सुप्रीम कोर्ट ने आज स्टैंड-अप कॉमेडियन समय रैना, विपुल गोयल और तीन अन्य के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई करते हुए नोटिस जारी किया है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि इन लोगों ने दिव्यांग व्यक्तियों का मज़ाक उड़ाते हुए असंवेदनशील चुटकुले सुनाए। जस्टिस सूर्यकांत की अगुवाई वाली बेंच ने मुंबई पुलिस आयुक्त को निर्देश दिया है कि वह इन सभी को नोटिस तामिल कर सुनिश्चित करें कि वे अगली सुनवाई पर अदालत में उपस्थित हों। अदालत ने चेतावनी दी है कि यदि वे उपस्थित नहीं हुए तो उनके खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएंगे। यह आदेश क्योर एसएमए फाउंडेशन द्वारा दायर एक याचिका पर जारी किया गया। अदालत ने मामले की संवेदनशीलता और महत्त्व को देखते हुए भारत के अटॉर्नी जनरल से भी इस मामले में सहायता मांगी है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मतलब किसी कमजोर का अपमान नहींयाचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने तर्क दिया कि रैना और अन्य, सामाजिक प्रभाव रखने वाले (इंफ्लुएंसर) हैं और उनके शब्दों का युवाओं पर गहरा प्रभाव पड़ता है। उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को इस रूप में नहीं लिया जा सकता कि वह किसी कमजोर वर्ग का अपमान या उपहास करे। दूसरी ओर, राज्य सरकार के वकील ने बताया कि ये निजी प्रतिवादी तो सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का भी उपहास उड़ा रहे हैं। सिंह ने ज़ोर दिया कि 'मानहानि करने की कोई स्वतंत्रता नहीं होती' और अनुच्छेद 19(1)(क) के तहत प्राप्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दूसरे व्यक्ति की गरिमा के अधिकार के साथ संतुलित किया जाना चाहिए। सोशल मीडिया पर अश्लील और आपत्तिजनक सामग्री को लेकर चिंताजस्टिस सूर्यकांत ने गंभीरता से इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं को ऐसे बयानों के विरुद्ध उपचारात्मक, सुधारात्मक और निवारक उपायों पर विचार करना चाहिए। इस पर याची की वकील ने कहा कि ऐसे चुटकुले हेट स्पीच की श्रेणी में आते हैं, तो न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने टिप्पणी की कि हेट स्पीच व कोई भी ऐसी अभिव्यक्ति जो दूसरों को नीचा दिखाने के उद्देश्य से हो तो ऐसी स्वतंत्रता यदि है भी, तो हम उसे सीमित करेंगे। हम जानते हैं क्या करना है। अदालत ने यह भी संकेत दिया कि वह इस मुद्दे पर दिशा-निर्देश तय करना चाहता है और वरिष्ठ अधिवक्ता से सहयोग मांगा है। गौरतलब है कि यह याचिका पहले यूट्यूबर रणवीर अल्लाहबादिया से जुड़े एक मामले में हस्तक्षेप याचिका के रूप में उठाई गई थी, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया पर अश्लील और आपत्तिजनक सामग्री को लेकर चिंता जताई थी। फाउंडेशन का तर्क है कि मौजूदा रेग्युलेशन सिस्टम में पर्याप्त सुरक्षा नहींफाउंडेशन का तर्क है कि मौजूदा रेग्युलेशन सिस्टम में पर्याप्त सुरक्षा नहीं है जो दिव्यांग व्यक्तियों के संदर्भ में 'हास्य' को रोके। ऐसा हास्य जो उन्हें नीचा दिखाता है या अपमानित करता है। उन्होंने यह चिंता भी व्यक्त की कि अनुच्छेद 19(1)(क) के तहत दी गई स्वतंत्रता का दुरुपयोग ऑनलाइन कंटेंट क्रिएटर्स, सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स और समाचार प्रकाशकों द्वारा किया जा रहा है।
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