सिवान : शहाबुद्दीन के गढ़ सिवान में सुबह से ही वोटिंग जारी है। मतदाता मतदान केंद्रों पर आकर वोटिंग कर रहे हैं। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सिवान विधानसभा सीट भी हॉट सीट बन गई है। सिवान विधानसभा सीट पर इस बार का मुकाबला बेहद कड़ा और दिलचस्प है, जहां दो बड़े राजनीतिक दिग्गज आमने-सामने हैं। एनडीए की तरफ से पहली बार सिवान विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय मैदान में हैं, जिनके पास हिमाचल और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में चुनाव प्रबंधन का व्यापक अनुभव है। वहीं, महागठबंधन की ओर से राजद के अनुभवी नेता अवध बिहारी चौधरी ताल ठोक रहे हैं, जो इस सीट से छह बार विधायक रह चुके हैं। यह सीट अक्सर कम वोटों के अंतर से हार-जीत का गवाह बनती रही है। इस बार के चुनाव में बीजेपी द्वारा सवर्ण उम्मीदवार (मंगल पांडेय) को उतारना और राजद का अपने अनुभवी ओबीसी चेहरे पर भरोसा जताना, सिवान के पुराने चुनावी समीकरण को चुनौती दे रहा है।
सीट का सियासी समीकरण
बीजेपी ने 'सबका साथ, सबका विकास' के नारे के साथ अपने पारंपरिक वोट बैंक—अतिपिछड़ा, सवर्ण, वैश्य और कोयरी—को साधने की कोशिश की है, जबकि राजद की मुख्य ताकत उसका एमवाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण है। सिवान की राजनीति में इस बार सामाजिक इंजीनियरिंग और प्रचार की रणनीति निर्णायक साबित हो सकती है। बीजेपी ने सबसे पहले बागी नेताओं, जैसे एमएलसी मनोज सिंह और पूर्व विधायक व्यास देव के परिवार की नाराजगी को सफलतापूर्वक दूर किया है, जो मंगल पांडेय के लिए एक मजबूत आधार तैयार करता है। दूसरी ओर, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रचार अभियान ने सिवान में हिंदुत्व के जागरण की कोशिश की, लेकिन इसके विपरीत असर से मुस्लिम समुदाय की गोलबंदी भी तेज हुई है, जिससे राजद के एमवाई समीकरण को मजबूती मिल सकती है। योगी आदित्यनाथ ने 'माफिया के अंत' और 'भारत की सांस्कृतिक विरासत' के अपमान जैसे मुद्दों को उठाया, जिसने चुनावी माहौल को और अधिक ध्रुवीकृत कर दिया है।
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सिवान सीट पर वोटिंग जारी
इस त्रिकोणीय मुकाबले में एआईएमआईएम के शमशीर और जन सुराज के इंतिखाब अहमद जैसे उम्मीदवार 'किंगमेकर' की भूमिका निभा सकते हैं। ये दोनों उम्मीदवार जितने मजबूत होकर उभरेंगे, उतना ही वे राजद के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाएंगे, जिसका सीधा फायदा बीजेपी उम्मीदवार मंगल पांडेय को मिल सकता है। सिवान का इतिहास बताता है कि यहां की जनता किसी एक चेहरे से बंधी नहीं है; जहाँ 1985 से 2005 तक अवध बिहारी चौधरी का दबदबा रहा, वहीं 2005 से 2015 तक बीजेपी के व्यास देव ने परचम लहराया, और 2020 में फिर राजद की वापसी हुई। यह चुनाव मंगल पांडेय के प्रबंधन कौशल और अवध बिहारी चौधरी के अनुभव के बीच की सीधी लड़ाई है, जिसका अंतिम परिणाम ही बताएगा कि सिवान की जनता ने इस बार किस सामाजिक और राजनीतिक समीकरण को अपनाया है। फिलहाल, वोटिंग जारी है और दोनों उम्मीदवारों का भविष्य ईवीएम में लगातार कैद हो रहा है।
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7:00 AM: सिवान में वोटिंग शुरू
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बीजेपी ने 'सबका साथ, सबका विकास' के नारे के साथ अपने पारंपरिक वोट बैंक—अतिपिछड़ा, सवर्ण, वैश्य और कोयरी—को साधने की कोशिश की है, जबकि राजद की मुख्य ताकत उसका एमवाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण है। सिवान की राजनीति में इस बार सामाजिक इंजीनियरिंग और प्रचार की रणनीति निर्णायक साबित हो सकती है। बीजेपी ने सबसे पहले बागी नेताओं, जैसे एमएलसी मनोज सिंह और पूर्व विधायक व्यास देव के परिवार की नाराजगी को सफलतापूर्वक दूर किया है, जो मंगल पांडेय के लिए एक मजबूत आधार तैयार करता है। दूसरी ओर, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रचार अभियान ने सिवान में हिंदुत्व के जागरण की कोशिश की, लेकिन इसके विपरीत असर से मुस्लिम समुदाय की गोलबंदी भी तेज हुई है, जिससे राजद के एमवाई समीकरण को मजबूती मिल सकती है। योगी आदित्यनाथ ने 'माफिया के अंत' और 'भारत की सांस्कृतिक विरासत' के अपमान जैसे मुद्दों को उठाया, जिसने चुनावी माहौल को और अधिक ध्रुवीकृत कर दिया है।
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इस त्रिकोणीय मुकाबले में एआईएमआईएम के शमशीर और जन सुराज के इंतिखाब अहमद जैसे उम्मीदवार 'किंगमेकर' की भूमिका निभा सकते हैं। ये दोनों उम्मीदवार जितने मजबूत होकर उभरेंगे, उतना ही वे राजद के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाएंगे, जिसका सीधा फायदा बीजेपी उम्मीदवार मंगल पांडेय को मिल सकता है। सिवान का इतिहास बताता है कि यहां की जनता किसी एक चेहरे से बंधी नहीं है; जहाँ 1985 से 2005 तक अवध बिहारी चौधरी का दबदबा रहा, वहीं 2005 से 2015 तक बीजेपी के व्यास देव ने परचम लहराया, और 2020 में फिर राजद की वापसी हुई। यह चुनाव मंगल पांडेय के प्रबंधन कौशल और अवध बिहारी चौधरी के अनुभव के बीच की सीधी लड़ाई है, जिसका अंतिम परिणाम ही बताएगा कि सिवान की जनता ने इस बार किस सामाजिक और राजनीतिक समीकरण को अपनाया है। फिलहाल, वोटिंग जारी है और दोनों उम्मीदवारों का भविष्य ईवीएम में लगातार कैद हो रहा है।
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