नई दिल्ली: लद्दाख में भारतीय सेना दो मोर्चों पर डटी हुई है। पूरब में तिब्बत की तरफ चीन की ओर से लगातार चालबाजियां चलती रहती हैं। दूसरी तरफ, पश्चिम की ओर पाकिस्तान की गुस्ताखियों का जवाब देते रहना पड़ता है। इसके लिए सेना को वहां अपने इंफ्रास्ट्रक्चर को लगातार विस्तार देने की जरूरत है। लेकिन, भारतीय सेना और सरकार के सामने इसके साथ ही एक बहुत बड़ा नैतिक और पर्यावरण से जुड़ा सवाल खड़ा हो गया है। यह सवाल है दुर्लभ और लुप्तप्राय वन्यजीवों के संरक्षण का।
अभ्यारण्यरणों में सैन्य ठिकानों पर विचार
दरअसल, लद्दाख के दो महत्वपूर्ण वन्यजीव अभ्यारण्यों चांगथंग और काराकोरम के कुछ हिस्से को सेना को दिए जाने की बात चल रही है। सामरिक तौर पर देश की सुरक्षा के लिए इसे बहुत ही अहम माना जा रहा है। लेकिन, चिंता इन अभ्यारण्यों में मौजूद संरक्षित जीवों की हो रही है। क्योंकि, इससे उनके प्राकृतिक आवास को नुकसान होने का खतरा पैदा होने की आशंका है। इन चिंताओं को दूर करने के लिए नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्डलाइफ की स्टैंडिंग कमेटी को मंथन करना है।
वाइल्डलाइफ रिजर्व में क्या बनना है?
बता दें कि त्सोग्त्सालु में चांगथंग शीत मरुस्थल वन्यजीव अभ्यारण्य के 24.2 हेक्टेयर जमीन का इस्तेमाल गोला बारूद स्टोरेज के लिए करने का प्रस्ताव है। वहीं लेह के चुशूल में इसी की 40 हेक्टेयर जमीन पर एक ब्रिगेड हेडक्वार्डर बनाया जाना प्रस्तावित है। इनके अलावा इसी अभ्यारण के तारा इलाके में सेना के लिए एक ट्रेनिंग सुविधा के निर्माण की भी योजना है। इसी तरह लेह में काराकोरम वन्यजीव अभ्यारण्य की 8.16 हेक्टेयर जमीन पर आर्मी कैंप बनाने का प्रस्ताव है। इसके अलावा लेह में ही आर्टिलरी बैटरी की स्थापना के लिए इसी अभ्यारण की 9.46 वन भूमि की दरकार है।
दुर्लभ और लुप्तप्राय वन्यजीवों का बसेरा
दिक्कत ये है कि चांगथंग वन्यजीव अभ्यारण्य में अनेकों दुर्लभ और लुप्तप्राय वन्यजीव पाए जाते हैं। इनमें तिब्बती भेड़िया, जंगली याक, भड़ल, जंगली कुत्ता, हिम तेंदुआ, और भूरा भालू शामिल हैं। इसी तरह काराकोरम वन्यजीव अभ्यारण्य तिब्बती मृग, जंगली भेड़ (शापो), जंगली याक, भड़ल, हिम तेंदुआ, हिमालयी चूहा और यूरेशियन लिंक्स (जंगली बिल्ली) का डेरा है।
वन विभाग की रिपोर्ट में भी हुआ जिक्र
इस मामले को देख रहे लद्दाख के एक उप वन संरक्षक (deputy conservator of forests) ने सिफारिशों के साथ अपनी जो साइट इंस्पेक्शन रिपोर्ट दी है, उसमें भी कहा गया कि यह इलाका दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियों का बसेरा है। इसके मुताबिक यह क्षेत्र ब्लैक-नेक्ड क्रेन (काली गर्दन वाला सारस) और बार-हेडेड गूज (बिर्वा) के कुछ जाने-माने भारतीय ब्रीडिंग साइट्स में से एक है।
दो राहे पर सेना, कैसे निकले उपाय
दूसरी तरफ यह वो इलाके हैं, जिसकी देश की सुरक्षा के लिए सामरिक नजरिए से बहुत ज्यादा अहमियत है। पूरब में चीन और पश्चिम में पाकिस्तान की सीमाएं यहां से लगती हैं। यही वजह है कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय का कहना है, '...हालांकि, इस प्रस्ताव पर इसकी रणनीतिक अहमियत की वजह से विचार किया जा सकता है, लेकिन यह पक्का करना भी आवश्यक है कि इस नाज़ुक ठंडे रेगिस्तान में कम से कम पारिस्थितिक छेड़छाड़ हो।'
अभ्यारण्यरणों में सैन्य ठिकानों पर विचार
