1- मन का पौधा
मैंने रोपा एक पौधा,
मिट्टी को सहलाया प्यार से।
देखा उसकी बढ़ती कोंपल,
हर दिन एक नए आकार से।
पानी दिया, धूप दिखाई,
पूरी की उसकी हर ज़रूरत।
सोचा था
फूलों से लदी हो शाखाएं,
मन में पाली थी सुंदर कल्पना।
पर हाय! यह कैसा दुर्भाग्य,
कैसा रहा मेरा प्रयास।
मैंने रोपा एक पौधा बाहर,
पर नहीं रोप पाया,
किसी के हृदय में,
प्रेम का एक बीज।
पत्थर से ठंडे मन देखे,
भावनाओं से रीते चेहरे।
कैसे बोऊं अनुराग की वर्षा,
जहां बसती है बेरुखी गहरे?
शायद मेरी ही मिट्टी में
कुछ कमी थी,
या मेरे हाथों में नहीं थी
वह जादूगरी।
बाहर तो फला है
एक हरा-भरा संसार,
भीतर रह गई एक
अनबोई सी क्यारी।
फिर भी, उम्मीद का धागा है बाकी,
शायद कभी कोई ऋतु आए
शायद कोई बारिश
किसी उदास हृदय की
धरती नम हो,
और अंकुरित हो जाए
एक प्रेम कहानी।
2. बहुत कुछ सीखना है
मैंने दूसरों को राह दिखाई,
राहों में जलाए ज्ञान के दीपक।
शब्दों से सींचा सबके मन को,
सिखलाया जीवन का व्याकरण,
प्रेम और करुणा के अध्याय।
बताईं सफलता की परिभाषाएं,
और जीने की सुंदर कलाएं।
पर जब मुड़कर मैंने देखा खुद को,
तो पाया एक गहरा खालीपन।
दूसरों को तराशता रहा दिन रात,
और खुद रहा अनगढ़, अधूरा।
ज्ञान की बातें तो कंठस्थ थीं
पर आचरण में फिसलता रहा।
दूसरों को देता रहा उपदेश,
पर खुद सीख के पथ पर रहा अनगढ़।
शायद अहंकार का था पर्दा,
दूसरों की कमियों को तो देखा,
पर कभी न झांका अपने अंदर।
अब यह अहसास जगा है मन में,
कि सीखना तो जीवन का क्रम है।
दूसरों को सिखाने से पहले,
खुद को सुधारना सबसे प्रथम है।
अब मैं विद्यार्थी बनूंगा फिर से,
सीखूंगा मन के अंदर
प्रेम के बीज बोना।
सीखूंगा की नफरत के बदले
प्रेम कैसे किया जाता
कैसे लोगों की उपेक्षाओं को
सहन कर बड़ा बनाया जाता है
व्यक्तित्व को।
सीखूंगा अपनों के लिया हारना।
क्योंकि सफलता
हमेशा जीत में नहीं होती।
सफलता सतत सीखने में है।
सफलता किसी उदास हृदय
की धरती नम करना है
किसी रोते को हंसाने में है
बुजुर्ग ऊंगली थाम कर
उन्हें मंजिल तक पहुंचाने में है।
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