तेहरान: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मंगलवार को अपनी एक सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि ईरान और इजरायल में युद्धविराम लागू हो गया है। कोई भी पक्ष इसका उल्लंघन ना करें। इससे कुछ घंटे पहले ट्रंप ने इजरायल और ईरान में युद्धविराम की घोषणा की थी लेकिन इस पर उपापोह की स्थिति बनी हुई थी। मंगलवार सुबह तक ईरान और इजरायल के एक दूसरे पर हमले जारी थी लेकिन अब चीजें शांति की ओर जा रही हैं। 12 दिनों तक चला युद्ध रुक गया है लेकिन कई सवाल बरकरार हैं। खासतौर से अमेरिका और इजरायल के सामने ये प्रश्न है कि उन्होंने इस युद्ध से क्या हासिल किया है।
इजरायल ने 13 जून को ईरान पर अचानक हमले शुरू किए थे। इन हमलों में ईरान के सैन्य नेतृत्व और परमाणु वैज्ञानिकों को निशाना बनाया गया। इजरायल ने ये हमले शुरू करने की वजह ईरान का परमाणु बम बनाने के करीब पहुंच जाना बताया। इजरायल ने कहा कि उसके हमले तक तक जारी रहेंगे, जब तक कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह से तबाह नहीं हो जाता है।
वाकई तबाह हुआ ईरान का परमाणु कार्यक्रम!इजरायल के समर्थन में 22 जून को अमेरिका भी लड़ाई में कूद गया। अमेरिका ने अपने बेहद ताकतवर B-2 बमवर्षकों का इस्तेमाल करते हुए ईरान में बंकर बस्टर बम गिराए। इन हमलों के बाद इजरायल और अमेरिका ने कहा कि ईरान की परमाणु सुविधाएं तबाह हो गई हैं। अब तेहरान के लिए परमाणु कार्यक्रम आगे बढ़ना लगभग नामुमकिन होगा। हालांकि एक्सपर्ट और स्वतंत्र एजेंसियों की रिपोर्ट ये नहीं मानती कि ईरान की न्यूक्लियर फैसिलिटी तबाह हो गई हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम इस युद्ध की वजह से नहीं रुकेगा। अमेरिकी और इजरायली हमलों ने फोर्डो, नतांज और इस्फहान में परमाणु सुविधाओं को कितना नुकसान पहुंचाया है, यह स्पष्ट नहीं है। विशेषज्ञों का मानना है कि इन सुविधाओं को सिर्फ बाहरी नुकसान हुआ है क्योंकि कोई रेडिएशन हमलों के बाद नहीं हुआ। वहीं ये भी सामने आया है कि ईरान ने 60% तक समृद्ध यूरेनियम को इन हमलों से पहले ही ट्रांसफर कर दिया था।
खामेनेई सत्ता में बरकरारइजरायल ने लड़ाई शुरू होने के एक दिन बाद ही अपने युद्ध के टारगेट में तेहरान में सत्ता परिवर्तन की बात जोड़ दी थी। इजरायली पीएम नेतन्याहू ने ईरानी लोगों से अपनी सरकार के खिलाफ सड़कों पर आने की बात कही तो डोनाल्ड ट्रंप ने भी ये संकेत दिए कि अमेरिका तेहरान से अली खामेनेई की सत्ता को उखाड़ना चाहता है। विदेशो में रह रहे खामेनेई विरोधियों के बयान भी आने लगे थे कि ईरान में सत्ता परिवर्तन जरूरी है।
तेहरान में जमीन पर इजरायल और अमेरिका की अपीलों के उलट दिखा। तेहरान में लोगों ने सड़कों पर उतरकर युद्ध के मुश्किल समय में अली खामेनेई के साथ अपनी एकजुटता दर्शाई। इस दौरान कई लोगों के हाथों मे खामेनेई और इजरायली हमलों में मारे गए सैन्य अफसरों की तस्वीरें देखी गईं। साफ है कि तेहरान में इस युद्ध ने खामेनेई की पकड़ कमजोर के बजाय मजबूत ही की है।
अमेरिका-इजरायल को नुकसान या फायदा?12 दिन के युद्ध के बाद ये बहुत साफ है कि अमेरिका और इजरायल मिलकर सिर्फ ईरान के परमाणु कार्यक्रम को कुछ पीछे धकेल सके हैं। ईरान के परमाणु कार्यक्रम को पूरी तरह तबाह करने और खामेनेई को सत्ता से हटाने में अमेरिका और इजरायल मिलकर भी कामयाब नहीं हो सके हैं। यानी अपने दोनों प्रमुख लक्ष्यों को पाने में अमेरिका और इजरायल कामयाब नहीं हो सके है।
