पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए सीट बंटवारे के लिए एनडीए में चला 'समुद्र मंथन' आखिरकार पूरा हो गया। एनडीए ने अपने सीट बंटवारे के फॉर्मूले का ऐलान भी कर दिया है। एनडीए के 'समुद्र मंथन' से निकला सीट बंटवारे का यह फॉर्मूला राज्य में एक नए राजनीतिक संतुलन का संकेत देता है। बीजेपी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जेडीयू को 101-101 सीटें मिली हैं, जबकि चिराग पासवान को 29 सीटें, जीतन राम मांझी की 'हम' और उपेंद्र कुशवाहा की रालोमो को 6-6 सीटें दी गई हैं। इस बंटवारे से दो बड़े निष्कर्ष निकलते हैं। क्या हैं ये निष्कर्ष? आइए जानते हैं...
JDU अब 'ड्राइविंग सीट' पर नहीं, बीजेपी का बढ़ता दबदबा
पहला और सबसे स्पष्ट निष्कर्ष यह है कि अब नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड (JDU) राज्य की राजनीति में 'ड्राइविंग सीट' पर नहीं है। 2024 के लोकसभा चुनाव में भी यह संकेत मिला था, जब बीजेपी ने 17 और जेडीयू ने 16 सीटों पर चुनाव लड़ा था। राज्य विधानसभा चुनाव में भी यही संतुलन कायम होता दिख रहा है। बीजेपी ने साफ कर दिया है कि वह अब 'दूसरे दर्जे' की भूमिका नहीं निभाएगी और वह सत्ता के संतुलन को बनाए रखते हुए अगले चरण में राज्य का नेतृत्व हासिल करने की तैयारी कर रही है।
चिराग पासवान फैक्टर, बीजेपी की नई दलित रणनीति
दूसरा बड़ा निष्कर्ष चिराग पासवान के मजबूत होते राजनीतिक कद से जुड़ा है। सूत्रों का कहना है कि 29 सीटों का बड़ा हिस्सा देकर बीजेपी ने यह साफ संकेत दिया है कि वह अब बिहार की राजनीति में पूरी तरह से नीतीश कुमार पर निर्भर नहीं रहना चाहती है। पिछले चुनाव में, चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) ने नीतीश कुमार की जेडीयू को काफी नुकसान पहुंचाया था, जिससे नीतीश कुमार को राज्य की राजनीति में अपना दबदबा खोना पड़ा था।
चिराग पासवान को 29 सीटे देना बीजेपी के लिए अगला कदम माना जा रहा है। बीजेपी अब चिराग के राजनीतिक प्रभाव को न केवल मान्यता दे रही है, बल्कि उन्हें राज्य के दलित चेहरे के रूप में भी आगे बढ़ा रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बीजेपी की यह रणनीति बिहार में दलित वोट बैंक को मजबूत करने की कोशिश है।
चिराग को खुश करने के लिए एक हुई मांझी की सीट?
इस 'समायोजन की राजनीति' में सबसे अधिक प्रभावित जीतन राम मांझी हुए हैं। उनकी पार्टी 'हम' को इस बार केवल छह सीटें मिली हैं, जो 2020 के पिछले चुनाव से एक कम है। राजनीतिक सूत्रों के अनुसार, मांझी की सीटें चिराग पासवान को संतुष्ट करने के लिए कम की गई हैं।
इससे एक बात साफ हो गई है कि एनडीए का ध्यान अब राज्य के दलित नेतृत्व को एक मजबूत चेहरा प्रदान करने पर है, और वह चेहरा अब जीतन राम मांझी नहीं, बल्कि चिराग पासवान हैं।
JDU अब 'ड्राइविंग सीट' पर नहीं, बीजेपी का बढ़ता दबदबा
पहला और सबसे स्पष्ट निष्कर्ष यह है कि अब नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड (JDU) राज्य की राजनीति में 'ड्राइविंग सीट' पर नहीं है। 2024 के लोकसभा चुनाव में भी यह संकेत मिला था, जब बीजेपी ने 17 और जेडीयू ने 16 सीटों पर चुनाव लड़ा था। राज्य विधानसभा चुनाव में भी यही संतुलन कायम होता दिख रहा है। बीजेपी ने साफ कर दिया है कि वह अब 'दूसरे दर्जे' की भूमिका नहीं निभाएगी और वह सत्ता के संतुलन को बनाए रखते हुए अगले चरण में राज्य का नेतृत्व हासिल करने की तैयारी कर रही है।
चिराग पासवान फैक्टर, बीजेपी की नई दलित रणनीति
दूसरा बड़ा निष्कर्ष चिराग पासवान के मजबूत होते राजनीतिक कद से जुड़ा है। सूत्रों का कहना है कि 29 सीटों का बड़ा हिस्सा देकर बीजेपी ने यह साफ संकेत दिया है कि वह अब बिहार की राजनीति में पूरी तरह से नीतीश कुमार पर निर्भर नहीं रहना चाहती है। पिछले चुनाव में, चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) ने नीतीश कुमार की जेडीयू को काफी नुकसान पहुंचाया था, जिससे नीतीश कुमार को राज्य की राजनीति में अपना दबदबा खोना पड़ा था।
चिराग पासवान को 29 सीटे देना बीजेपी के लिए अगला कदम माना जा रहा है। बीजेपी अब चिराग के राजनीतिक प्रभाव को न केवल मान्यता दे रही है, बल्कि उन्हें राज्य के दलित चेहरे के रूप में भी आगे बढ़ा रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बीजेपी की यह रणनीति बिहार में दलित वोट बैंक को मजबूत करने की कोशिश है।
चिराग को खुश करने के लिए एक हुई मांझी की सीट?
इस 'समायोजन की राजनीति' में सबसे अधिक प्रभावित जीतन राम मांझी हुए हैं। उनकी पार्टी 'हम' को इस बार केवल छह सीटें मिली हैं, जो 2020 के पिछले चुनाव से एक कम है। राजनीतिक सूत्रों के अनुसार, मांझी की सीटें चिराग पासवान को संतुष्ट करने के लिए कम की गई हैं।
इससे एक बात साफ हो गई है कि एनडीए का ध्यान अब राज्य के दलित नेतृत्व को एक मजबूत चेहरा प्रदान करने पर है, और वह चेहरा अब जीतन राम मांझी नहीं, बल्कि चिराग पासवान हैं।
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