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कुंडलियां छंद : मांग भरा सिंदूर

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1

नारी का अभिमान है, मांग भरा सिंदूर।

यदि संकट में आ गया, सब खुशियां काफ़ूर।

सब खुशियां काफ़ूर, इसे गर नहीं बचाया।

जीवन होगा व्यर्थ, व्यर्थ यह नर की काया।

उठो हिन्द के शेर, लगा दो ताकत सारी।

पहलगाम का न्याय, मांगती है अब नारी।

2

सीमा पर फिर से भरी, शेरों ने हुंकार,

वीरों ने फिर कर दिया, दुश्मन का संहार।

दुश्मन का संहार, हिली वसुंधरा सारी,

ध्वस्त हुआ नापाक, गूंजती जय जयकारी।

जली क्रोध की ज्वाल, बनाया दुश्मन कीमा।

जय भारत के वीर, सुरक्षित है अब सीमा।

(3)

दिखलाया है देश ने, क्या होता प्रतिकार।

पल भर में ही कर दिया, दुष्टों का संहार।

दुष्टों का संहार, शौर्य सीने में उबला।

हुए ठिकाने ध्वस्त, सांप को बिल में कुचला।

किया सफाया पूर्ण, सबक उसको सिखलाया।

भारत शक्ति महान, जगत को यह दिखलाया।

(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)ALSO READ:

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