नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अप्रत्याशित इस्तीफे से जितना विपक्ष हैरान है, उससे कहीं ज्यादा बीजेपी कंफ्यूज्ड है। पार्टी के अंदर यह बात किसी को हजम नहीं हो पा रही है कि राज्यसभा के सभापति का स्वास्थ्य इतना खराब है कि उन्होंने अपने कार्यकाल से दो साल पहले ही अचानक पद छोड़ने का फैसला कर लिया, वो भी तब जब भारत के संवैधानिक इतिहास में आजतक किसी भी उपराष्ट्रपति ने इस तरह से समय पूर्व इस्तीफा नहीं दिया है। अलबत्ता राष्ट्रपति बनने या उसका चुनाव लड़ने के लिए उपराष्ट्रपति पद छोड़ने की बात अलग रही है। इसी वजह से बीजेपी के अंदर भी इस बात की उतनी ही कयासबाजी जारी है, जितना पार्टी और सरकार से बाहर कि आखिर जगदीप धनखड़ ने इतना बड़ा फैसला क्यों लिया?
धनखड़ ने इतना बड़ा कदम क्यों उठाया?
भारत जैसे देश में जहां नेता किसी पद को हासिल करने के लिए हर तरह के जुगाड़ में लगे होते हैं, वहां उपराष्ट्रपति जैसे पद को यूं ही ठुकरा देना सामान्य बात नहीं है। इस तरह से जगदीप धनखड़ ने यह साबित कर दिया है कि वह खुद को किसी आम राजनेता के रूप में नहीं ढाल सके हैं। लेकिन, उन्होंने इतना बड़ा कदम क्यों उठाया? जब एनबीटी ऑनलाइन ने यही सवाल बीजेपी के एक पदाधिकारी से पूछ लिया तो उन्होंने पहले तो यही कहा कि "क्या बताएं...कुछ नहीं कह सकते। पता नहीं उन्होंने क्या सोचकर यह कदम उठाया है।"
'जुडिशरी वाली वजह हो सकती है'
जब हमने बहुत जोर डाला तो बीजेपी नेता जो नाम नहीं बताने की शर्त पर बात कर रहे थे, बोले- "जुडिशरी वाली वजह हो सकती है...किरेन रिजिजू को भी तो कानून मंत्रालय से जाना पड़ा...। हो सकता है कि धनखड़ के साथ भी यही बात रही हो। कुछ भी कहना बहुत मुश्किल है...जितना आपको पता है, उससे ज्यादा किसी को नहीं पता...कि उन्होंने आखिर इस मोड़ पर ऐसा फैसला क्यों किया?"
कॉलेजियम सिस्टम पर भी उठाया प्रश्न
दरअसल, जगदीप धनखड़ ने भारतीय न्यायपालिका को लेकर पिछले कुछ समय में जिस तरह की टिप्पणियां की हैं; और उसके रवैए पर जिस तरह के प्रश्नचिन्ह खड़े किए हैं, वह उनके जैसे बड़े संवैधानिक पद वाले किसी भी व्यक्ति ने अभी तक नहीं किया। कॉलेजियम सिस्टम पर सवाल हो या लोकतंत्र में संसद की 'सर्वोच्चता' की,उन्होंने अपने विचार खुलकर जाहिर किए। इसकी वजह से देश में एक नई बहस भी शुरू हुई।
राष्ट्रपति को समय-सीमा देने पर भड़के थे
उन्होंने न्यायपालिका पर जो सबसे बड़ा सवाल उठाया है, वह है आर्टिकल 142 का प्रयोग, जिसे उन्होंने लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ 'न्यूक्लियर मिसाइल' तक बता दिया। क्योंकि, वह राष्ट्रपति और राज्यपालों को फैसला लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट की ओर से समय-सीमा तय करने के फैसले पर बहुत ही ज्यादा असहज थे। इसी तरह से जब दिल्ली हाई कोर्ट के तत्कालीन जज जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से बोरियों में कैश बरामद हुए और कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हुई तो उन्होंने कॉलोजियम सिस्टम पर निशाना साध दिया। सोमवार को जब विपक्ष की ओर से जस्टिस वर्मा पर महाभियोग की शुरुआत वाला प्रस्ताव लाया गया तो धनखड़ ने उसे मंजूर करने में जरा भी देरी नहीं की। जबकि, इसी तरह की एक कार्रवाई सरकारी सदस्यों की ओर से लोकसभा में भी शुरू की गई है।
संयोग से 22 जुलाई, 2025 को ही सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति के उन 14 सवालों पर सुनवाई करने वाला है, जो आर्टिकल 142 के तहत उसके फैसले के लिए समय-सीमा तय करने के न्यायपालिका के निर्णय को लेकर उन्होंने पूछे हैं। इस सुनवाई की तारीख की पूर्व संध्या पर ही धनखड़ ने अपना पद छोड़ा है, जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पूरी तरह से असहमत थे।
धनखड़ ने इतना बड़ा कदम क्यों उठाया?
