अक्सर लोग लंबे समय से गाड़ी प्लान कर रहे होते है, लेकिन वाहन खरीद नहीं पाते। कुछ लोग वाहन खरीद तो लेते हैं लेकिन दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं। कई अपने मन मुताबिक गाड़ी नहीं खरीद पाते। कुछ लोग पुरानी कारों के सहारे ही अपना शौक पूरा करने को मजबूर हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ज्योतिष के माध्यम से वाहन और वाहन सुख की स्थिति को देखा जा सकता है। इसका उत्तर है हाँ, बिल्कुल देखा जा सकता है। इसके साथ ही हम ज्योतिष के सिद्धांतों के माध्यम से गाड़ियों की खरीद-बिक्री की स्थिति आदि बाजार की मंदी और तेजी को समझ सकते हैं। इससे वाहन लेने और उसकी शुभता में बढ़ोतरी की संभावना जरूर बढ़ जाती है।
स्वास्थ्य, नौकरी-बिजनेस, विवाह, संतान, शिक्षा आदि के साथ ही वाहन सुख की स्थिति को भी ज्योतिष के जरिए जाना जा सकता है। सामान्य ज्योतिष के सिद्धांत के अनुसार, वाहन सुख की स्थिति जन्मकुंडली में मुख्यतः लग्न, लग्नेश, शुक्र, मंगल, चंद्रमा एवं चतुर्थ भाव, एकादश भाव, द्वितीय भाव और नवम भाव से देखा जाता है। वाहन के साथ ही चौथे भाव से माता, यात्रा, घर आदि का सुख भी देखा जाता है। जन्मकुंडली में चतुर्थ भाव मजबूत हो, शुक्र बलवान और चंद्र शुभ हों तो व्यक्ति को निश्चित रूप से वाहन सुख प्राप्त होता है। वहीं शनि, राहु या केतु का नकारात्मक प्रभाव वाहन में रुकावट या दुर्घटनाओं की आशंका बढ़ा सकता है।
वाहन सुख की स्थिति के लिए हमारा व्यक्तित्व बहुत महत्वपूर्ण हैं। ऐसे में लग्न और लग्न के स्वामी की कुंडली में स्थिति अहम मानी जाती है। जबकि, वाहन और धन की स्थिति को लग्न और चतुर्थ भाव से देखा जाता है। किसी जातक की कुंडली में लग्न राशियाँ शारीरिक बनावट, व्यक्तित्व और चरित्र का संकेत देती हैं। इसलिए लग्न द्वारा दर्शाए गए गुण व्यक्ति पर प्रभाव डालते हैं और व्यक्तित्व को दर्शाते हैं। यदि लग्न और लग्नेश नैसर्गिक शुभ और कर्मेश शुभ हों तो व्यक्ति को सुखी, स्वस्थ और सभी सुखों से युक्त जीवन जीने में सक्षम बनाती है। प्रथम भाव का कारक सूर्य है।
शास्त्रीय पुस्तक उत्तर कालामृत के अनुसार, चतुर्थ भाव का अभिप्राय माता, शिक्षा, स्वास्थ्य, संपत्ति है और इसका कारक चंद्रमा है और बृहस्पति यहां कर्क राशि में उच्च के होते हैं। इस भाव का सीधा संबंध सरकार, मकान, यात्रा, वाहन, वाहन सुख के योग आदि से भी होता है। प्राचीन काल में पौराणिक कथाओं का ज्ञान, बैल, गाय, घोड़ा, आर्द्रभूमि, धन की अधिक वृद्धि आदि की स्थिति भी चौथे भाव और चंद्रमा से देखी जाती थी।
