Next Story
Newszop

शिव और शंकर: अंतर और शक्तियों का विवेचन

Send Push
धार्मिक तथ्य

हिंदू धर्म में त्रिदेवों का महत्वपूर्ण स्थान है, जिसमें भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश शामिल हैं। इन त्रिदेवों को भगवान शिव का अंश माना जाता है। शिव निराकार और परमतत्व हैं, जिनसे इन तीनों देवताओं की उत्पत्ति हुई है। शिव से विष्णु और शंकर का जन्म हुआ, जबकि ब्रह्मा जी भगवान श्रीहरि से प्रकट हुए हैं। इन त्रिदेवों को विभिन्न कार्यों का दायित्व सौंपा गया है: ब्रह्मा सृष्टि के रचयिता हैं, विष्णु पालनकर्ता हैं, और संहार का कार्य शंकर (महेश) के पास है।


शास्त्रों में क्या कहा गया है?

शिव पुराण की विद्येश्वर संहिता में अध्याय 5 में 'शिव' को परम तत्त्व और सर्वव्यापी चेतना के रूप में दर्शाया गया है। वहीं, 'शंकर' को शिव द्वारा उत्पन्न एक साकार रूप बताया गया है, जो भक्तों को त्रिशूल, डमरू और जटाओं के साथ दर्शन देते हैं।


वायु पुराण के अध्याय 4 में 'शिव' को परमात्मा और 'शंकर' को उनके कार्यकारी रूप के रूप में वर्णित किया गया है। 'शंकर' रुद्र, भैरव या महादेव के रूप में सृष्टि में संतुलन बनाए रखते हैं, जबकि 'शिव' वह निराकार शक्ति हैं, जो इन रूपों को शक्ति प्रदान करती है।


लिंग पुराण के अध्याय 17 में 'शिव' को निराकार और शाश्वत बताया गया है, जो सृष्टि की उत्पत्ति और अंत का प्रतीक है। 'शंकर' को उनके साकार रूप में पूजा जाता है, जैसे नीलकंठ, अर्द्धनारीश्वर या नटराज।


स्कंद पुराण काशी खंड, अध्याय 12 में 'शिव' को सृष्टि का मूल स्रोत और 'शंकर' को उनके भौतिक अवतार के रूप में दर्शाया गया है।


पद्म पुराण सृष्टि खंड में 'शिव' को अनादि और अनंत शक्ति के रूप में देखा गया है, जबकि 'शंकर' को सृष्टि के संहार और कल्याण के लिए कार्य करने वाला बताया गया है।


ऋग्वेद तैत्तिरीय संहिता में 'शिव' को परम चेतना के रूप में वर्णित किया गया है, जबकि 'रुद्र' को 'शंकर' का एक रूप माना गया है।


शिव और शंकर का मूल अर्थ

'शिव' का अर्थ कल्याणकारी और शुद्ध है, जो निराकार और सर्वव्यापी चेतना का प्रतीक है। वहीं, 'शंकर' का अर्थ है 'जो कल्याण करता है'। 'शंकर' शिव का साकार रूप हैं, जिन्हें हम योगी, नटराज, रुद्र या भोलेनाथ के रूप में पूजते हैं।


दार्शनिक और आध्यात्मिक अंतर

दार्शनिक दृष्टिकोण से 'शिव' अद्वैत वेदांत के परम सत्य के समान हैं। 'शंकर' उस सत्य का कार्यकारी रूप हैं, जो सृष्टि में संतुलन बनाए रखते हैं। तांत्रिक परंपराओं में भी 'शिव' को शक्ति का स्रोत और 'शंकर' को उस शक्ति के उपयोगकर्ता के रूप में देखा जाता है।


पूजा में अंतर

शिव की पूजा निराकार और आध्यात्मिक होती है, जिसमें शिवलिंग की पूजा, 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र का जाप और ध्यान शामिल हैं।


वहीं, शंकर की पूजा साकार रूपों पर केंद्रित होती है, जिसमें भक्त भगवान 'शंकर' को मूर्तियों, चित्रों या उनके विभिन्न रूपों के माध्यम से पूजते हैं।


सूचना

यहां दी गई जानकारी ज्योतिष शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है और केवल सूचना के लिए प्रस्तुत की गई है।


Loving Newspoint? Download the app now