भारत जैसे देश में जहां नेता किसी पद को हासिल करने के लिए हर तरह के जुगाड़ में लगे होते हैं, वहां उपराष्ट्रपति जैसे पद को यूं ही ठुकरा देना सामान्य बात नहीं है। इस तरह से जगदीप धनखड़ ने यह साबित कर दिया है कि वह खुद को किसी आम राजनेता के रूप में नहीं ढाल सके हैं। लेकिन, उन्होंने इतना बड़ा कदम क्यों उठाया? जब एनबीटी ऑनलाइन ने यही सवाल बीजेपी के एक पदाधिकारी से पूछ लिया तो उन्होंने पहले तो यही कहा कि "क्या बताएं...कुछ नहीं कह सकते। पता नहीं उन्होंने क्या सोचकर यह कदम उठाया है।"
'जुडिशरी वाली वजह हो सकती है'
जब हमने बहुत जोर डाला तो बीजेपी नेता जो नाम नहीं बताने की शर्त पर बात कर रहे थे, बोले- "जुडिशरी वाली वजह हो सकती है...किरेन रिजिजू को भी तो कानून मंत्रालय से जाना पड़ा...। हो सकता है कि धनखड़ के साथ भी यही बात रही हो। कुछ भी कहना बहुत मुश्किल है...जितना आपको पता है, उससे ज्यादा किसी को नहीं पता...कि उन्होंने आखिर इस मोड़ पर ऐसा फैसला क्यों किया?"
कॉलेजियम सिस्टम पर भी उठाया प्रश्न
दरअसल, जगदीप धनखड़ ने भारतीय न्यायपालिका को लेकर पिछले कुछ समय में जिस तरह की टिप्पणियां की हैं; और उसके रवैए पर जिस तरह के प्रश्नचिन्ह खड़े किए हैं, वह उनके जैसे बड़े संवैधानिक पद वाले किसी भी व्यक्ति ने अभी तक नहीं किया। कॉलेजियम सिस्टम पर सवाल हो या लोकतंत्र में संसद की 'सर्वोच्चता' की,उन्होंने अपने विचार खुलकर जाहिर किए। इसकी वजह से देश में एक नई बहस भी शुरू हुई।
राष्ट्रपति को समय-सीमा देने पर भड़के थे
उन्होंने न्यायपालिका पर जो सबसे बड़ा सवाल उठाया है, वह है आर्टिकल 142 का प्रयोग, जिसे उन्होंने लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ 'न्यूक्लियर मिसाइल' तक बता दिया। क्योंकि, वह राष्ट्रपति और राज्यपालों को फैसला लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट की ओर से समय-सीमा तय करने के फैसले पर बहुत ही ज्यादा असहज थे। इसी तरह से जब दिल्ली हाई कोर्ट के तत्कालीन जज जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से बोरियों में कैश बरामद हुए और कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हुई तो उन्होंने कॉलोजियम सिस्टम पर निशाना साध दिया। सोमवार को जब विपक्ष की ओर से जस्टिस वर्मा पर महाभियोग की शुरुआत वाला प्रस्ताव लाया गया तो धनखड़ ने उसे मंजूर करने में जरा भी देरी नहीं की। जबकि, इसी तरह की एक कार्रवाई सरकारी सदस्यों की ओर से लोकसभा में भी शुरू की गई है।
संयोग से 22 जुलाई, 2025 को ही सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति के उन 14 सवालों पर सुनवाई करने वाला है, जो आर्टिकल 142 के तहत उसके फैसले के लिए समय-सीमा तय करने के न्यायपालिका के निर्णय को लेकर उन्होंने पूछे हैं। इस सुनवाई की तारीख की पूर्व संध्या पर ही धनखड़ ने अपना पद छोड़ा है, जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पूरी तरह से असहमत थे।
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