'आमिर' जैसी चर्चित फिल्म से निर्देशन में आगाज करने वाले डायरेक्टर राज कुमार गुप्ता ने 'नो वन किल्ड जेसिका', 'घनचक्कर', 'रेड वन' और 'रेड टू' जैसी फिल्में दी हैं। उनकी हाल ही रिलीज हुई 'रेड 2' को क्रिटिक्स ने भी प्यार दिया और बॉक्स ऑफिस ने भी। उनसे एक बातचीत:
सिनेमा के अपने अनुभवों के आधार पर आपको क्या लगता है, बॉक्स ऑफिस पर ज्यादा फिल्में क्लिक नहीं हो पा रही हैं? हालांकि आपकी फिल्म 'रेड 2' को अच्छा रिस्पॉन्स मिला है।
राज कुमार गुप्ता बोले-ये सच है, सिनेमा के 100 साल से भी ज्यादा वक्त हो चुका है, मगर बॉक्स ऑफिस को तो कोई भी क्रैक नहीं का पाया है और मैं समझता हूं कि यही सिनेमा का मैजिक भी है। किसी को नहीं पता कि क्या चलेगा? इसी के चलते अलग -अलग तरह की फिल्में आती हैं। लोगों को लगता है कि ये फिल्म खूब चलेगी, मगर चलती नहीं है, मगर जिस फिल्म से उम्मीद नहीं होती, वही चल भी जाती है।
जितना मेरी सिनेमा को लेकर समझ है, मैं यही कह सकता हूं कि किसी भी के चलने के लिए कहानी जरूरी है और अच्छी कहानी की। एक फिल्ममेकर होने के नाते मैं एक मजबूत स्टोरी टेलिंग को महत्व दूंगा, नरेटिव फॉर्म हो फिर उस पर चार चांद लगाने के लिए अच्छे एक्टर्स हों और साथ एंटरटेनमेंट और एंगेजिंग वैल्यू हो, जो दर्शकों को अपनी तरफ आकर्षित कर सके। मूल जरूरत मुझे कहानी की लगती है, वही धागा है, जिसे पकड़ कर आगे बढ़ा जा सकता है। मुझे लगता है कंटेंट ही हमें बचा सकता है और पार करवा सकता है।
क्या आप मानते हैं कि फिल्म में बड़े स्टार्स का बजट भी बॉक्स ऑफिस के रिटर्न्स को प्रभावित करता है? लंबे समय से स्टार्स की प्राइस मनी को कम करने की बात चल रही है?
-मैं स्वयं निर्माता तो नहीं हूं, मगर इतना जरूर कह सकता हूं कि फिल्म निर्माण में अलग-अलग विभागों में बजट लगता है। ये सच है कि पूरी इंडस्ट्री इस बात को लेकर एकमत हो रही है कि हमें अपने बजट को कंट्रोल करना पड़ेगा। फिल्म निर्माण में बहुत अलग-अलग तरीके से बजट खर्च होते हैं, चाहे वो एक्टर्स की प्राइज मनी हो या फिर दूसरी फीस हों, तो ओवरऑल बजटिंग के सेन्स को लेकर लोग जागरूक हो रहे हैं। ओवरऑल बजट पर लगाम लगेगी, तो बॉक्स ऑफिस पर रिकवरी भी आसान होगी।
क्या फिल्म निर्देशन के दौरान आपने कभी अपना मेहनताना छोड़ा है या कम किया है?
-जी, बिल्कुल किया है। अभी मैं उसकी डिटेलिंग में नहीं जाना चाहूंगा, मगर मैंने दो फिल्मों में अपनी प्राइस मनी छोड़ी है। मैं इसमें किसी को दोष नहीं दूंगा, मगर कई बार बार निर्देशक के रूप में मुझे जो विजन चाहिए, उसको परिपूर्ण करने में मैंने छोड़ा है। मुझे लगता है कि फिल्म का निर्देशक होने के नाते मैं ही नहीं दूसरे फिल्ममेकर भी ऐसा करते होंगे।
आपके करियर की बात करूं, तो आपके लिए सबसे कठिन दौर क्या था?
