सुरवीन ने इस साक्षात्कार में बताया, ‘जब मैं 9वीं क्लास में थी, मेरा पहला अफेयर हुआ था और फिर ब्रेकअप हुआ था। इसके बाद मैंने अपने एक्स बॉयफ्रेंड के दोस्त को डेट करना शुरू कर दिया। बस यहीं से लोगों ने मुझे ट्रोल करना शुरू कर दिया। मुझे गालियां दी गईं थी।
इसका सबका मेरे ऊपर यह असल हुआ था कि मैं डिप्रेशन में चली गई।’ सुरवीन जैसी सिचुएशन आपके बच्चे के साथ न बने इसके इसलिए जरूरी है कि पेरेंट्स अपने बच्चों को पहले प्यार और ब्रेकअप के लिए तैयार करें, ताकि वे मानसिक रूप से मजबूत बन सकें। वे इस स्थिति को बेहतर तरह से हैंडल कर सकें।
सभी फोटो साभार: freepik (सभी तस्वीरें सांकेतिक हैं)
हाय-तौबा न मचाएं
सबसे पहले तो पैरेंट्स को यह समझना होगा कि बच्चों के अफेयर के बारे में पता चलने के बाद माता-पिता हाय-तौबा न मचाएं। इस बात को समझें कि टीनएज में इस तरह की सिचुएशन सभी बच्चों के साथ आमतौर पर बनती ही है। इसलिए यह मत समझें कि अब तो ये बस प्यार-व्यार के चक्कर में पड़ गया है अब कुछ नहीं करेगा। ऐसा बिल्कुल न सोचें।
बच्चों की भावनाओं को समझें

पैरेंट्स के लिए जरूरी है कि वे अपने बच्चों की भावनाओं को समझें और उनका सम्मान करें। अगर आपको लगता है कि आपका बच्चा जिस रिश्ते में है या जो साथी उसके साथ है, वह सही नहीं है, तो उस बात को प्यार और धैर्य से समझाएं। गुस्सा या आरोप लगाने से बच्चे आपसे दूर हो सकते हैं, इसलिए शांति से बात करें।
बंदिशे न लगाएं
बच्चों के प्यार पर बंदिशे न लगाएं। हर वक्त उन्हें रोकते-टोकते न रहे, ऐसा करने से वे चिढ जाते हैं और फिर बातें छिपाने लगते हैं। इसलिए ऐसा करने से बचें, बल्कि उनसे प्यार से बात करके उन्हें समझाने की कोशिश करें।
समय की अहमियत समझाएं
माता-पिता बच्चों को प्यार से यह समझाने की कोशिश करें कि जिंदगी का यह वक्त बेहद कीमती है और इसलिए उसे सर्तकता से इस्तेमाल करें। प्यार और रिलेशनशिप का इफेक्ट अपनी स्टडीज पर न आने दें। यह सभी बातें उन्हें प्यार से समझाएं।
पैरेंट्स निभाएं साथ
बच्चे इस उम्र में प्यार के साथ-साथ ब्रेकअप के दौर से भी गुजरते हैं। इस पड़ाव पर वह बेहद उदास और गुस्से में हो सकते हैं। इसलिए पैरेंट्स की यह जिम्मेदारी है कि वह इस फेज में उन्हें समझें और उनके साथ खड़े रहें।
एक्टिविटीज में करें व्यस्त

ब्रेकअप के दर्द से उबरने के लिए अभिभावक बच्चों को उनकी किसी हॉबी के लिए प्रेरित कर सकते हैं। इसके अलावा, खेल-कूद या क्रिएटिव एक्टिविटीज में शामिल कर सकते हैं। जिससे उनका दिमाग दूसरी दिशा में सोचेगा और संभव है कि नेगेटिव थॉट्स कम होंगे।
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