जिनमें पवित्र स्नान, कठोर उपवास, साधना और भक्ति प्रमुख रूप से शामिल हैं। इस महीने आषाढ़ मास का आगमन भी होगा जो गुप्त साधनाओं और विशेष तांत्रिक आराधनाओं के लिए जाना जाता है।
इस लेख में हम न केवल जून 2025 के व्रत-त्योहारों की तिथियों की चर्चा करेंगे, बल्कि उनके धार्मिक महत्व, लोक परंपराओं और जीवन पर उनके प्रभाव पर भी प्रकाश डालेंगे।
आइए विस्तार से जानें जून 2025 में आने वाले प्रमुख व्रत और त्योहारों के बारे में।
जून 2025 के प्रमुख व्रत और त्योहार
गंगा दशहरा – 5 जून 2025
ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को गंगा दशहरा मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भागीरथ की तपस्या से गंगा धरती पर अवतरित हुई थीं। इस दिन गंगा स्नान, दान और पुण्य करने से दस प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है।
महत्व
गंगा दशहरा के दिन गंगा नदी का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था। यह दिन आत्मशुद्धि, मोक्ष व दस प्रकार के पापों से मुक्ति का प्रतीक है।
अनुष्ठान
गंगा स्नान, गंगाजल का छिड़काव, तुलसी पत्र, दूध, शहद आदि से पूजन और दान-पुण्य।
स्थान विशेष
हरिद्वार, वाराणसी, प्रयागराज, ऋषिकेश जैसे तीर्थस्थलों पर भारी संख्या में श्रद्धालु गंगा स्नान करते हैं।
निर्जला एकादशी – 6 जून 2025
साल की सभी 24 एकादशियों में से यह सबसे श्रेष्ठ मानी जाती है। इस दिन बिना अन्न और जल ग्रहण किए व्रत रखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत से समस्त एकादशियों के समान पुण्य प्राप्त होता है।
विशेषता
साल की सबसे कठिन एकादशी, जिसमें बिना अन्न और जल के व्रत रखा जाता है। इसे 'भीम एकादशी' भी कहा जाता है।
मान्यता
कहा जाता है कि एक बार भीमसेन ने ऋषि व्यास से व्रत न रखने पर समाधान माँगा, तब उन्होंने केवल निर्जला एकादशी का व्रत रखने को कहा, जो सभी एकादशियों का फल देता है।
उपवास फल
शरीर और मन की शुद्धि के साथ-साथ समस्त पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति।
ज्येष्ठ पूर्णिमा और वट सावित्री पूर्णिमा – 10-11 जून 2025
10 जून को वट सावित्री पूर्णिमा का व्रत रखा जाएगा, जबकि उदयातिथि के अनुसार ज्येष्ठ पूर्णिमा 11 जून को होगी। महिलाएं इस दिन वट वृक्ष की पूजा कर अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं।
10 जून (सोमवार) – वट सावित्री व्रत
पति की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए महिलाएं वटवृक्ष की पूजा करती हैं, जैसे सावित्री ने अपने तप से यमराज से अपने पति सत्यवान को पुनः जीवित किया था।
11 जून (मंगलवार) – ज्येष्ठ पूर्णिमा
यह दिन स्नान, दान और व्रत के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। ऋषियों के सम्मान में इस दिन यज्ञ-दान का विशेष महत्व होता है।
योगिनी एकादशी – 21 जून 2025
यह व्रत भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित होता है। यह व्रत पापों के नाश और मोक्ष की प्राप्ति के लिए किया जाता है।
धार्मिक कथा
यह एकादशी कुबेर के सेवक हेममाली और उसकी पत्नी की कथा से जुड़ी है। व्रत के प्रभाव से उन्हें अपने पापों से मुक्ति मिली थी। मानसिक शुद्धि, पाप-क्षय और भगवान विष्णु की विशेष कृपा पाने के लिए यह व्रत रखा जाता है।
आषाढ़ अमावस्या – पितृ पूजन का दिन - 25 जून 2025
इस दिन पितरों की शांति और आत्मा की मुक्ति के लिए तर्पण, श्राद्ध व दान-पुण्य किया जाता है। यह दिन खासतौर पर पितृ पूजन के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, श्राद्ध और ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है। यह अमावस्या रात्रिकालीन साधना, ध्यान और आत्मविचार के लिए भी उपयुक्त मानी जाती है।
गुप्त नवरात्रि – 26 जून 2025 से प्रारंभ
गुप्त नवरात्रि मुख्यतः तांत्रिक साधना और माता की दस महाविद्याओं की आराधना का विशेष काल होता है। यह नौ दिवसीय साधना काल शक्तिसाधकों के लिए अत्यंत फलदायक होता है। आषाढ़ शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाने वाला यह पर्व साधकों के लिए विशेष महत्व रखता है।
दस महाविद्याओं की आराधना
काली, तारा, भुवनेश्वरी, भैरवी आदि महाशक्तियों की उपासना के लिए यह समय उपयुक्त है। यह पर्व सामान्य रूप से मनाया नहीं जाता, लेकिन तांत्रिक, साधक, और योगी इसे अत्यंत श्रद्धा से मनाते हैं।
जगन्नाथ रथ यात्रा – 27 जून 2025 से प्रारंभ
पुरी (ओडिशा) की प्रसिद्ध रथ यात्रा 27 जून से शुरू होगी। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा रथ पर सवार होकर अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर जाते हैं। यह यात्रा आस्था, उल्लास और भक्ति का अनूठा संगम होती है।
धार्मिक महत्त्व
यह यात्रा भगवान के भक्तों के साथ उनकी मौसी के घर (गुंडिचा मंदिर) तक जाती है और 7 दिन बाद पुनः मंदिर में लौटती है।
भक्ति का महापर्व
यह यात्रा विश्व प्रसिद्ध है और इसमें लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं। इसे टीवी, रेडियो और इंटरनेट पर भी सीधा प्रसारित किया जाता है।
जून 2025 का महीना धर्म, आध्यात्म और संयम का सुंदर समागम लेकर आ रहा है। पूरा महीना धार्मिक गतिविधियों और अध्यात्म के रंग में सराबोर रहेगा। यह समय है जब व्यक्ति अपने आत्मिक विकास के लिए व्रतों, पूजन और साधना के माध्यम से जीवन को उच्चतर लक्ष्य की ओर प्रेरित कर सकता है। यह समय न केवल आस्था को सुदृढ़ करने का है, बल्कि आत्म-संयम, साधना और सकारात्मकता से जीवन को दिशा देने का भी उपयुक्त अवसर है। श्रद्धालु इन व्रतों और पर्वों के माध्यम से अपने जीवन को शुद्ध और पुण्य से भर सकते हैं। पारिवारिक कल्याण, आत्मिक शुद्धि, और समाज में सकारात्मक ऊर्जा के प्रसार के लिए इन व्रत-त्योहारों का अनुसरण करना हमारे सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा करता है।