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निजी अस्पताल मरीजों को एटीएम की तरह करते हैं इस्तेमाल: उच्च न्यायालय

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– चिकित्सा में लापरवाही के आरोपी डॉक्टर को कोर्ट ने राहत देने से किया इनकार

प्रयागराज, 25 जुलाई (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सर्जरी में देरी करने एवं इलाज में लापरवाही बरतने के आराेप से बचने के लिए एक डॉक्टर की याचिका खारिज कर दी है। इस मामले में काेर्ट ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि निजी अस्पताल मरीजाें काे एटीएम की तरह इस्तेमाल करते हैं।

दरअसल, काेर्ट में दायर याचिका में कहा गया कि सर्जरी में कथित देरी के कारण भ्रूण की मौत के सम्बंध में आराेपित डाक्टर अशोक कुमार राय ने अपने खिलाफ 2008 में दर्ज मामले को रद्द करने की मांग की थी। साथ ही याचिका में एसीजेएम देवरिया की कोर्ट से जारी समन आदेश समेत समस्त आपराधिक कार्रवाई को रद्द करने की भी मांग की गई थी।

न्यायालय ने कहा कि निजी अस्पताल व नर्सिंग होम मरीजों को केवल पैसे ऐंठने के लिए ’गिनी पिग/एटीएम’ की तरह मानने लगे हैं। न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार ने कहा कि आवेदक (डॉ. अशोक कुमार राय) सर्जरी के लिए सहमति प्राप्त करने और ऑपरेशन करने के बीच 4-5 घंटे की देरी को उचित ठहराने में विफल रहे, जिसके कारण बच्चे की मौत हो गई। न्यायालय ने कड़े शब्दों में अपने आदेश में कहा, “…कोई भी पेशेवर चिकित्सक, जो पूरी लगन और सावधानी के साथ अपना पेशा करता है, उसकी रक्षा की जानी चाहिए, लेकिन उन डॉक्टरों की बिल्कुल भी नहीं, जिन्होंने उचित सुविधाओं, डॉक्टरों और बुनियादी ढांचे के बिना नर्सिंग होम खोल रखे हैं और मरीजों को सिर्फ पैसे ऐंठने के लिए लुभा रहे हैं।“

इस मामले में 29 जुलाई 2007 को दर्ज एक एफआईआर में एक गर्भवती को आरपित डाॅक्टर के द्वारा संचालित एक नर्सिंग होम में भर्ती कराया गया था। मरीज के परिवार का कहना है कि 29 जुलाई 2007 को सुबह ही 11 बजे सिजेरियन सर्जरी के लिए सहमति दी थी, लेकिन सर्जरी शाम 5ः30 बजे की गई, तब तक भ्रूण की माैत हो चुकी थी। इसका प्रतिवाद करने पर डॉक्टर (आवेदक) के कर्मचारियों और उनके सहयोगियों ने परिजनाें के साथ कथित तौर पर पिटाई थी। इस मामले में पीड़ित परिजन ने डाॅक्टर के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराइ्र गई थी। इस मामले में आराेपाें से बचने के लिए डाॅक्टर ने एसीजेएम देवरिया की कोर्ट की कार्रवाई से बचने के लिए उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की थी। जिसमें आपराधिक कार्यवाही को चुनौती देते हुए आवेदक ने तर्क दिया था कि मेडिकल बोर्ड की प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार कथित पीड़ित को उपचार देने में कोई चिकित्सीय लापरवाही साबित नहीं हुई है, लेकिन काेर्ट ने डाॅक्टर के वकीलाें की दलीलाें काे दरकिनार करते हुए याचिका खारिज कर दी।

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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे

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