एक अन्य शास्त्रीय पुस्तक फलदीपिका के अनुसार, घर, ज़मीन, मामा, बहन का बेटा, रिश्तेदार, मित्र, गाय, बैल, सुगंध, जौहरी, वस्त्र, सुख के साथ ही वाहन, वाहन सुख का स्तर आदि की स्थिति भी चतुर्थ भाव से देखी जाती है। सामान्यतः, चौथा भाव माता, शिक्षा, वाहन, धन, स्वास्थ्य आदि का संकेत देता है। किसी जातक को भाव के उपरोक्त प्रभावों का आनंद लेने के लिए, नवम भाव का सहयोग आवश्यक है और बेहतर परिणामों के लिए इसे देखा जाना चाहिए। नवम भाव का कारक बृहस्पति है। कार तो आनी है लेकिन लक्जरी का स्तर देखने के लिए नवम भाव और वाहन से लाभ आदि की स्थिति देखने के लिए लाभ भाव यानी एकादश भाव की स्थिति देखनी चाहिए।
वाहन सुख के ज्योतिष सिद्धांत
ज्योतिष के सामान्य सिद्धांत अनुसार, वाहन सुख की स्थिति आदि का विचार जन्मकुंडली में चतुर्थ भाव, शुक्र, मंगल, चंद्रमा, एकादश भाव और द्वितीय भाव से किया जाता है। चतुर्थ भाव सुख, वाहन, भवन और आरामदेय जीवन से संबंधित है। चतुर्थ भाव मजबूत हो और शुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो व्यक्ति को वाहन सुख मिलता है। चतुर्थ भाव के साथ ही चतुर्थ भाव के स्वामी अर्थात् चतुर्थेश बलवान हो और शुभ ग्रहों के साथ हो या केंद्र और त्रिकोण में हो तो यह नवीन वाहन का योग बनाता है।
सुविधा और भोग विलास के प्रतिनिधि होने के साथ ही शुक्र वाहन सुख के लिए कारक ग्रह हैं। यदि शुक्र उच्च के हो और केंद्र और त्रिकोण में स्थित हो तो व्यक्ति कई वाहनों का स्वामी होता है। वाहन सुख में मंगल की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो सकती है। मंगल ऊर्जा और यांत्रिक वस्तुओं का कारक है। मंगल का वाहन से सीधा संबंध है। मंगल शुभ होकर चतुर्थ या एकादश स्थित भाव में हो तो व्यक्ति को हैवी इंजन वाले लक्जरी वाहन या स्पोर्ट्स कार आदि का स्वामित्व प्राप्त हो सकता है। एकादश भाव लाभ का भाव है। एकादश भाव या उसके स्वामी का संबंध चतुर्थ भाव से हो तो जातक को वाहन सुख के साथ ही वाहन से लाभ भी मिलता है। चतुर्थ भाव के कारक ग्रह चंद्र तथा बुध हैं। यदि इनकी स्थिति भी कुंडली में उत्तम हो तो अच्छा लाभ मिल सकता है।
कुंडली में वाहन सुख के योग
कुंडली में वाहन सुख के लिए चौथे भाव, लग्न, नवम और एकादश भाव के साथ ही इनके स्वामियों की स्थिति देखनी चाहिए। शुक्र, मंगल, चंद्रमा आदि ग्रहों की स्थिति से बनने वाले योगों से वाहन सुख का आकलन किया जाता है। वाहन सुख के कुछ ज्योतिषीय सूत्र इस प्रकार हैं –
1- नवम भाव में उच्च का शुक्र हो तो वाहन सुख का योग बनाता है। इसके अलावा शुक्र से सप्तम भाव में चंद्रमा होने पर भी वाहन सुख मिलता है।
2- एकादश भाव में शुक्र उच्च का हो या लग्न में शुक्र उच्च का हो तो जातक वाहन सुख का भोग करने वाला होता है।
3- चतुर्थ भाव में शुभ ग्रह हो और शुक्र से तीसरे भाव में चंद्र हो तो वाहन सुख प्राप्त होता है।
4- चतुर्थ भाव का स्वामी केंद्र में बैठा हो और उस भाव का स्वामी लाभ भाव में हो तो वाहन सुख मिलता है।
5- चतुर्थ भाव का स्वामी शनि, बृहस्पति और शुक्र के साथ नवम भाव में हो और नवम भाव का स्वामी केंद्र या त्रिकोण में हो तो ऐसा जातक कई वाहनों का मालिक होता है।
