रूस से कच्चा तेल खरीदने को लेकर भारत पर भारी-भरकम टैरिफ थोपने की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीति पर अब अमेरिका के ही विशेषज्ञ सवाल उठाने लगे हैं। एक मशहूर इंटरनेशनल रिलेशन एनालिस्ट का कहना है कि ट्रंप का यह कदम न सिर्फ बेअसर साबित होगा, बल्कि इससे भारत-अमेरिका संबंधों में खटास गहराने लगी है।
“भारत को झुकाया नहीं जा सकता”
शिकागो यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर जॉन मियर्सहाइमर ने साफ कहा कि रूस से तेल खरीदना भारत का रणनीतिक फैसला है और सेकेंडरी टैरिफ लगाकर अमेरिका उसे रोक नहीं सकता। उन्होंने डैनियल डेविस डीप डाइव पॉडकास्ट में कहा, “यकीन मानिए, यह वॉशिंगटन की सबसे बड़ी भूलों में से एक है। भारत पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि रूस से तेल आयात बंद नहीं होगा और वो किसी भी दबाव के आगे झुकने वाला नहीं है।”
रिश्तों पर जहरीला असर
मियर्सहाइमर ने चेतावनी दी कि ट्रंप का यह रवैया दोनों देशों की मित्रता को नुकसान पहुँचा रहा है। उन्होंने याद दिलाया कि ट्रंप के पिछले कार्यकाल में भारत-अमेरिका संबंध बेहतर दौर में थे और एशिया में चीन की बढ़ती ताकत को संतुलित करने के लिए अमेरिका को भारत जैसे भरोसेमंद साझेदार की ज़रूरत है। उन्होंने कहा, “इन सेकेंडरी प्रतिबंधों की वजह से रिश्तों में खटास आ रही है और यह दोनों देशों के हित में नहीं है।”
मोदी से संवाद की नाकाम कोशिश
विशेषज्ञ ने हाल ही में आई एक जर्मन रिपोर्ट का हवाला भी दिया। रिपोर्ट के अनुसार, ट्रंप ने चार बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से संपर्क साधने की कोशिश की, लेकिन हर बार नाकामी हाथ लगी। इस पर मियर्सहाइमर ने कहा, “यह भारत की नाराज़गी का बड़ा संकेत है। मोदी ने बात करने से इनकार कर दिया और अब भारत रूस व चीन की ओर और करीब जाता दिख रहा है। यह न सिर्फ असफल रणनीति है, बल्कि अमेरिका के लिए नुकसानदेह भी है।”
व्हाइट हाउस की रणनीति पर तंज
मियर्सहाइमर ने व्हाइट हाउस के वरिष्ठ सलाहकार पीटर नवारो को भी कठघरे में खड़ा किया। उनके मुताबिक, नवारो ने जिस नीति को बढ़ावा दिया, उसका कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकला। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा, “क्या सच में कोई सोच सकता है कि भारत घुटने टेक देगा? क्या इतनी आसानी से भारतीय दबाव में आ जाएंगे? अब तक भारत के रुख ने साफ कर दिया है कि यह सोच बिल्कुल गलत है।”