नई दिल्ली: सिर्फ इश्क की ही नहीं, बिजनेस शुरू करने की भी कोई उम्र नहीं होती। बात चाहे केएफसी वाले कर्नल हारलैंड सैंडर्स की हो या चेन्नई की कृष्णावेनी बंगारा की। सैंडर्स ने जहां केएफसी की शुरुआत 65 साल की उम्र में की थी, तो चेन्नई की कृष्णावेनी बंगारा भी पीछे नहीं हैं। 78 की कृष्णावेनी बंगारा बच्चों के लिए जरूरी हर चीज बनाती हैं। जैसे कि तौलिए और नैपी। कृष्णावेनी बंगारा ने 24 साल पहले 'Kitty's Care' नाम से यह काम शुरू किया था। बात फरवरी 2000 की है। कृष्णावेनी बंगारा चेन्नई के एक प्राइवेट अस्पताल के ऑपरेशन थिएटर के बाहर खड़ी थीं। वह अपनी पोती के जन्म का इंतजार कर रही थी। उनके हाथ में दो नए बच्चों के कपड़े थे। एक नीला था और दूसरा गुलाबी। डॉक्टर ने बताया कि लड़की हुई है। कृष्णावेनी बहुत खुश हुईं। उन्होंने गुलाबी रंग का सेट दिया। उस सेट में बच्चे के लिए बिस्तर, टोपी, दस्ताने और कपड़े थे। जिंदगी में लाया बदलावकृष्णावेनी को नहीं पता था कि यह छोटा सा पल उनके जीवन में एक बड़ा बदलाव लाएगा। उन्होंने एक ऐसा काम शुरू किया जिससे वह आर्थिक रूप से स्वतंत्र हुईं। साथ ही, उन्होंने कई नई माताओं की मदद भी की।अब कृष्णावेनी 78 साल की हैं। वह अपने पुराने दिनों की बातें करती हैं। वह बताती हैं कि उन्हें खुद पर भरोसा है और यही बात उन्हें आज भी काम करने के लिए प्रेरित करती है। डॉक्टर ने काम को सराहाकृष्णावेनी कहती हैं कि डॉक्टर ने उन्हें पहचाना और उनके काम को सराहा। इसी से उन्हें और 'Kitty's Care' को आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली। सर्जरी के बाद स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. शांता ने कृष्णावेनी को बुलाया और उनसे बच्चों के कपड़ों के बारे में पूछा। कृष्णावेनी बताती हैं कि सब कुछ वहीं से शुरू हुआ। डॉक्टर यह देखकर बहुत खुश हुईं कि मैंने अपनी पोती के लिए क्या किया था। कुछ ही दिनों में, अस्पताल ने मुझसे बच्चों के कपड़े देने के लिए कहा। वे सभी नई माताओं को वही किट देने की योजना बना रहे थे। सुबह 5 बजे उठ जाती हैं कृष्णावेनी कृष्णावेनी बताती हैं कि Kitty's Care शुरू करने के बाद वह सुबह 5 बजे उठती थीं और घर के सारे काम खत्म करती थीं। फिर सुबह 10 बजे तक वह बच्चों के कपड़े बनाने का काम शुरू कर देती थीं। उन्होंने अपने साथ कुछ टेलर भी रखे हुए हैं। वह कपड़े खुद काटती हैं और टेलर को सिलने के लिए दे देती हैं।कृष्णावेनी बच्चों के लिए जरूरी हर चीज बनाती हैं। जैसे कि तौलिए और नैपी। वह यह काम बहुत प्यार और ध्यान से करती हैं। कृष्णावेनी कॉटन और माइक्रोफाइबर के तौलिए खरीदती हैं। फिर वह उन्हें ग्राहकों की जरूरतों के हिसाब से बनाती हैं। वह बच्चों के कपड़े, झबला (ढीले कपड़े), लंगोट (नैपी), दस्ताने, मोजे, बिस्तर, ड्राई शीट और बिब बनाती हैं। कितनी होती है कीमत?हर किट की कीमत करीब 250 रुपये से 350 रुपये तक होती है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि वे किट में क्या चुनते हैं। हर अस्पताल की अपनी पसंद होती है कि उन्हें बच्चों के किट में क्या चाहिए। शुरुआत में कृष्णावेनी ने सबकुछ ऑफलाइन किया था, लेकिन कोरोना में उन्हें परेशानी शुरू हो गई। वह घर से बाहर नहीं जा सकती थीं। उस समय 'Kitty's Care' को ऑनलाइन किया।उन्होंने फोन पर ग्राहकों से बात की। अपने दर्जी को घर से काम करने और समय पर सामान पहुंचाने के लिए कहा। उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि ऑर्डर समय पर ग्राहकों तक पहुंचें। कृष्णावेनी बताती हैं कि उन्होंने ऑनलाइन पेमेंट लेना शुरू कर दिया। उनके पोते-पोतियों ने उनकी बहुत मदद की। विदेश तक फैला कारोबारआज कृष्णावेनी का यह कारोबार विदेशों तक फैल गया है। कोरोना के बाद कृष्णावेनी अपने परिवार के साथ मस्कट, ओमान चली गईं। लेकिन उनका काम नहीं रुका। वह चेन्नई में बने अपने रिश्तों की वजह से दूर रहकर भी अपना काम चलाती रहीं। कृष्णावेनी बताती हैं, 'महामारी की वजह से, मैं अब अपना काम कहीं से भी कर सकती हूं। मैं एक साल पहले मस्कट चली गई थी। यहां से भी मुझे ऑर्डर मिलते रहते हैं और मैं सब कुछ मैनेज करती हूं।'
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