नई दिल्ली: आवास से कैश मिलने के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा की एक याचिका आज सुप्रीम कोर्ट में आने वाली है। इस याचिका में उन्होंने एक जांच रिपोर्ट को रद्द करने की मांग की है ताकि वह संसद में लाए जा रहे महाभियोग से बच सकें। बता दें कि इसी जांच रिपोर्ट के आधार पर तत्कालीन CJI (चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया) संजीव खन्ना ने उन्हें जज के पद से हटाने की सिफारिश की थी। अब यह शीर्ष अदालत पर निर्भर करेगा कि जस्टिस वर्मा की याचिका सुनवाई के लायक है भी या नहीं।
बता दें कि संसद का मानसून सत्र सोमवार से शुरू हो रहा है। संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा है कि 100 से ज्यादा सांसदों ने लोकसभा में जस्टिस वर्मा को हटाने का प्रस्ताव लाने के लिए नोटिस दिया है। अगर सुप्रीम कोर्ट इस प्रस्ताव पर संसद में चर्चा होने से पहले सुनवाई नहीं करता है, तो जस्टिस वर्मा की याचिका बेकार हो सकती है।
संवैधानिक जज को हटाने के लिए 150 सांसदों का हस्ताक्षर जरूरी
किसी संवैधानिक अदालत के जज को हटाने के लिए लोकसभा में 100 सांसदों और राज्यसभा में 50 सांसदों के हस्ताक्षर की जरूरत होती है। सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री ने जस्टिस वर्मा की याचिका में कुछ कमियां बताई हैं। वकील वैभव नीति को इन कमियों को जल्द से जल्द ठीक करना होगा ताकि याचिका सुनवाई के लिए लिस्ट हो सके।
मान लीजिए कि याचिका की कमियां ठीक हो जाती हैं और यह सुनवाई के लिए लिस्ट भी हो जाती है। फिर भी, याचिका को कई सवालों का सामना करना पड़ेगा। ये सवाल 14 मार्च की घटना, पहले मौके पर पहुंचने वालों के बयान (जिसमें उन्होंने रुपयों के बोरे देखे थे) और जज और उनके निजी सचिव के उस व्यवहार से जुड़े होंगे जो उन्होंने आग लगने के बाद किया था। आरोप है कि पुलिस और फायर ब्रिगेड के जाने के बाद उन्होंने सुबह-सुबह स्टोररूम को साफ किया था।
कहां फंसते दिख रहे जस्टिस वर्मा
जस्टिस वर्मा अपनी याचिका में जांच कमेटी पर आरोप लगाते हैं कि उसने यह पता लगाने में लापरवाही बरती कि उनके घर में पैसे कैसे आए और इसके लिए कौन जिम्मेदार है। अगर जस्टिस वर्मा ने खुद पुलिस में FIR दर्ज कराई होती और यह पता लगाने को कहा होता कि किसने पैसे रखे और आग कैसे लगी, तो उनकी बात में ज्यादा दम होता। लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया, जबकि जले हुए कैश की तस्वीरें तत्कालीन CJI खन्ना के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड कर दी गईं।
वकील मैथ्यूज नेदुम्पारा ने एफआईआर दर्ज करने की मांग की थी
इस मामले में एक और दिलचस्प पहलू है कि वकील मैथ्यूज नेदुम्पारा ने एक PIL (पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन) दायर की है। उन्होंने कहा है कि दिल्ली हाईकोर्ट के एक जज, जो सैकड़ों और हजारों करोड़ रुपये के कमर्शियल मामलों का फैसला करते हैं, उनके सरकारी आवास पर करोड़ों रुपये की नकदी का मिलना, वह भी तब जब उनके आवास पर 24/7 CRPF (सेंट्रल रिजर्व पुलिस फ़ोर्स) की सुरक्षा होती है, यह इस निष्कर्ष की ओर ले जाता है कि आग लगने वाला पैसा अवैध था और जज और रिश्वत देने वाले दोनों ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, PMLA (प्रिवेंशन ऑफ़ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट), BNS (भारतीय न्याय संहिता) और अन्य कानूनों के तहत अपराध किए हैं। इसलिए पुलिस को FIR दर्ज करनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट पर टिकी किस्मत