6- लग्न यानी पहले भाव, चतुर्थ और नवभ के स्वामी परस्पर केंद्र में रहने से वाहन सुख की प्राप्ति होती है। लग्न शरीर, चतुर्थ सुख और नवम भाग्य है। इनकी स्थिति यदि मजबूत हो तो निश्चित ही वाहन सुख मिलता है।
7- द्वितीय भाव का स्वामी लग्न में हो, दशमेश धन भाव में हो और चतुर्थ भाव में उच्च राशि का ग्रह हो तो उत्तम वाहन मिलता है।
8- चतुर्थ भाव का स्वामी पंचम भाव में स्थित हो और पंचम भाव का स्वामी चतुर्थ भाव में हो तो वाहन सुख का प्रबल योग बनता है।
9- द्वितीय भाव का स्वामी एकादश और एकादश का स्वामी द्वितीय भाव में स्थित हो तो ऐसे जातक के पास करोड़ों रुपये की कारें होती हैं।
10- बृहस्पति से दृष्ट चतुर्थ भाव का स्वामी एकादश भाव में स्थित हो तो जातक के पास एक साथ कई वाहन होते हैं।
शास्त्रीय पुस्तक जातक-अलंकार में वाहन हानि अथवा वाहनहीन योग के बारे में चर्चा मिलती है। यावन्तो वाहनस्थाः शुभविहगदृशां गोचरा नो… अर्थात् शुभग्रह की दृष्टि से वंचित जितने पापग्रह चतुर्थ भाव में रहे उतने ही वाहनों का नाश होता है। द्वादश (12 भाव) और अष्टम भाव में जितने पाप ग्रह स्थित होकर चतुर्थ भाव को देखें तो वाहन नाश का योग बनता है। ऐसा दुर्योग होने पर समयानुसार वाहन सुख के लिए किसी अच्छे ज्योतिष से सुझाव लेना चाहिए। इसी तरह जब चतुर्थ भाव में पाप दृष्ट राहु-केतु हो तो वाहन को नुकसान होने का योग बन सकता है। मंगल चतुर्थ में अशुभ दृष्ट या नीच के हो दुर्घटना योग बन सकता है। शनि और राहु वाहन भाव अर्थात् चौथे भाव में हो तो बार-बार मरम्मत या पुराने वाहन का योग बनता है।
कुंडली से जाने वाहन कैसा होगा
जन्मकुंडली में जब चतुर्थ भाव का स्वामी एकादश भाव के स्वामी से संबंध बना ले तो ऐसे जातक को हमेशा अपडेट वाहन यानी नए मॉडल की गाड़ियां प्राप्त होती हैं। शुभ स्थिति में जब शुक्र और मंगल का संबंध हो तो आकर्षक और शक्तिशाली वाहन की प्राप्ति होती है। चतुर्थ भाव में जब उच्च का शुक्र हो तो ऐसे जातकों को लग्जरी कारें मिलने का योग बनता है। चंद्रमा और शुक्र की शुभ स्थिति सफेद, सिल्वर या हल्के रंगों के वाहनों की ओर रुचि पैदा कराते हैं। लग्न और चतुर्थ भाव का संबंध केंद्र भाव में बन जाए तो जातक को वाहन के साथ-साथ आरामदेय भवन सुख भी मिलता है।
जीवन में कब मिलेगा वाहन सुख
जन्मकुंडली में वाहन सुख का योग होने पर भी वाहन सुख कब मिलेगा यह प्रश्न हम सभी के मन में जरूर उठता है। इसमें संबंधित ग्रहों, भावों की दशा और ग्रह गोचर की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। कुंडली में कौन से योग कब वाहन सुख दिलाएंगे। इसके प्रमुख सूत्र इस प्रकार हैं –
1. चतुर्थ भाव का स्वामी स्वराशि, मित्र राशि में, मूल त्रिकोण या उच्च राशि में हो और चतुर्थ भाव पाप प्रभाव से मुक्त हो तब चतुर्थेश (चतुर्थ भाव का स्वामी) अथवा शुक्र में जो भी बलशाली होगा वह जब लग्न अथवा त्रिकोण में गोचर करेगा तब वाहन सुख का योग बन सकता है।