-सबसे मुश्किल दौर तो पहली फिल्म बनाने का होता है। मगर ऐसा नहीं है कि दूसरी फिल्म आसान हो जाती है। आपकी पहली फिल्म बॉक्स ऑफिस पर चली हो या न चली हो, एक मेकर के लिए चुनौतियां कभी नहीं होतीं, मगर हां पहली फिल्म के दौरान आप स्ट्रगल कर रहे होते हैं, आपको कोई नहीं जानता और आपके काम से भी कोई वाकिफ नहीं होता। तब जब आप किसी को असिस्टेंट के रूप में हायर करने जाते हैं, तब भी वो आपको ऐसे देखता है कि मैं इसका असिस्टेंट क्यों बनूं। एक्टर्स मिलना तो दूर की बात होती है। ये सिलसिला तब तक चलता रहता है, जब तक आपकी कोई फिल्म आ नहीं जाती।
मगर फिर पहली फिल्म के बाद आपका काम अच्छा हो, तो एक पहचान तो मिल ही जाती है। मुझे अपनी पहली फिल्म बनाने में पूरे छह साल लग गए। पहले दो साल तक तो मैं स्क्रिप्ट पर काम करता रहा। मुझे अपनी फिल्म 'आमिर' जैसे विषय पर फिल्म बनाने के लिए लंबे समय तक लोगों को कन्विंस भी करना पड़ा। हालांकि मैं अनुराग कश्यप की दो फिल्मों 'ब्लैक फ्राइडे' और 'नो स्मोकिंग' में असोसिएट डायरेक्टर था। मैंने टीवी पर 'कगार' जैसे एपिसोडिक कहानियों का निर्देशन किया था। ये 45 मिनट्स की शॉर्ट स्टोरी हुआ करती थीं। मैं साथ में 'आमिर' की स्क्रिप्ट भी लिखता जा रहा था, मगर स्वंतत्र निर्देशक के रूप में आमिर को लाने में मुझे कई तरह के पापड़ बेलने पड़े थे।
आपने तो अनुराग कश्यप के साथ असोसिएट निर्देशक के रूप में काम किया है। हाल ही में उन्होंने इंडस्ट्री को टॉक्सिक कह कर इससे किनारा करने के बात कही, और भी कई बॉलीवुड वाले ये बातें कर रहे हैं, आपको कभी इस तरह के अनुभव से गुजरना पड़ा है?
-मैंने अनुराग कश्यप का वो बयान पढ़ा था। बाकी लोगों के बारे में मुझे जानकारी नहीं है। मगर मैंने ऐसा कोई टॉक्सिक माहौल महसूस नहीं किया, मगर हां फिल्ममेकिंग के नॉर्मल स्ट्रगल से तो मुझे गुजरना ही पड़ा है। अपने निर्माता और एक्टर्स के मामले में मैं खुशकिस्मत हूं, मुझे कभी कोई कटु अनुभव नहीं हुआ।
'रेड' के बाद 'रेड 2' तक आते -आते अजय देवगन के साथ आपकी बॉन्डिंग कितनी मजबूत हुई? सुना है वह सेट पर काफी प्रैंक्स्टर भी बनते हैं?
-अजय देवगन को फिल्म इंडस्ट्री में तकरीबन 35 साल हो गए हैं, मगर काम के मामले में उनकी कंसिस्टेंसी बनी हुई है। वह इतने बड़े सुपरस्टार होने के बावजूद जमीन से जुड़े एक्टर हैं। अपने काम को लेकर बहुत फोक्सड हैं, मगर उतने ही शालीन भी हैं। उनके बारे में ये जरूर कहूंगा कि वह कमिटेड और इंटेलिजेंट भी हैं। सेट पर उनके प्रैंक्स और शरारतें भी खूब चलती रहती हैं। हम लोग फिल्म का लास्ट शेड्यूल कर रहे थे और मेरी पत्नी मीरा भी सेट पर आई हुई थी।
उस दिन सेट पर गुझिया और दाल बाटी बनी थी। जैसे ही मेरी तरफ कोई गुझिया लेकर आया, अजय सर ने कहा कि गुझिया मत खाना, मैंने और अजय सर ने गुझिया नहीं खाई, मगर मेरी पत्नी गुझिया खा गईं। बस फिर क्या था, हम जब होटल आए, तो मेरी पत्नी हंसे जा रही थी। पूरी रात वो हंसती रही और अगले दिन भी उनकी हंसी थमी नहीं। मैं जब सेट पर पहुंचा, तो मुझे पता चला कि दो -चार और एक्टर्स ने गुझिया खाई थी और वो भी नॉन स्टॉप हंसे जा रहे थे, क्योंकि उन लोगों ने तो 4-5 गुझिया खा ली थी। आप समझ ही गए होंगे कि उस गुझिया में भांग मिली थी और यह अजय सर की ही शरारत थी।
आप 'नो वन किल्ड जेसिका' जैसी नायिका प्रधान फिल्म कब लाएंगे?