अब देखने वाली बात होगी कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या फैसला लेता है। क्या जस्टिस वर्मा की याचिका सुनवाई के लायक मानी जाएगी? क्या संसद में उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया जाएगा? और क्या इस मामले की पुलिस जांच होगी? इन सवालों के जवाब आने वाले दिनों में मिलेंगे। यह मामला न्यायपालिका की पारदर्शिता और जवाबदेही पर भी सवाल उठाता है।
बता दें कि संसद का मानसून सत्र सोमवार से शुरू हो रहा है। संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा है कि 100 से ज्यादा सांसदों ने लोकसभा में जस्टिस वर्मा को हटाने का प्रस्ताव लाने के लिए नोटिस दिया है। अगर सुप्रीम कोर्ट इस प्रस्ताव पर संसद में चर्चा होने से पहले सुनवाई नहीं करता है, तो जस्टिस वर्मा की याचिका बेकार हो सकती है।
संवैधानिक जज को हटाने के लिए 150 सांसदों का हस्ताक्षर जरूरी
किसी संवैधानिक अदालत के जज को हटाने के लिए लोकसभा में 100 सांसदों और राज्यसभा में 50 सांसदों के हस्ताक्षर की जरूरत होती है। सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री ने जस्टिस वर्मा की याचिका में कुछ कमियां बताई हैं। वकील वैभव नीति को इन कमियों को जल्द से जल्द ठीक करना होगा ताकि याचिका सुनवाई के लिए लिस्ट हो सके।
मान लीजिए कि याचिका की कमियां ठीक हो जाती हैं और यह सुनवाई के लिए लिस्ट भी हो जाती है। फिर भी, याचिका को कई सवालों का सामना करना पड़ेगा। ये सवाल 14 मार्च की घटना, पहले मौके पर पहुंचने वालों के बयान (जिसमें उन्होंने रुपयों के बोरे देखे थे) और जज और उनके निजी सचिव के उस व्यवहार से जुड़े होंगे जो उन्होंने आग लगने के बाद किया था। आरोप है कि पुलिस और फायर ब्रिगेड के जाने के बाद उन्होंने सुबह-सुबह स्टोररूम को साफ किया था।
कहां फंसते दिख रहे जस्टिस वर्मा
जस्टिस वर्मा अपनी याचिका में जांच कमेटी पर आरोप लगाते हैं कि उसने यह पता लगाने में लापरवाही बरती कि उनके घर में पैसे कैसे आए और इसके लिए कौन जिम्मेदार है। अगर जस्टिस वर्मा ने खुद पुलिस में FIR दर्ज कराई होती और यह पता लगाने को कहा होता कि किसने पैसे रखे और आग कैसे लगी, तो उनकी बात में ज्यादा दम होता। लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया, जबकि जले हुए कैश की तस्वीरें तत्कालीन CJI खन्ना के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड कर दी गईं।
वकील मैथ्यूज नेदुम्पारा ने एफआईआर दर्ज करने की मांग की थी
इस मामले में एक और दिलचस्प पहलू है कि वकील मैथ्यूज नेदुम्पारा ने एक PIL (पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन) दायर की है। उन्होंने कहा है कि दिल्ली हाईकोर्ट के एक जज, जो सैकड़ों और हजारों करोड़ रुपये के कमर्शियल मामलों का फैसला करते हैं, उनके सरकारी आवास पर करोड़ों रुपये की नकदी का मिलना, वह भी तब जब उनके आवास पर 24/7 CRPF (सेंट्रल रिजर्व पुलिस फ़ोर्स) की सुरक्षा होती है, यह इस निष्कर्ष की ओर ले जाता है कि आग लगने वाला पैसा अवैध था और जज और रिश्वत देने वाले दोनों ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, PMLA (प्रिवेंशन ऑफ़ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट), BNS (भारतीय न्याय संहिता) और अन्य कानूनों के तहत अपराध किए हैं। इसलिए पुलिस को FIR दर्ज करनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट पर टिकी किस्मत
अब देखने वाली बात होगी कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या फैसला लेता है। क्या जस्टिस वर्मा की याचिका सुनवाई के लायक मानी जाएगी? क्या संसद में उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया जाएगा? और क्या इस मामले की पुलिस जांच होगी? इन सवालों के जवाब आने वाले दिनों में मिलेंगे। यह मामला न्यायपालिका की पारदर्शिता और जवाबदेही पर भी सवाल उठाता है।
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