अमेरिका की ईरान के साथ चल रही परमाणु वार्ता इस युद्ध की वजह से खटास में पड़ गई है। अब फिर से इस पर ईरान को राजी करना आसान नहीं होगा। दूसरी ओर दुनिया के बड़े हिस्से में इजरायल और अमेरिका को पहले हमला करते हुए युद्ध शुरू करने के लिए आलोचना का शिकार होना पड़ा है। खासतौर से ट्रंप की छवि को धक्का लगा है क्योंकि वह लगातार युद्ध के खिलाफ बात करते आ रहे थे और शांति का नोबेल तक अपने लिए चाहते हैं।
इजरायल ने 13 जून को ईरान पर अचानक हमले शुरू किए थे। इन हमलों में ईरान के सैन्य नेतृत्व और परमाणु वैज्ञानिकों को निशाना बनाया गया। इजरायल ने ये हमले शुरू करने की वजह ईरान का परमाणु बम बनाने के करीब पहुंच जाना बताया। इजरायल ने कहा कि उसके हमले तक तक जारी रहेंगे, जब तक कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह से तबाह नहीं हो जाता है।
वाकई तबाह हुआ ईरान का परमाणु कार्यक्रम!इजरायल के समर्थन में 22 जून को अमेरिका भी लड़ाई में कूद गया। अमेरिका ने अपने बेहद ताकतवर B-2 बमवर्षकों का इस्तेमाल करते हुए ईरान में बंकर बस्टर बम गिराए। इन हमलों के बाद इजरायल और अमेरिका ने कहा कि ईरान की परमाणु सुविधाएं तबाह हो गई हैं। अब तेहरान के लिए परमाणु कार्यक्रम आगे बढ़ना लगभग नामुमकिन होगा। हालांकि एक्सपर्ट और स्वतंत्र एजेंसियों की रिपोर्ट ये नहीं मानती कि ईरान की न्यूक्लियर फैसिलिटी तबाह हो गई हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम इस युद्ध की वजह से नहीं रुकेगा। अमेरिकी और इजरायली हमलों ने फोर्डो, नतांज और इस्फहान में परमाणु सुविधाओं को कितना नुकसान पहुंचाया है, यह स्पष्ट नहीं है। विशेषज्ञों का मानना है कि इन सुविधाओं को सिर्फ बाहरी नुकसान हुआ है क्योंकि कोई रेडिएशन हमलों के बाद नहीं हुआ। वहीं ये भी सामने आया है कि ईरान ने 60% तक समृद्ध यूरेनियम को इन हमलों से पहले ही ट्रांसफर कर दिया था।
खामेनेई सत्ता में बरकरारइजरायल ने लड़ाई शुरू होने के एक दिन बाद ही अपने युद्ध के टारगेट में तेहरान में सत्ता परिवर्तन की बात जोड़ दी थी। इजरायली पीएम नेतन्याहू ने ईरानी लोगों से अपनी सरकार के खिलाफ सड़कों पर आने की बात कही तो डोनाल्ड ट्रंप ने भी ये संकेत दिए कि अमेरिका तेहरान से अली खामेनेई की सत्ता को उखाड़ना चाहता है। विदेशो में रह रहे खामेनेई विरोधियों के बयान भी आने लगे थे कि ईरान में सत्ता परिवर्तन जरूरी है।
तेहरान में जमीन पर इजरायल और अमेरिका की अपीलों के उलट दिखा। तेहरान में लोगों ने सड़कों पर उतरकर युद्ध के मुश्किल समय में अली खामेनेई के साथ अपनी एकजुटता दर्शाई। इस दौरान कई लोगों के हाथों मे खामेनेई और इजरायली हमलों में मारे गए सैन्य अफसरों की तस्वीरें देखी गईं। साफ है कि तेहरान में इस युद्ध ने खामेनेई की पकड़ कमजोर के बजाय मजबूत ही की है।
अमेरिका-इजरायल को नुकसान या फायदा?12 दिन के युद्ध के बाद ये बहुत साफ है कि अमेरिका और इजरायल मिलकर सिर्फ ईरान के परमाणु कार्यक्रम को कुछ पीछे धकेल सके हैं। ईरान के परमाणु कार्यक्रम को पूरी तरह तबाह करने और खामेनेई को सत्ता से हटाने में अमेरिका और इजरायल मिलकर भी कामयाब नहीं हो सके हैं। यानी अपने दोनों प्रमुख लक्ष्यों को पाने में अमेरिका और इजरायल कामयाब नहीं हो सके है।
अमेरिका की ईरान के साथ चल रही परमाणु वार्ता इस युद्ध की वजह से खटास में पड़ गई है। अब फिर से इस पर ईरान को राजी करना आसान नहीं होगा। दूसरी ओर दुनिया के बड़े हिस्से में इजरायल और अमेरिका को पहले हमला करते हुए युद्ध शुरू करने के लिए आलोचना का शिकार होना पड़ा है। खासतौर से ट्रंप की छवि को धक्का लगा है क्योंकि वह लगातार युद्ध के खिलाफ बात करते आ रहे थे और शांति का नोबेल तक अपने लिए चाहते हैं।
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