-बहुत जल्द लाऊंगा, अभी विषय का खुलासा नहीं कर सकता, मगर प्लानिंग चल रही है और शीघ्र ही आपको एक महिला प्रधान फिल्म देखने मिलेगी।
सिनेमा के अपने अनुभवों के आधार पर आपको क्या लगता है, बॉक्स ऑफिस पर ज्यादा फिल्में क्लिक नहीं हो पा रही हैं? हालांकि आपकी फिल्म 'रेड 2' को अच्छा रिस्पॉन्स मिला है।
राज कुमार गुप्ता बोले-ये सच है, सिनेमा के 100 साल से भी ज्यादा वक्त हो चुका है, मगर बॉक्स ऑफिस को तो कोई भी क्रैक नहीं का पाया है और मैं समझता हूं कि यही सिनेमा का मैजिक भी है। किसी को नहीं पता कि क्या चलेगा? इसी के चलते अलग -अलग तरह की फिल्में आती हैं। लोगों को लगता है कि ये फिल्म खूब चलेगी, मगर चलती नहीं है, मगर जिस फिल्म से उम्मीद नहीं होती, वही चल भी जाती है।
जितना मेरी सिनेमा को लेकर समझ है, मैं यही कह सकता हूं कि किसी भी के चलने के लिए कहानी जरूरी है और अच्छी कहानी की। एक फिल्ममेकर होने के नाते मैं एक मजबूत स्टोरी टेलिंग को महत्व दूंगा, नरेटिव फॉर्म हो फिर उस पर चार चांद लगाने के लिए अच्छे एक्टर्स हों और साथ एंटरटेनमेंट और एंगेजिंग वैल्यू हो, जो दर्शकों को अपनी तरफ आकर्षित कर सके। मूल जरूरत मुझे कहानी की लगती है, वही धागा है, जिसे पकड़ कर आगे बढ़ा जा सकता है। मुझे लगता है कंटेंट ही हमें बचा सकता है और पार करवा सकता है।
क्या आप मानते हैं कि फिल्म में बड़े स्टार्स का बजट भी बॉक्स ऑफिस के रिटर्न्स को प्रभावित करता है? लंबे समय से स्टार्स की प्राइस मनी को कम करने की बात चल रही है?
-मैं स्वयं निर्माता तो नहीं हूं, मगर इतना जरूर कह सकता हूं कि फिल्म निर्माण में अलग-अलग विभागों में बजट लगता है। ये सच है कि पूरी इंडस्ट्री इस बात को लेकर एकमत हो रही है कि हमें अपने बजट को कंट्रोल करना पड़ेगा। फिल्म निर्माण में बहुत अलग-अलग तरीके से बजट खर्च होते हैं, चाहे वो एक्टर्स की प्राइज मनी हो या फिर दूसरी फीस हों, तो ओवरऑल बजटिंग के सेन्स को लेकर लोग जागरूक हो रहे हैं। ओवरऑल बजट पर लगाम लगेगी, तो बॉक्स ऑफिस पर रिकवरी भी आसान होगी।
क्या फिल्म निर्देशन के दौरान आपने कभी अपना मेहनताना छोड़ा है या कम किया है?
-जी, बिल्कुल किया है। अभी मैं उसकी डिटेलिंग में नहीं जाना चाहूंगा, मगर मैंने दो फिल्मों में अपनी प्राइस मनी छोड़ी है। मैं इसमें किसी को दोष नहीं दूंगा, मगर कई बार बार निर्देशक के रूप में मुझे जो विजन चाहिए, उसको परिपूर्ण करने में मैंने छोड़ा है। मुझे लगता है कि फिल्म का निर्देशक होने के नाते मैं ही नहीं दूसरे फिल्ममेकर भी ऐसा करते होंगे।
आपके करियर की बात करूं, तो आपके लिए सबसे कठिन दौर क्या था?
