ब्रेस्ट कैंसर का ट्रीटमेंट पूरा करना अपने आप में एक बड़ी कामयाबी और उपलब्धी है। मगर यह पूरी सफलता नहीं है, यहां से एक नये चुनौतीपूर्ण सफर की शुरुआत होती है, जिसे सर्वाइवरशिप कहते हैं। ट्रीटमेंट के बाद कई सर्वाइवर खुद को भावनात्मक रूप से फंसा पाते हैं। मेडिकल वर्ल्ड के एडवांस होने की वजह से इलाज पहले से आसान बन गया है, लेकिन फिर भी इस गंभीर बीमारी का दिमाग पर पड़ने वाला प्रभाव कम नहीं किया जा सकता है।
मरीज पहले की तरह नॉर्मल जीना चाहते हैं, जिसमें आपको यहां बताए जा रहे टिप्स मदद कर सकते हैं। इनके बारे में कंसल्टेंट ब्रेस्ट स्पेशयलिस्ट और ऑन्कोप्लास्टिक सर्जन Dr. Karishma Kirti ने जानकारी दी है।
इस स्थिति से कैसे उबरें?
कैंसर के दोबारा आने का डर
मरीजों को दोबारा कैंसर उभरने का डर सबसे ज्यादा बना रहता है। यह डर फॉलो-अप स्कैन, नए दर्द या अन्य रोगियों के बारे में सोशल मीडिया पोस्ट से भी शुरू हो सकता है। इसके लिए निम्नलिखित टिप्स से निपटें।
सोशल सपोर्ट और रिकनेक्शन है जरूरी
इलाज के बाद कई सर्वाइवर्स के रिश्तों में बदलाव देखने को मिलता है। कुछ दोस्त या कलीग्स दूर हो सकते हैं, जबकि कुछ ज़रूरत से ज़्यादा साथ देने की कोशिश कर सकते हैं। इससे अलगाव या निराशा की भावना पैदा हो सकती है।
इन बदलावों से कैसे निपटें
इन बातों का रखें ध्यान
एंग्जायटी कम करने में हेल्थकेयर टीम के साथ मिलकर बनाया गया एक सर्वाइवरशिप केयर प्लान काम आ सकता है। जिसमें निम्नलिखित चीजें हों।
डिस्क्लेमर: लेख में दिए गए नुस्खे सामान्य जानकारी के लिए है। एनबीटी इसकी सत्यता, सटीकता और असर की जिम्मेदारी नहीं लेता है। यह किसी भी तरह से किसी दवा या इलाज का विकल्प नहीं हो सकता। ज्यादा जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
मरीज पहले की तरह नॉर्मल जीना चाहते हैं, जिसमें आपको यहां बताए जा रहे टिप्स मदद कर सकते हैं। इनके बारे में कंसल्टेंट ब्रेस्ट स्पेशयलिस्ट और ऑन्कोप्लास्टिक सर्जन Dr. Karishma Kirti ने जानकारी दी है।
इस स्थिति से कैसे उबरें?

- छोटे और पूरे होने लायक टारगेट बनाएं: कैंसर के बाद लाइफ को फिर से पहले की तरह बनाना भारी लग सकता है। लेकिन रोजाना टहलना, किसी शौक से फिर से जुड़ना या सोशल एंगेजमेंट फिर से शुरू करना जैसे छोटे कदमों से शुरुआत आसान हो सकती है।
- प्रोग्रेस पर ध्यान दें: रिकवरी काफी उतार-चढ़ाव से भरी होती है। इसलिए पहले से प्रोग्रेस और सुधार पर ध्यान दें, चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो।
- खुद से पोजिटिव बात करें: इमोशनल रिकवरी के लिए अंदरुनी सोच काफी मायने रखथी है। 'ठीक होने में समय लगता है, और मैं अपना बेहतर हो रहा हूं' जैसे विचार रखें।
कैंसर के दोबारा आने का डर
मरीजों को दोबारा कैंसर उभरने का डर सबसे ज्यादा बना रहता है। यह डर फॉलो-अप स्कैन, नए दर्द या अन्य रोगियों के बारे में सोशल मीडिया पोस्ट से भी शुरू हो सकता है। इसके लिए निम्नलिखित टिप्स से निपटें।
- रेगुलर जांच-पड़ताल करवाते रहें मगर जरूरत से ज्यादा परेशान होने से बचें।
- एंग्जायटी मैनेज करने के तरीके सीखें जैसे दिखने वाली पांच चीज़ों के नाम बताएं, छू सकने वाली चार चीज, सुन सकने वाली तीन चीज, जैसी तकनीक विचारों को शांत कर सकती हैं।
- रोजाना अपने डरावने विचारों को लिखें और उन्हें अगली बार ना सोचने का निर्णय लें।
सोशल सपोर्ट और रिकनेक्शन है जरूरी

इलाज के बाद कई सर्वाइवर्स के रिश्तों में बदलाव देखने को मिलता है। कुछ दोस्त या कलीग्स दूर हो सकते हैं, जबकि कुछ ज़रूरत से ज़्यादा साथ देने की कोशिश कर सकते हैं। इससे अलगाव या निराशा की भावना पैदा हो सकती है।
इन बदलावों से कैसे निपटें
- खुले तौर अपनों को बताएं कि आपको किस तरह के सपोर्ट की ज़रूरत है।
- अपनी नॉर्मल लाइफ में धीरे-धीरे फिर से जुड़ें
- अपने जैसे सर्वाइवर्स की कम्युनिटी खोजें।
इन बातों का रखें ध्यान
एंग्जायटी कम करने में हेल्थकेयर टीम के साथ मिलकर बनाया गया एक सर्वाइवरशिप केयर प्लान काम आ सकता है। जिसमें निम्नलिखित चीजें हों।
- किए गए ट्रीटमेंट की समरी रखना
- फॉलो अप टेस्ट और स्कैन शेड्यूल की रिकमेंडेशन
- लॉन्ग टर्म साइड इफेक्ट को मैनेज करने में गाइडेंस
- लाइफस्टाइल में न्यूट्रिशन, एक्सरसाइज और मेंटल हेल्थ के लिए जरूरी बदलाव
डिस्क्लेमर: लेख में दिए गए नुस्खे सामान्य जानकारी के लिए है। एनबीटी इसकी सत्यता, सटीकता और असर की जिम्मेदारी नहीं लेता है। यह किसी भी तरह से किसी दवा या इलाज का विकल्प नहीं हो सकता। ज्यादा जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
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