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चिकित्सा को डेटा विज्ञान, पर्यावरण अध्ययन, इंजीनियरिंग और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के साथ जोड़ना चाहिए : उपराष्ट्रपति

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नई दिल्ली, 3 मई . उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने चिकित्सा ज्ञान के साथ प्रौद्योगिकी के एकीकरण की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि हमें चिकित्सा को डेटा विज्ञान, पर्यावरण अध्ययन, इंजीनियरिंग और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के साथ जोड़ना चाहिए. धनखड़ शनिवार को नई दिल्ली के ली मेरिडियन होटल में इंडियन एसोसिएशन फॉर ब्रोंकोलॉजी के 27वें वार्षिक राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे.

उपराष्ट्रपति ने कहा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता हमारे घर, हमारी जीवनशैली, हमारे कार्यस्थल, हमारे शोध केंद्रों में प्रवेश कर चुकी हैं. विघटनकारी प्रौद्योगिकी औद्योगिक क्रांतियों के प्रभाव से कहीं आगे हैं लेकिन चुनौतियों को अवसरों में बदलना होगा. यह एक मिथक है कि जब इस तकनीक का उपयोग किया जाएगा, तो यह मानव संसाधन की रोजगार क्षमता को कम कर देगा. आपको प्रौद्योगिकी को अपने वश में करना होगा. इसका उपयोग हमारे लाभ के लिए करना होगा. उन्होंने आज बढ़ते वायु प्रदूषण पर चिंता व्यक्त की और कहा कि शहर के वायु प्रदूषण सूचकांक पर विचार करने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि चिंता की बात यह है कि हम इसके बारे में गंभीर नहीं हैं.

धनखड़ ने जोर देकर कहा कि हमें पुराने वाहनों को तेजी से खत्म करने की जरूरत है. लोगों को यह समझना होगा कि पुराने वाहनों को स्वास्थ्य से जुड़े कारणों के चलते त्यागना है. सिर्फ इसलिए कि कोई पुराना वाहन सड़क पर चल रहा है, इसका मतलब यह नहीं है कि वह सड़क पर चलने लायक है. हमें सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने में गर्व महसूस करना चाहिए. कई देशों में ऐसा किया जाता है और यहां भी एयरपोर्ट तक पहुंचने का सबसे सुरक्षित, सबसे तेज और सबसे पक्का तरीका मेट्रो है, लेकिन हमें इसे आदत बनाने की जरूरत है.

धनखड़ ने कहा कि हमारा पारंपरिक ज्ञान सिखाता है कि श्वसन स्वास्थ्य प्रकृति के संतुलन से अविभाज्य है. अब समय आ गया है कि हम अपनी बुद्धि और ज्ञान की ओर लौटें. यह हमारा खजाना है, जिसे दुनिया भर में मान्यता प्राप्त है. हमें मौसमी जीवन जीने की स्वदेशी प्रथाओं को देखना होगा. हमारे बुजुर्ग हमेशा कहते थे- ऐसी सब्ज़ियां खाएं जो उसी समय उगाई जाती हैं. ऐसे फल खाएं जो उसी समय उगाए जाते हैं. वन संरक्षण और आहार संबंधी ज्ञान आधुनिक निवारक चिकित्सा के साथ उल्लेखनीय रूप से मेल खाते हैं. इसलिए हमें अपनी जड़ों की ओर लौटना होगा.

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/ सुशील कुमार

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