2. कुंडली में लग्न अथवा पहले भाव का स्वामी और चतुर्थ भाव का स्वामी लग्न, चतुर्थ या नवम भाव में एकसाथ हो तो इन ग्रहों की दशा-अंतरदशा में वाहन प्राप्त होता है।
3. कुण्डली में चतुर्थ भाव का स्वामी उच्च राशि में शुक्र के साथ हो और चौथे भाव में सूर्य स्थित हो तो 30 वर्ष के बाद ही वाहन सुख मिलने की संभावना होती है।
4. चतुर्थ भाव का स्वामी नीच राशि में बैठा हो एवं लग्न में शुभ ग्रह की स्थिति हो। जन्मकुंडली में दशम भाव का स्वामी चतुर्थ के साथ युति संबंध हो और दशम भाव का स्वामी अपने नवमांश में उच्च का हो तो ऐसे जातकों को देरी से वाहन सुख मिलता है।
दिवाली जैसै विशेष मौकों पर क्यों बढ़ जाती है वाहन बिक्री
दिवाली और त्योहारों के सीजन में अचानक वाहनों की बिक्री बढ़ जाती है। इसके पीछे क्या ज्योतिष सिद्धांत है। इसका उत्तर है हां। ज्योतिष और पंचांग में तिथि का बहुत महत्व है। चंद्रमा और सूर्य के संयोग से तिथि का निर्माण होता है। अमावस्या के बाद चंद्रमा को वैक्सिंग मून कहा जाता है यानी बढ़ता हुआ चंद्रमा। पूर्णिमा के बाद इसे वेनिंग मून कहा जाता है यानी घटता हुआ चंद्रमा। सभी शुभ कार्य, मंदिर समारोह, पितृपक्ष आदि चंद्रमा की स्थिति को ध्यान में रखते हुए ही मनाए जाते हैं। उदाहरण के लिए, होली, दिवाली अक्षय तृतीया, गणेश चतुर्थी, नाग पंचमी, जन्माष्टमी, श्रीराम नवमी, विजयादशमी आदि। व्यक्ति के मन-मस्तिष्क पर खासकर भारतीय परिप्रेक्ष्य में इसका गहरा असर है। ज्यादातर भारतीय खासकर हिंदू, वाहन खरीदारी में शुभ मुहूर्त और ग्रहों की शुभ स्थिति का ध्यान रखते हैं। इसके साथ ही शुभ ग्रहों शुक्र और चंद्रमा त्योहारों के समय प्रायः उच्च स्थिति में होते हैं। वाहन सुख के लिए यह नैसर्मिग कारक ग्रह माने जाते हैं। कुंडली में अच्छी स्थिति में इनकी स्थिति इन तिथियों पर वाहन सुख के योग को प्रबल कर देती हैं।
इसके साथ ही त्योहारों के समय ग्रहों की स्थिति (खासकर चंद्रमा-शुक्र) अकसर शुभ मानी जाती है, जिससे वह समय सिद्धि काल बन जाता है। नवरात्रि, धनतेरस, अक्षय तृतीया आदि को सर्वसिद्धि योग या अभिजीत मुहूर्त माना जाता है, जहाँ ग्रह स्थिति बाधक नहीं होती। इसलिए यह समय क्रेता और विक्रेता दोनों के लिए शुभ होता है।
The post जन्मकुंडली से जानें, मर्सिडीज मिलेगी या साइकिल के लिए भी करनी होगी मशक़्क़त appeared first on News Room Post.
You may also like
मप्र में उत्साह के साथ मनाया गया श्रीकृष्ण जन्मोत्सव, 12 बजते ही गूंजा जय कन्हैया लाल की
PM मोदी की लाल क़िले से RSS तारीफ़ पर बवाल, ओवैसी ने लगाया देश के अपमान का आरोप!
नंद के घर 'आनंद' बन आए कान्हा, कृष्ण मंदिरों में उमड़ा आस्था का जनसैलाब
Haryana Rain Alert : हरियाणा में भारी बारिश की चेतावनी! क्या होगा जनजीवन पर असर?
17 अगस्त को मौसम का तांडव: भारी बारिश और तूफान का अलर्ट, क्या आप तैयार हैं?