एक खबर की हेडलाइन ने लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। हेडलाइन है: "श्रीराम कर रहे रावण के मेक-अप में मदद।" इसे पढ़कर लेखक यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि इस बात को सीधे-सीधे समझा जाए या इसके पीछे कोई गहरा मतलब छिपा है। असल में, एक रामलीला में श्रीराम का किरदार निभाने वाले कलाकार मेक-अप करने में बहुत माहिर हैं। वह रावण समेत दूसरे कलाकारों का भी मेक-अप करते हैं। लेकिन लेखक सोचते हैं कि अगर इस हेडलाइन का मतलब इससे कहीं ज़्यादा गहरा हो, तो यह आज के समाज की कई समस्याओं पर कटाक्ष हो सकता है। यह हेडलाइन आज के 'रावण' और उसकी हरकतों पर एक बड़ा सवाल उठाती है, जिस पर लेखक दशहरे के बाद आराम से विचार करना चाहते हैं।
अगर हम इस हेडलाइन को सीधे-सीधे समझें, तो बात बहुत सरल है। रामलीला समितियां हर साल रामकथा का मंचन करती हैं। इसमें कलाकार सुंदर वेशभूषा और साज-सज्जा के साथ मंच पर आते हैं। एक रामलीला मंडली में, जो कलाकार श्रीराम की भूमिका निभा रहे हैं, वे सिर्फ अभिनय में ही नहीं, बल्कि मेक-अप करने में भी बहुत कुशल हैं। उनकी इस खूबी का फायदा पूरी टीम उठा रही है। इसलिए, चाहे लक्ष्मण हों, मारीच हों या सुग्रीव, सभी का मेक-अप वही कलाकार करते हैं। रावण का मेक-अप भी वही करते हैं। यह तो इस खबर का सीधा और सरल अर्थ है।
लेकिन, लेखक सोचते हैं कि अगर यह हेडलाइन अपने इस सीधे अर्थ से आगे बढ़कर कुछ और इशारा कर रही हो तो क्या होगा? मायावी और महाबलशाली रावण को मेक-अप की ज़रूरत क्यों पड़ेगी? क्या उसकी ताकत कम हो गई है? पहले तो उसने रूप बदलकर देवी सीता का अपहरण किया था। क्या अब वह ऐसा नहीं कर पा रहा है? क्या वह अब पशु-पक्षियों और इंसानों से उनकी जल, जंगल और ज़मीन छीनने का खेल और बड़े पैमाने पर खेलना चाहता है? क्या उसकी सोने की लंका में अब सोने की कमी हो गई है? या फिर लोहा और कोयला कम पड़ने लगा है, और उसे दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से ये सारी चीज़ें अपनी सोने की नगरी में लानी पड़ रही हैं?
आज के समय में दुनिया में एक तिहाई से ज़्यादा लोग गरीबी के दलदल में फंसे हुए हैं। सारी दौलत कुछ ही लोगों के हाथों में सिमटती जा रही है। जो लोग मिडल क्लास में हैं, वे अपनी नौकरी बचाने के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। या फिर एक अच्छी नौकरी पाने के लिए उन्हें कई तरह के फर्जीवाड़े का सामना करना पड़ रहा है। छोटी बच्चियां यह तय नहीं कर पा रही हैं कि उनके अपने मुहल्लों में ज़्यादा खतरा है या बाहर सड़क पर। पढ़ाई-लिखाई से लेकर नौकरी पाने तक का सफर एक अग्नि परीक्षा जैसा बन गया है। रोजी-रोटी की तलाश में मजबूर लोग हर जगह दुत्कारे जा रहे हैं।
ऐसे में, यह हेडलाइन, "श्रीराम कर रहे रावण के मेक-अप में मदद।" यह किस पर तंज कस रही है? यह आज के समाज की किन बुराइयों पर सवाल उठा रही है? लेखक कहते हैं कि रावण के पुतले जलाने के बाद वे फुरसत से इस बात पर सोचेंगे।
अगर हम इस हेडलाइन को सीधे-सीधे समझें, तो बात बहुत सरल है। रामलीला समितियां हर साल रामकथा का मंचन करती हैं। इसमें कलाकार सुंदर वेशभूषा और साज-सज्जा के साथ मंच पर आते हैं। एक रामलीला मंडली में, जो कलाकार श्रीराम की भूमिका निभा रहे हैं, वे सिर्फ अभिनय में ही नहीं, बल्कि मेक-अप करने में भी बहुत कुशल हैं। उनकी इस खूबी का फायदा पूरी टीम उठा रही है। इसलिए, चाहे लक्ष्मण हों, मारीच हों या सुग्रीव, सभी का मेक-अप वही कलाकार करते हैं। रावण का मेक-अप भी वही करते हैं। यह तो इस खबर का सीधा और सरल अर्थ है।
लेकिन, लेखक सोचते हैं कि अगर यह हेडलाइन अपने इस सीधे अर्थ से आगे बढ़कर कुछ और इशारा कर रही हो तो क्या होगा? मायावी और महाबलशाली रावण को मेक-अप की ज़रूरत क्यों पड़ेगी? क्या उसकी ताकत कम हो गई है? पहले तो उसने रूप बदलकर देवी सीता का अपहरण किया था। क्या अब वह ऐसा नहीं कर पा रहा है? क्या वह अब पशु-पक्षियों और इंसानों से उनकी जल, जंगल और ज़मीन छीनने का खेल और बड़े पैमाने पर खेलना चाहता है? क्या उसकी सोने की लंका में अब सोने की कमी हो गई है? या फिर लोहा और कोयला कम पड़ने लगा है, और उसे दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से ये सारी चीज़ें अपनी सोने की नगरी में लानी पड़ रही हैं?
आज के समय में दुनिया में एक तिहाई से ज़्यादा लोग गरीबी के दलदल में फंसे हुए हैं। सारी दौलत कुछ ही लोगों के हाथों में सिमटती जा रही है। जो लोग मिडल क्लास में हैं, वे अपनी नौकरी बचाने के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। या फिर एक अच्छी नौकरी पाने के लिए उन्हें कई तरह के फर्जीवाड़े का सामना करना पड़ रहा है। छोटी बच्चियां यह तय नहीं कर पा रही हैं कि उनके अपने मुहल्लों में ज़्यादा खतरा है या बाहर सड़क पर। पढ़ाई-लिखाई से लेकर नौकरी पाने तक का सफर एक अग्नि परीक्षा जैसा बन गया है। रोजी-रोटी की तलाश में मजबूर लोग हर जगह दुत्कारे जा रहे हैं।
ऐसे में, यह हेडलाइन, "श्रीराम कर रहे रावण के मेक-अप में मदद।" यह किस पर तंज कस रही है? यह आज के समाज की किन बुराइयों पर सवाल उठा रही है? लेखक कहते हैं कि रावण के पुतले जलाने के बाद वे फुरसत से इस बात पर सोचेंगे।
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