भारत के हर मंदिर में कोई न कोई रहस्य और इतिहास छिपा हुआ है। भारत के मंदिरों में रहस्यमयी घटनाएं भी देखने को मिलती हैं। जैसे मंदिर में डमरू की ध्वनि सुनने से मंदिर के शिवलिंग का आकार बढ़ जाता है। जब सर्दियों में केदारनाथ मंदिर के कपाट 6 महीने के लिए बंद हो जाते हैं तो मंदिर के अंदर एक ज्योति जलती रहती है। वैज्ञानिकों ने भारत के मंदिरों का कई बार अध्ययन किया लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ। रहस्यमयी मंदिरों की बात करें तो एक अनोखा मंदिर भी है जहां पूरे साल मंदिर के बाहर शराब बेची जाती है। खास बात यह है कि जब इस मंदिर में स्थित मूर्ति के सामने शराब चढ़ाई जाती है तो तुरंत ही पूरा समूह शराब का भोग लगा देता है।
यह चमत्कारी घटना भक्तों के बीच काफी प्रचलित है और लोग दूर-दूर से अपनी मन्नतें लेकर यहां आते हैं। यह अनोखी परंपरा इस मंदिर को और भी रहस्यमयी और खास बना देती है। रहस्यों से भरा यह मंदिर मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित काल भैरव मंदिर है जिसके प्रति लोगों की गहरी आस्था है। यहां भगवान शिव के पांचवें अवतार माने जाने वाले काल भैरव की 6000 साल पुरानी मूर्ति स्थापित है। इस मंदिर की सबसे अनोखी परंपरा यह है कि यहां भगवान काल भैरव को मदिरा चढ़ाई जाती है और माना जाता है कि भगवान इसे स्वीकार करते हैं। इसीलिए मंदिर के बाहर साल भर मदिरा बिकती है, जिसे भक्त भगवान को चढ़ाते हैं। यह अनोखी परंपरा इस मंदिर को रहस्यमयी और अद्भुत बनाती है।
इस मंदिर में भगवान को मदिरा चढ़ाने की परंपरा है। भगवान काल भैरव का जाप करने के बाद रोजाना करीब 2,000 बोतल मदिरा का भोग लगाया जाता है। आज तक शोध कर रहा पुरातत्व विभाग भी बाबा काल भैरव के मदिरापान के रहस्य का पता नहीं लगा पाया है। यहां मूर्ति मदिरापान की प्रथा कुछ सालों से नहीं बल्कि सदियों से चली आ रही है। (उज्जैन में काल भैरव मंदिर)
हिंदू धर्म में हर देवी-देवता की पूजा के लिए एक खास दिन माना जाता है। भैरव की पूजा के लिए रविवार और मंगलवार को सबसे अच्छा दिन माना जाता है। इन दिनों काल भैरव मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। मान्यता है कि भगवान काल भैरव की पूजा करने से व्यक्ति के सभी दुख नष्ट हो जाते हैं और जीवन में सुख-शांति आती है। इसके अलावा भगवान काल भैरव की कृपा से शनि की कृपा मिलती है, जिससे भक्तों को राहत मिलती है।
कहा जाता है कि प्राचीन समय में यहां केवल तांत्रिक ही अपनी तंत्र साधना की सिद्धि के लिए आते थे। लेकिन कुछ समय बाद इस मंदिर को आम लोगों के लिए भी खोल दिया गया। जिसके बाद यह अपने अनोखे रहस्यों और चमत्कारों के कारण लोगों के बीच प्रसिद्ध हो गया। पुराणों के अनुसार काल भैरव की उत्पत्ति भगवान शिव के रक्त से हुई थी। बाद में यह रक्त दो भागों में विभाजित हो गया, जिसमें से एक बटुक भैरव बना और दूसरे से काल भैरव का जन्म हुआ। जिसमें बटुक भैरव को बाल रूप और काल भैरव को युवा रूप कहा जाता है।
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