-सबसे मुश्किल दौर तो पहली फिल्म बनाने का होता है। मगर ऐसा नहीं है कि दूसरी फिल्म आसान हो जाती है। आपकी पहली फिल्म बॉक्स ऑफिस पर चली हो या न चली हो, एक मेकर के लिए चुनौतियां कभी नहीं होतीं, मगर हां पहली फिल्म के दौरान आप स्ट्रगल कर रहे होते हैं, आपको कोई नहीं जानता और आपके काम से भी कोई वाकिफ नहीं होता। तब जब आप किसी को असिस्टेंट के रूप में हायर करने जाते हैं, तब भी वो आपको ऐसे देखता है कि मैं इसका असिस्टेंट क्यों बनूं। एक्टर्स मिलना तो दूर की बात होती है। ये सिलसिला तब तक चलता रहता है, जब तक आपकी कोई फिल्म आ नहीं जाती।
मगर फिर पहली फिल्म के बाद आपका काम अच्छा हो, तो एक पहचान तो मिल ही जाती है। मुझे अपनी पहली फिल्म बनाने में पूरे छह साल लग गए। पहले दो साल तक तो मैं स्क्रिप्ट पर काम करता रहा। मुझे अपनी फिल्म 'आमिर' जैसे विषय पर फिल्म बनाने के लिए लंबे समय तक लोगों को कन्विंस भी करना पड़ा। हालांकि मैं अनुराग कश्यप की दो फिल्मों 'ब्लैक फ्राइडे' और 'नो स्मोकिंग' में असोसिएट डायरेक्टर था। मैंने टीवी पर 'कगार' जैसे एपिसोडिक कहानियों का निर्देशन किया था। ये 45 मिनट्स की शॉर्ट स्टोरी हुआ करती थीं। मैं साथ में 'आमिर' की स्क्रिप्ट भी लिखता जा रहा था, मगर स्वंतत्र निर्देशक के रूप में आमिर को लाने में मुझे कई तरह के पापड़ बेलने पड़े थे।
आपने तो अनुराग कश्यप के साथ असोसिएट निर्देशक के रूप में काम किया है। हाल ही में उन्होंने इंडस्ट्री को टॉक्सिक कह कर इससे किनारा करने के बात कही, और भी कई बॉलीवुड वाले ये बातें कर रहे हैं, आपको कभी इस तरह के अनुभव से गुजरना पड़ा है?
-मैंने अनुराग कश्यप का वो बयान पढ़ा था। बाकी लोगों के बारे में मुझे जानकारी नहीं है। मगर मैंने ऐसा कोई टॉक्सिक माहौल महसूस नहीं किया, मगर हां फिल्ममेकिंग के नॉर्मल स्ट्रगल से तो मुझे गुजरना ही पड़ा है। अपने निर्माता और एक्टर्स के मामले में मैं खुशकिस्मत हूं, मुझे कभी कोई कटु अनुभव नहीं हुआ।
'रेड' के बाद 'रेड 2' तक आते -आते अजय देवगन के साथ आपकी बॉन्डिंग कितनी मजबूत हुई? सुना है वह सेट पर काफी प्रैंक्स्टर भी बनते हैं?
-अजय देवगन को फिल्म इंडस्ट्री में तकरीबन 35 साल हो गए हैं, मगर काम के मामले में उनकी कंसिस्टेंसी बनी हुई है। वह इतने बड़े सुपरस्टार होने के बावजूद जमीन से जुड़े एक्टर हैं। अपने काम को लेकर बहुत फोक्सड हैं, मगर उतने ही शालीन भी हैं। उनके बारे में ये जरूर कहूंगा कि वह कमिटेड और इंटेलिजेंट भी हैं। सेट पर उनके प्रैंक्स और शरारतें भी खूब चलती रहती हैं। हम लोग फिल्म का लास्ट शेड्यूल कर रहे थे और मेरी पत्नी मीरा भी सेट पर आई हुई थी।
उस दिन सेट पर गुझिया और दाल बाटी बनी थी। जैसे ही मेरी तरफ कोई गुझिया लेकर आया, अजय सर ने कहा कि गुझिया मत खाना, मैंने और अजय सर ने गुझिया नहीं खाई, मगर मेरी पत्नी गुझिया खा गईं। बस फिर क्या था, हम जब होटल आए, तो मेरी पत्नी हंसे जा रही थी। पूरी रात वो हंसती रही और अगले दिन भी उनकी हंसी थमी नहीं। मैं जब सेट पर पहुंचा, तो मुझे पता चला कि दो -चार और एक्टर्स ने गुझिया खाई थी और वो भी नॉन स्टॉप हंसे जा रहे थे, क्योंकि उन लोगों ने तो 4-5 गुझिया खा ली थी। आप समझ ही गए होंगे कि उस गुझिया में भांग मिली थी और यह अजय सर की ही शरारत थी।
आप 'नो वन किल्ड जेसिका' जैसी नायिका प्रधान फिल्म कब लाएंगे?
-बहुत जल्द लाऊंगा, अभी विषय का खुलासा नहीं कर सकता, मगर प्लानिंग चल रही है और शीघ्र ही आपको एक महिला प्रधान फिल्म देखने मिलेगी।
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