दरअसल, लद्दाख के दो महत्वपूर्ण वन्यजीव अभ्यारण्यों चांगथंग और काराकोरम के कुछ हिस्से को सेना को दिए जाने की बात चल रही है। सामरिक तौर पर देश की सुरक्षा के लिए इसे बहुत ही अहम माना जा रहा है। लेकिन, चिंता इन अभ्यारण्यों में मौजूद संरक्षित जीवों की हो रही है। क्योंकि, इससे उनके प्राकृतिक आवास को नुकसान होने का खतरा पैदा होने की आशंका है। इन चिंताओं को दूर करने के लिए नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्डलाइफ की स्टैंडिंग कमेटी को मंथन करना है।
वाइल्डलाइफ रिजर्व में क्या बनना है?
बता दें कि त्सोग्त्सालु में चांगथंग शीत मरुस्थल वन्यजीव अभ्यारण्य के 24.2 हेक्टेयर जमीन का इस्तेमाल गोला बारूद स्टोरेज के लिए करने का प्रस्ताव है। वहीं लेह के चुशूल में इसी की 40 हेक्टेयर जमीन पर एक ब्रिगेड हेडक्वार्डर बनाया जाना प्रस्तावित है। इनके अलावा इसी अभ्यारण के तारा इलाके में सेना के लिए एक ट्रेनिंग सुविधा के निर्माण की भी योजना है। इसी तरह लेह में काराकोरम वन्यजीव अभ्यारण्य की 8.16 हेक्टेयर जमीन पर आर्मी कैंप बनाने का प्रस्ताव है। इसके अलावा लेह में ही आर्टिलरी बैटरी की स्थापना के लिए इसी अभ्यारण की 9.46 वन भूमि की दरकार है।
दुर्लभ और लुप्तप्राय वन्यजीवों का बसेरा
दिक्कत ये है कि चांगथंग वन्यजीव अभ्यारण्य में अनेकों दुर्लभ और लुप्तप्राय वन्यजीव पाए जाते हैं। इनमें तिब्बती भेड़िया, जंगली याक, भड़ल, जंगली कुत्ता, हिम तेंदुआ, और भूरा भालू शामिल हैं। इसी तरह काराकोरम वन्यजीव अभ्यारण्य तिब्बती मृग, जंगली भेड़ (शापो), जंगली याक, भड़ल, हिम तेंदुआ, हिमालयी चूहा और यूरेशियन लिंक्स (जंगली बिल्ली) का डेरा है।
वन विभाग की रिपोर्ट में भी हुआ जिक्र
इस मामले को देख रहे लद्दाख के एक उप वन संरक्षक (deputy conservator of forests) ने सिफारिशों के साथ अपनी जो साइट इंस्पेक्शन रिपोर्ट दी है, उसमें भी कहा गया कि यह इलाका दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियों का बसेरा है। इसके मुताबिक यह क्षेत्र ब्लैक-नेक्ड क्रेन (काली गर्दन वाला सारस) और बार-हेडेड गूज (बिर्वा) के कुछ जाने-माने भारतीय ब्रीडिंग साइट्स में से एक है।
दो राहे पर सेना, कैसे निकले उपाय
दूसरी तरफ यह वो इलाके हैं, जिसकी देश की सुरक्षा के लिए सामरिक नजरिए से बहुत ज्यादा अहमियत है। पूरब में चीन और पश्चिम में पाकिस्तान की सीमाएं यहां से लगती हैं। यही वजह है कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय का कहना है, '...हालांकि, इस प्रस्ताव पर इसकी रणनीतिक अहमियत की वजह से विचार किया जा सकता है, लेकिन यह पक्का करना भी आवश्यक है कि इस नाज़ुक ठंडे रेगिस्तान में कम से कम पारिस्थितिक छेड़छाड़ हो।'
You may also like

IND vs AUS Weather Report: महिला विश्व कप के दूसरे सेमीफाइनल में भिड़ेंगे भारत-ऑस्ट्रेलिया, जानिए मैच में बारिश होगी या नहीं

गंगा एक्सप्रेसवे का निर्माण दिसंबर तक पूरा करने का लक्ष्य, मुख्यमंत्री ने दिए गति बढ़ाने के निर्देश

पटाखे फोड़ना धर्म का अनिवार्य हिस्सा? सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस ने पूछा सवाल, अजान पर बोले- यह तो...

खलनायकी के 'मदन चोपड़ा' : सिल्वर स्क्रीन पर एक्टिंग से उड़ान भरता 'पायलट', हर किरदार में दमदार

Marizanne Kapp ने सेमीफाइनल में पंजा खोलकर तोड़ा Jhulan Goswami का रिकॉर्ड, बनी वर्ल्ड कप की नंबर-1 विकेट टेकर




