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डॉ. गीतिका ने बताया- कहां गलती कर रहे हैं पेरेंट्स, संभल जाएंगे तो बर्बाद होने से बच जाएंगे बच्चे

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एक बच्चे की परवरिश करना आसान नहीं होता है और बात अगर टीएनएज की हो, तो यह चैलेंज दोगुना हो जाता है। उम्र के इस पड़ाव पर बच्चों के भीतर कई शारीरिक और मानसिक बदलाव होते हैं। वे एक तरफ, जहां अपनी बदलती बॉडी के साथ तालमेल बिठा रहे होते हैं, तो वहीं दूसरी तरफ उनके दिमाग में भी लाखों सवाल चल रहे होते हैं। इस वजह से वे इस फेज में काफी कन्फ्यूज रहते हैं। कई बार तो उन्हें खुद समझ नहीं आता है कि वह अपने दिल की बात किससे कहें। वहीं माता-पिता भी इस बात से परेशान रहते हैं कि उनका बच्चा उनसे कुछ शेयर नहीं करता या उनकी बातों को अनसुना कर देता है। वे आखिर कैसे उसका लालन-पालन करें ? अगर आप भी ऐसी ही किसी स्थिति का सामना कर रहे हैं, तो आज हम आपके लिए कुछ एक्सपर्ट टिप्स लेकर आए हैं, जो बताएंगे कि किशोरावस्था में बच्चों को कैसे हैंडल करें, जिससे न केवल आप अपने लाडला या लाडली को समझ सकें बल्कि वे आपके साथ स्कूल से लेकर दोस्तों तक और अन्य सभी मुद्दों पर खुलकर बात कर सकें। आइए जानते हैं क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. गीतिका से इस बारें में विस्तार से। सही गाइडेंस की है जरूरत क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. गीतिका बताती है कि बढ़ती उम्र में बच्चों के सामने अलग-अलग अनुभव सामने आते हैं, जिसकी वजह से वे भ्रमित हो जाते हैं। वह डर जाते हैं। कई बार तो वह अपने फ्यूचर तक को लेकर घबरा जाते हैं। ऐसे में जरूरी है कि इस पड़ाव में उन्हें सही मेंटर या फिर कोई गाइड करने वाला होना चाहिए, जिस पर वह भरोसा कर सके। डॉ. आगे बताती हैं कि आज सोशल मीडिया की वजह से एक्सपोजर बहुत ज्यादा बढ़ गया है और वे कम उम्र में उन सूचनाओं के बारें में जान रहे हैं, जो उनके लिए सही नहीं है। इसलिए, पैरेंट्स, टीचर, एडल्ट्स और समाज सबकी जिम्मेदारी है कि उन्हें सही तरह से गाइड करें। बड़े निभाएं अपनी जिम्मेदारीक्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट कहती हैं कि पेरेंट्स को यह समझना होगा कि अगर उनके बच्चे से कोई गलती हो रही है तो उन पर चिल्लाएं नहीं। उन्हें डांटे-डपटे नहीं बल्कि समझाने की कोशिश करें। साथ ही बड़ों को इस जिम्मेदारी को उठाना होगा कि वे ऐसा माहौल तैयार करें कि बच्चे खुद उनके पास आकर बात रखें। कोर रिस्पॉसिबिलिटी का रखें ध्यान डॉ. गीतिका कपूर कहती हैं कि पेरेंट्स बच्चों के दोस्त बनने के साथ-साथ अपनी कोर रिस्पॉसिबिलिटी का ध्यान रखें। अभिभावक का काम है बच्चों को भविष्य के लिए तैयार करना। साथ ही, उन्हें सुरक्षित रखना तो इसलिए माता-पिता अपनी प्राथमिक जिम्मेदारी काे समझें। बच्चों का साथ देने का भरोसा दिलाएं डॉ. कपूर आगे कहती हैं कि कोई भी टीनएनजर अपनी बात पेरेंट्स से तभी शेयर करेगा, जब वे उन्हें कंफर्टेबल फील कराएंगे। उदाहरण के तौर पर जैसे- बच्चे से अगर कोई चीज टूट जाती है या फिर गिर गई है तो उस पर चिल्लाएं या गुस्सा न करें बल्कि उससे कहें कि कोई बात नहीं, यह हो जाता है। इसके बाद धीरे-धीरे जब किशोर या किशोरी का यह अहसास होगा कि मेरे पेरेंट्स गुस्सा नहीं करेंगे या फिर वह सिचुएशन को संभाल लेंगे तब वह निश्चित तौर पर आपके साथ खुलना शुरू होंगे और बात करेंगे। AI से नहीं करना है झगड़ा क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ.गीतिका कपूर बताती है कि ब्रेन डेवलपमेंट के लिए राइटिंग स्किल्स बेहद जरूरी है। हालांकि, कोविड का समय सबसे बड़ा गैप का वक्त आया था, जब राइटिंग कहीं न कहीं रुक सी गई थी। बस बच्चे सिर्फ उस वक्त कॉपी- पेस्ट कर रहे थे। वे सोच भी नहीं रहे थे कि क्या लिख रहे हैं। इसलिए जरूरी है कि AI के साथ झगड़ा नहीं करना है। हमें टेक्नोलॉजी के साथ चलना है लेकिन बच्चों को भी बेसिक समझाना भी है। स्कूल और घर दोनों करें मेहनत डॉ. कपूर कहती हैं कि टीनएजर्स का स्क्रीन एक्सपोजर कम करने के लिए स्कूलों और घर दोनों को ही मेहनत करनी होगी। पेरेंट्स इसे रेग्यूलेट करें। ज्यादा स्क्रीन टाइम से बच्चों को स्कूल में दिक्कत दे रहा है। वे सिंपल पढ़ाई में बोरियत फील करते हैं। इसलिए जरूरी है कि टीचर्स और पेरेंट्स दोनों ही मिलकर इस पर काम करें और उन्हें स्क्रीन टाइम की लिमिट तय करें। डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है। यह किसी भी तरह से किसी दवा या इलाज का विकल्प नहीं हो सकता। ज्यादा जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
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